विनम्र श्रद्धांजलि / नामदेव ढसाल
रामजी यादव
मराठी के महान और अप्रतिम कवि नामदेव ढसाल का आज 15 जनवरी 2014 को निधन हो गया। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा तो बहुत पहले से था लेकिन मुम्बई के पुराने इलाके में जाकर पता लगा कि वे जीते-जागते किंवदंती हैं। उनके दुर्धर्ष जीवन संघर्ष और इच्छाशक्ति की कथाएं कई पीढ़ियों के लोग दुहराते हुए उनके प्रति अपार आदर व्यक्त करते हैं। उनकी हिम्मत और साहस के साथ ही उनकी संवेदनशीलता और उदारता की अनेक ऐसी घटनाएं अनेक लोगों की जुबान से सुनने को मिलीं जो एक महाख्यानात्मक फ़िल्म की जमीन देती हैं। एक समय था जब उन्हें सुनने लाखों लोग जुटते थे। उनसे मुम्बई के बड़े-बड़े शूटर और अंडरवर्ल्ड के सूरमा भी खौफ खाते थे। उनकी कवितायेँ अभी हिंदी में बहुत नहीं आई हैं लेकिन उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की तपिश से हिंदी जगत कभी अछूता नहीं रहा।
पिछले दिनों उनके मित्र आत्माराम जी मिले तो गोलपीठा जाने की बात हुई जहाँ ढसाल साहब का रचनात्मक जीवन शुरू हुआ। यह जगह मुंबई के रेड लाइट एरिया का एक चौक है। ढसाल जी के संकलन का नाम भी इसी पर है। उन्होंने मराठी कविता की चेतना और दृष्टि को बदलने को मजबूर कर दिया और यहाँ देखता हूँ कि उनके जिक्र के बिना मराठी कविता पर कोई बात करना जैसे झूठ बोलना हो गया है। हिंदी में दलित साहित्य लम्बे समय तक उपेक्षित किया जाता रहा लेकिन मराठी में ऐसा असम्भव था। नामदेव ढसाल जैसे साहित्यिक पुराधा ने अपनी पूरी ताकत से अपनी बात कही और हर कान को उनकी बात सुनने को मजबूर होना पड़ा। वे इतनी बड़ी आवाज बन गए कि स्वयं दलित साहित्य का अधिकांश हिस्सा उनकी छाया भर रह गया।
मुझे लगता है कि आज लिखा जा रहा दलित साहित्य अपने कैरियरवादी रुझानों और अति-महत्वाकांक्षाओं का शिकार हो गया है इसलिए उसमें से प्राण और सरोकार गायब होते गए हैं और केवल दुहराव तथा नकली गुस्से का प्रदर्शन तक ही वह सिमटता जा रहा है। एक बार फिर से देखना जरूरी है कि वह कौन सी चीज है जो नामदेव ढसाल को एक विराट संसार तक प्रसारित कर देती है और कौन सी कमी है कि वह बहुत सी अभिव्यक्तियों को महज पुस्तकीय सामग्री तक सीमित कर देता है।
नामदेव ढसाल को विनम्र श्रद्धांजलि !