विद्वान और कवि / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल

Gadya Kosh से
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साँप ने गाने वाली गौरय्या से कहा, "हे पंछी, तू उड़ सकता है; लेकिन धरती की उस गुहा तक नहीं पहुँच सकता जहाँ जीवन का सार अपनी सम्पूर्णता में ध्यानस्थ है।"

गौरय्या ने कहा, "ए, तू कुछ ज्यादा ही जानता है! तू दूसरे ज्ञानियों से कहीं ज्यादा ज्ञानी है!! लेकिन दया आती है कि तू उड़ नहीं सकता।"

और जैसेकि उसने कुछ सुना ही न हो, साँप बोला, "तू धरती के नीचे के रहस्यों से अनजान है। दबे हुए साम्राज्यों तक तू कभी पहुँच ही नहीं सकती। अभी, कल ही की बात है, मैं लाल माणिकों की एक गुफा में लेटा हुआ था। बिल्कुल ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी पके हुए अनार के बीचों-बीच बैठा हूँ। सूरज की चमकती किरण ने उसे दहकते हुए शानदार गुलाब में बदल डाला। ऐसे आश्चर्य मेरे अलावा दूसरा कौन देख सकता है।"

गौरय्या ने कहा, "कोई नही, कोई नहीं; लेकिन तू काल-परिवर्तन के टूटे टुकड़े ही देख सकता है। दया आती है कि तू गा नहीं सकता।"

फिर साँप ने कहा, "मैंने ऐसे पेड़ देखे हैं जिनकी जड़ें आधी धरती तक जाती हैं। एक बार जिसने उन जड़ों का स्वाद चख लिया, समझ लो सुकरात से भी ज्यादा तेज हो गया।"

गौरय्या बोली, "धरती पर विचारों के जादू का जैसा रहस्योद्घाटन तू कर सकता है, वैसा कोई दूसरा नही। लेकिन अफसोस, तुझमें उड़ान का गुण नहीं है।"

"एक पर्वत के नीचे उसके भीतरी हिस्से में एक जामुनी नदी बहती है। जिसने एक बार उसका पानी पिया, समझ लो देवताओं की तरह अमर हो गया।" साँप ने कहा, "मेरा दावा है - कोई चिड़िया या चौपाया उस जामुनी नदी को देख तक नहीं सकता।"

गौरय्या ने कहा, "तू चाहकर भी देवताओं की तरह अमर नहीं हो सकता क्योंकि मुझे अफसोस है कि तू गा नहीं सकता।"

साँप बोला, "मैं धरती में दबे एक मन्दिर के बारे में भी जानता हूँ। पूर्णिमा की रात को मैं वहाँ जाता हूँ। न भूल सकने वाली एक दानव-जाति ने उसे बनाया था। उसकी दीवारों पर काल और ब्रह्मांड के रहस्य खुदे हैं। जिसने उन्हें पढ़ लिया, समझ लो वह इतना समझदार हो जाता है कि सबकी समझ को पीछे छोड़ दे।"

गौरय्या ने कहा, "वास्तव में, इतना महत्वाकांक्षी होने के बावजूद भी अपने इस दु:खी शरीर को तू काल और ब्रह्मांड के रहस्यों से नहीं भर सकता; क्योंकि तू उड़ नहीं सकता।"

साँप हताश हो गया। वह मुड़ा और यों बुदबुदाता हुआ अपने बिल में घुस गया - "खाली दिमाग़ गवैया!"

और गौरय्या ने यों गाते हुए उड़ान भरी - "अफसोस है कि तू गा नहीं सकता। दया आती है तुझ पर अरे बुद्धिमान, कि तू उड़ नहीं सकता।"