विधु विनोद चोपड़ा और मंसूर हुसैन की फिल्में / जयप्रकाश चौकसे

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विधु विनोद चोपड़ा और मंसूर हुसैन की फिल्में
प्रकाशन तिथि :07 अप्रैल 2016


भास्कर उत्सव के दो मेहमान विधु विनोद चोपड़ा और मंसूर हुसैन फिल्म परिवारों से आए हैं, किंतु उनका सिनेमा अपने परिवार के पारम्परिक सिनेमा से अलग है और फिल्म निर्माण के हर पक्ष में नवीनता से भरा है। विधु विनोद चोपड़ा फिल्मकार रामानंद सागर के सौतेले भाई हैं। उनके पिता की पहली पत्नी से रामानंद सागर और पांच भाई-बहन का जन्म हुआ तथा दूसरी पत्नी से वीर चोपड़ा, विनोद चोपड़ा और एक भाई और है, जिनके पुत्र को नायक लेकर विधु विनोद चोपड़ा ने 'करीब' फिल्म बनाई थी। रामानंद सागर ने अपना कॅरिअर पृथ्वी थिएटर्स में लेखक के रूप में प्रारंभ किया और उनकी लिखी 'बरसात' राज कपूर ने बनाई थी तथा इसी फिल्म से शंकर-जयकिशन, शैलेंद्र और हसरत की टीम बनी, जिसने 21 वर्षों तक अपना दबदबा बनाए रखा। संभवत: शिखर पर टिके रहने का यह रिकॉर्ड समय है।

रामानंद सागर ने राजेंद्र कुमार, साधना और फिरोज खान के साथ 'आरजू' बनाई, जिसमें शंकर-जयकिशन ने अत्यंत मधुर संगीत दिया। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय गुप्तचर संगठन पर धर्मेंद्र के साथ 'आंखें' फिल्म बनाई। दो भव्य सफलताओं के बाद उन्होंने लगभग आधा दर्जन असफल फिल्में बनाई, जिससे वे बहुत बड़े कर्ज के देनदार हो गए और दीवालियापन की कगार पर अपने बाल सखा अफसर की सहायता से उन्हें दूरदर्शन पर 'रामायण' सीरियल बनाने का अवसर मिला। राम नाम की नौका में बैठकर उन्होंने कर्ज की वैतरणी पार की तथा इससे प्रेरित उनके मित्र बलदेवराज चोपड़ा ने 'महाभारत' सीरियल की सफलता से अपने लिए इंद्रप्रस्थ रचा। उसी काल खंड में मनोहर श्याम जोशी का लिखा 'बुनियाद' सीरियल बनाकर रमेश 'शोले' सिप्पी ने भी अपने साम्राज्य की नींव रखी। इस तरह तीन डूबते हुए फिल्मी घरानों को दूरदर्शन ने बचा लिया। उस दौर में दूरदर्शन के लिए शरद जोशी के हास्य सीरियल 'यह जो है जिंदगी' ने उच्च गुणवत्ता के नए मानदंड रचे। यश चोपड़ा ने भी 'कथा सागर' बनाया। सईद मिर्जा और कुंदन शाह ने 'नुक्कड़' रचा, जो निम्न मध्यम वर्ग समाज के आंसू और मुस्कान की अमर दास्तां बन गया। चार्ली चैपलिन से प्रारंभ आंसू और मुस्कान की यह अलसभोर ट्रैज्यो-कॉमेडी राज कपूर से होते हुए छोटे परदे पर पहुंची और मील का पत्थर सिद्ध हुई।

भास्कर उत्सव के दूसरे अतिथि मंसूर हुसैन शशधर मुखर्जी के शागिर्द फिल्मकार नासिर हुसैन के सुपुत्र हैं। फॉर्मूला फिल्म के आदि गुरु रहे हैं शशधर मुखर्जी। नासिर के इकलौते पुत्र मंसूर हुसैन ने अपने चचेरे भाई आमिर खान और नवोदित जूही चावला को लेकर सफल 'कयामत से कयामत तक' रची और दूसरी फिल्म 'जोश' शाहरुख खान के साथ बनाई। इन सफलताओं के बाद मंसूर हुसैन ने फिल्म बनाना छोड़ दिया और सुदूर दक्षिण के कुंदूर में एक फार्म हाउस में जैविक खेती प्रारंभ की। वे महानगरीय जीवन के आडम्बर और गति से मुक्त प्रकृति की निकटता में सरल-सादा जीवन बिता रहे हैं। उन्होंने इस सरल स्वाभाविक जीवन को केंद्र में रखकर अर्थशास्त्र की एक विलक्षण किताब भी लिखी है। जीवन किसी भी काल्पनिक पटकथा से अधिक रोमांचकारी और आश्चर्यजनक हो सकता है- यह बात इस तथ्य से पुन: रेखांकित होती है। यह तुलना नहीं है परंतु राज कुमार सिद्धार्थ की महान परम्परा पर कुछ सामान्य लोगों ने अपने परिवार का राजपाट स्वैच्छा से त्यागा है। महात्मा बुद्ध ने कोटि कोटि जन को नया मार्ग दिखाया और यहां एक फिल्म परिवार के साम्राज्य त्याग की कथा है- अत: यह तुलना नहीं है परंतु वैभव को त्यागने की बात तो है। इस तरह के वैभव त्याग ने एक अभिनव परम्परा रची है। राजनीतिक सत्ता से चिपके लोग यह नहीं जानते कि सत्ता त्याग करते ही आपका अधिकार क्षेत्र सांसारिक से अध्यात्म के अनंत क्षेत्र तक फैल जाता है। जब सोनिया गांधी ने चुनाव जीतने के बाद अपनी जगह मनमोहन सिंह को सिंहासन दिया था, तब सारे विरोधी पक्ष सन्न रह गए थे और सोनिया के गिर्द नया आभा चक्र बन गया था। आज कांग्रेस के 130 वर्ष के इतिहास में अपने अस्तित्व का संकट मुंह बांये खड़ा है और ऐसे में सोनिया अपने पुत्र राहुल को पीछे हटाकर युवा सिंधिया को आगे ले आएं तो कांग्रेस को नई दिशा और शक्ति मिलेगी तथा कांग्रेस के इतिहास में वे पार्टी के प्रारंभिक सदस्यों में से एक एनी बेसेंट के समकक्ष खड़ी होकर अपने विरोियों को बौना बना देंगी।