विधु विनोद चोपड़ा का सिनेमा और शतरंज / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
विधु विनोद चोपड़ा का सिनेमा और शतरंज
प्रकाशन तिथि :05 जनवरी 2016


फिल्म निर्माता विधु विनोद चोपड़ा की अमिताभ बच्चन और फरहान अख़्तर अभिनीत 'वजीर' का प्रदर्शन 7 जनवरी को होने जा रहा है जो नए वर्ष का दूसरा शुक्रवार है। पहले शुक्रवार को छोटे बजट की फिल्में प्रदर्शित हुई हैं। यह निर्देशक राजकुमार हीरानी के उनसे अलग होने के बाद की पहली पहली फिल्म है। विधु विनोद चोपड़ा ने अपनी पहली फिल्म 'सजा-ए-मौत' से 'वजीर' तक की यात्रा में फिल्म निर्माण के हर क्षेत्र में अनेक प्रतिभाशाली लोगों को अवसर दिया है। यह फिल्म जगत के लिए बहुत बड़ी सेवा होती है कि प्रतिभाओं को वक्त रहते मौका मिल जाए, सही मंच मिल जाए। उनकी 'मिशन काश्मीर' में राजकुमार हीरानी पुणे फिल्म संस्थान से निकले ताजा छात्र थे और उनकी 'मुन्नाभाई' शृंखला के निर्माण का साहस विनोद चोपड़ा ने ही दिखाया। 'वजीर' में भी वे एक निर्देशक को अवसर दे रहे हैं। दरअसल, सिनेमा को पूरी तरह समर्पित विधु विनोद चोपड़ा को बहुत जल्दी क्रोध आ जाता है, क्योंकि वे मीडियोक्रिटी देखकर भड़क जाते है। किसी भी स्तर पर साधारणता उनको नागवार गुजरती है और उन्हें बिल्कुल बर्दाश्त नहीं है।

जर्मनी के मोजार्ट नामक महान कम्पोजर (संगीतकार) के जीवन पर 'एमेड्स' नामक नाटक मंचित हुआ है और उसी नाटककार ने फिल्म की पटकथा भी लिखी है। इस प्रकरण पर उसी लेखक ने एक किताब भी लिखी है, जिसमें नाटक और सिनेमा विधा के अंतर को रेखांकित किया गया है। मोजार्ट के वियना में पहले प्रदर्शन के समय कोर्ट कम्पोजर यानी दरबारी संगीतकार कैलरी भी मौजूद था और वह कंसर्ट छोड़कर भाग जाता है। एकांत में चीखता है कि हे ईश्वर तूने सारी प्रतिभा मोजार्ट को दी और सारी महत्वाकांक्षा मुझे दी। आज से मैं युद्ध घोषित करता हूं कि तेरी इस महान प्रतिमा को नष्ट कर दूंगा वरना दूनिया में मीडियोकर (साधारण प्रतिभा के लोग) लोगों का क्या होगा। क्या इतने सारे मीडियोकर एक महान प्रतिभा के आने पर आत्महत्या कर लें। इससे बेहतर यह होगा कि इस एक विराट प्रतिभा को असमय मार दिया जाए। यह मोजार्ट के दौरा की नहीं बल्कि हर दौर की कहानी है।

इसी यथार्थ में एक घटना यह है कि कैलरी की भूतपूर्व प्रेमिका मोजार्ट के साथ रहने लगती है। जब यह महिला कैलरी के षड्यंत्र को भांप जाती है तब वह कैलरी के पास जाकर कहती है कि उसके तन-मन को ले ले परंतु मोजार्ट को बख्श दे। कैलरी कहता है मूर्ख औरत तू क्या समझती है कि मैं तेरी खातिर मोजार्ट को नष्ट कर रहा हूं, मैं असंख्य मीडियोकर की खातिर मोजार्ट को मारना चाहता हूं।

विधु विनोद चोपड़ा भी केवल प्रतिभा को एकमात्र सद्‌गुण मानते है, इसलिए उनके दुश्मन अनेक हैं। वे एक मायने में एन.रैंड के फाउंटेनहेड के नायक हार्वड रॉक की तरह केवल प्रतिभा को ही सूर्य मानते हैं। अगर कोई व्यक्ति उनकी सारी फिल्मों की संरचना का अध्ययन करें तो आप उनमें चैस की बाजी की तरह पायेंगे। यह काम उनकी पत्नी अनुपमा चोपड़ा को करना चाहिए। यह खेल विचित्र है, जिसमें ऊंट ढाई चाल का अधिकारी है और प्यादा एक चाल का परंतु सीधी राह पकड़कर प्यादा वजीर और बादशाह को मार सकता है। जीवन में भी इसी खेल की तरह आज आदमी का प्यादा सीधी राह पकड़कर चुनाव में बड़े वजीरों और वजीर-ए-आजम को मार सकता है परंतु प्यादे की राह में टांग अड़ाता है दौलत वाला। यह अलग बात है कि अंतिम विजय किसी न किसी दिन प्यादे की ही होगी। वह सुबह कभी तो आएगी। नामों से लगता है कि इस खेल का आविष्कार ईरान या पर्शिया में हुआ है। ईरानी सभ्यता के प्रारंभ में जंगल में एक सांप पर पत्थर मारने वाले ने आग की खोज की और तब से अनेक सदियों तक नई खोज करने वाले को ही उन्होंने बादशाह माना है। हमारे आज के गणतंत्र में तो वजीर-बादशाह सब बाजार पैदा करता है और उसने तो खरीददार भी जन्में हे परंतु कुछ लोग इस बाजार से गुजरते हैं परंतु खरीददार नहीं।