विधु विनोद चोपड़ा का स्कूल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 03 दिसम्बर 2014
विधु विनोद चोपड़ा ने पूना संस्थान में प्रशिक्षण के समय एक लघु फिल्म बनाई थी जिसे अपनी श्रेणी का ऑस्कर प्राप्त हुआ। प्रशिक्षण के बाद उन्होंने अल्प बजट में 'सजा-ए-मौत' बनाई। कुछ फिल्मों के बाद उन्हें 'परिंदा' की सफलता ने एक पहचान दी आैर '1942 लव स्टोरी' से उनकी मौलिकता को आदर दिया गया। इसी फिल्म के निर्माण के समय पूना संस्थान से प्रशिक्षित संजय लीला भंसाली की सहायता ली गीतांकन में आैर उसी के बलबूते पर संजय ने फिल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाई। इसी तरह 'मिशन कश्मीर' में उनके सहायक रहे राजकुमार हीरानी को अपने संस्थान में 'मुन्नाभाई एम.बी.बी.एस' बनाने का अवसर दिया आैर विधु विनोद चोपड़ा तथा राजकुमार हीरानी के संजोग ने 'लगे रहो मुन्नाभाई' दी जिसके कारण सारे देश में चेतना की लहर चली आैर युवा वर्ग ने गांधी साहित्य में रुचि ली। यह भी सच है कि महात्मा गांधी की फिल्मों में कोई रुचि थी आैर उन्होंने कभी सोचा भी होगा कि दशकों बाद एक फिल्म उनके विषय में इतनी जिज्ञासा पैदा करेगी आैर उनकी धूल खाती किताबों को बुहार कर युवा वर्ग पढ़ेगा। बाद में इसी जोड़ी ने आमिर खान को साथ लेकर 'थ्री इडियट्स' रची जो भारत की सबसे अधिक धन कमाने वाली फिल्म सिद्ध हुई आैर वह रिकॉर्ड अब तक कायम है। इसी प्रतिभा तिकड़ी की ताजा फिल्म 'पी.के.' उन्नीस दिसंबर को प्रदर्शित होने जा रही है। इस फिल्म की कथा पर भांति-भांति के अनुमान लगाए जा रहे हैं परंतु प्रदर्शन पर ही रहस्य उजागर होगा आैर प्रबल संभावना है कि यह 'थ्री इडियट्स' से अधिक सफल हो। इन्हीं वर्षों में विधु ने प्रदीप सरकार को अवसर दिया आैर शरतचंद्र की 'परिणीता' दोबारा बनी तथा सफल रही। स्वयं विधु के निर्देशन में अमिताभ बच्चन अभिनीत 'एकलव्य' बनी जिसे सार्थक फिल्मों के दर्शको आैर आलोचकों ने सराहा। उन्होंने एक फिल्म अंग्रेजी भाषा में बनाई है जिसका प्रदर्शन निकट भविष्य में होने वाला है।
ज्ञातव्य है कि विधु चोपड़ा के सगे भाई वीर चोपड़ा एक अत्यंत सफल एवं प्रबुद्ध व्यक्ति हैं आैर उन्होंने भारतीय सांसदों पर एक फिल्म भी लिखी है। पुस्तक नहीं मिल पाने के कारण पूरी जानकारी नहीं है। वीर चोपड़ा ने कुछ समय फिल्मों में रुचि ली परंतु उनके अन्य कार्यों के कारण इस विद्या के लिए यथेष्ठ समय नहीं दे पाए। यह भी कम लोगों को मालूम है कि इनके सहयोगी लेखक अभिजात जोशी अब भारत में ही बसे हैं आैर उन्हें अपने सहयोग के लिए विधु जितना धन देते हैं उसकी कल्पना भी लोगों को नहीं है। यह भी खबर है कि अन्य निर्माता अभिजात से संपर्क करने की चेष्टा करते हैं परंतु उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि वे विधु एवं हीरानी के अतिरिक्त किसी के लिए काम करना नहीं चाहते। दरअसल विधु के दफ्तर का वातावरण अन्य फिल्मी दफ्तरों से अलग है। उनके यहां फिल्म के सामाजिक साहित्यिक मूल्यों पर बल दिया जाता है। उनका विश्वास है कि धन गुणवत्ता का बाय प्रोडक्ट है, उसका (धन) अपने आप में कोई मूल्य नहीं है। प्राय: फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों की सारी सोच ही फॉर्मूला सोच है बॉक्स ऑफिस के केंद्रित है। यह साधन आैर साध्य का अंतर नहीं समझ पाने के कारण होता है।
इस बैनर में गुणवत्ता से काेई समझौता नहीं किया जाता। मसलन संगीत माफिया ने कॉपी राइट के नए नियमों के कारण आत्मसम्मान रखने वाले गीतकारों आैर गायकों पर अघोषित प्रतिबंध लगा रखा है। पी.के. के लिए इसी तरह 'प्रतिबंधित' सोनू निगम ने गीत गाए हैं आैर संगीत अधिकार ऊंचे दाम पर बेचे भी गए हैं। हर किस्म का माफिया जानता है कि कौन झुकने वाले नहीं है आैर अपने लाभ के लिए वे स्वयं झुक जाते हैं। माफिया का साम्राज्य डर पर आधारित है। बहरहाल विधु विनोद चोपड़ा की निर्माण संस्था अपने आप में एक द्वीप है जहां प्रतिभा का परिमार्जन किया जाता है। ज्ञातव्य है कि विनोद चोपड़ा रामानंद सागर के भाई हैं। रामानंद सागर के पिता ने दो विवाह किए थे आैर उनकी एक पत्नी की संतान रामानंद सागर हैं तथा दूसरी पत्नी की संतान विनोद, वीर आैर इनका एक आैर भाई है जिसके बेटे को 'करीब' में अभिनय का अवसर दिया।
एक दौर में रामानंद सागर सफल समृद्ध थे परंतु आज उनके वंशज टेलीविजन के लिए कुछ बनाते हैं। फॉर्मूले में यकीन करने वाला परिवार का यह हाल है आैर लीक से हटकर चलने वाले आज शिखर पर हैं। सारे समझौताें का यही हश्र होता है। सफलता े पीछे भागने से बेहतर है कि आप बिना समझौतों के गुणवत्ता का काम करें तो सफलता आपके पीछे भागेगी।