विनोद खन्ना के विश्वास और भय / जयप्रकाश चौकसे

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विनोद खन्ना के विश्वास और भय
प्रकाशन तिथि :20 अप्रैल 2018


विनोद खन्ना को दादासाहेब फाल्के पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। 3 मई को आयोजित कार्यक्रम में श्रीदेवी का भी स्मरण किया जाएगा। सुनील दत्त ने अपने छोटे भाई सोम दत्त को अभिनय क्षेत्र में प्रवेश दिलाने के लिए 'मन का मीत' नामक फिल्म बनाई थी, जो इतनी बुरी फिल्म थी कि दर्शक उसे 'मन का मीट' कहते थे। उसी फिल्म में विनोद खन्ना को भी अवसर दिया गया। विनोद खन्ना ने अपने अभिनय और सुदर्शन व्यक्तित्व के कारण शीघ्र ही सफलता अर्जित की। उस दौर में अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना समानांतर चल रहे थे और उम्मीद यह थी कि वे सबसे अधिक लोकप्रिय हो जाएंगे। वे लगभग ग्रीक गॉड की तरह दिखते थे। 'विकी डोनर' की ज़बान में 'आर्य पुरुष' की तरह दिखते थे। मुंबई का श्रेष्ठि वर्ग उन्हें अपनी दावतों में आमंत्रित करता था, जहां अपनी सुविधा सम्पन्न जीवन से ऊबी हुई धनाढ्‌य महिलाएं उन्हें सारा समय घेरे रहती थीं। उनके मामूली संकेत मात्र देने पर वे अपने अमीर पति को त्याग सकती थीं। एक औद्योगिक घराने की विज्ञापन फिल्म में विनोद खन्ना ने काम किया था।

जब विनोद खन्ना अत्यंत लोकप्रिय सितारे बन चुके थे, तब अपने अभिन्न मित्र महेश भट्‌ट और परवीन बॉबी के साथ वे पुणे जाकर आचार्य रजनीश (ओशो) के प्रवचन सुनते थे। बाद में रजनीश अमेरिका में जा बसे जहां उन्होंने ऑरेगॉन की रचना की। विनोद खन्ना सितारा सिंहासन के निकट थे और उनकी ताजपोशी होने ही वाली थी कि उन्होंने अभिनय छोड़कर आचार्य रजनीश के अमेरिका में बने आश्रम में रहने का निर्णय लिया। किंतु कुछ समय पश्चात उनका यह नशा टूट गया और वे भारत आ गए गोयाकि सितारा सिंहासन गया और ज्ञान भी प्राप्त नहीं हुआ। अभिनय क्षेत्र में उनकी दूसरी पारी में पहली पारी वाला आभामंडल नहीं था। सलमान खान अभिनीत 'दबंग' में उन्होंने पिता की चरित्र भूमिका का निर्वाह किया। विनोद खन्ना ने दो शादी की थी। उनकी दूसरी पत्नी एक बड़े औद्योगिक घराने की कन्या थीं। उनकी पहली पत्नी से उत्पन्न पुत्र अक्षय खन्ना ने बड़ी धूमधाम से अभिनय क्षेत्र में प्रवेश किया परंतु बतौर नायक उन्हें सफलता नहीं मिली। आजकल वे चरित्र भूमिकाएं निभा रहे हैं। श्रीदेवी अभिनीत 'मॉम' में उनकी चरित्र भूमिका को सराहा गया था। अक्षय खन्ना अपने पिता की तरह ग्रीक गॉड नुमा छवि नहीं बना पाए और न ही यह उनका उद्‌देश्य था। वे एक सक्षम कलाकार हैं। उन्हें राजमा चावल खाना बेहद पसंद है। उनके सामने छप्पन भोग भी परोसे जाएं तो वे केवल राजमा चावल खाना पसंद करेंगे। भोजन की यह पसंद ही उनकी सादगी का परिचय देती है।

विनोद खन्ना ने स्वयं यह बात कही थी कि अमेरिका प्रवास में वे अपने एक हमशक्ल व्यक्ति से मिले थे जो अभिनय क्षेत्र में नहीं वरन् ऑटोमोबाइल व्यवसाय में था। अपने अमेरिका प्रवास के समय विनोद खन्ना को यह अनुभूति हुई कि उन्हें अपने विगत जन्म की यादें आती हैं परंतु वे इतनी सिलसिलेवार नहीं हैं कि किसी नतीजे पर पहुंचा जाए। ज्ञातव्य है कि चेतन आनंद की फिल्म 'कुदरत' में उन्होंने एक ऐसे डॉक्टर की चरित्र भूमिका की थी, जो हिपनोसिस द्वारा मनुष्य से अपने विगत जीवन की बातें जानने का प्रयास करता है। यह कम आश्चर्य की बात नहीं कि पुनर्जन्म की थीम पर भारत से अधिक फिल्में अमेरिका में बनी हैं। 'रीइन्कार्नेशन ऑफ पीटर प्राउड' नामक फिल्म से प्रेरणा लेकर सुभाष घई ने ऋषिकपूर एवं टीना मुनीम अभिनीत 'कर्ज' बनाई थी। सुभाष घई ने अपनी फिल्म में उस महिला को दंडित किया, जिसने नायक के विगत जीवन में उसका कत्ल किया था परंतु 'रीइन्कॉर्नेशन ऑफ पीटर प्राउड' में पत्नी अपने पति को उसके दूसरे जन्म में भी मार देती है और इस आशय का संवाद भी है कि चाहे कितने ही जन्म लो, हर जन्म में वह उसका वध करेगी। पुनर्जन्म पर बिमल रॉय की दिलीप कुमार व वैजयंतीमाला अभिनीत 'मधुमति' सर्वश्रेष्ठ फिल्म है, इसी फिल्म का बुरा चरबा फरहा खान ने शाहरुख खान अभिनीत 'ओम शांति ओम' बनाई थी। आभास होता है कि एक दौर में फरहा खान, उसके पति व भाई साजिद खान में अघोषित होड़-सी लगी थी कि कौन सबसे अधिक उबाऊ फिल्म बनाता है। साजिद ने 'हिम्मतवाला' के अपने संस्करण से बाजी मार ली।

बहरहाल, विनोद खन्ना द्वारा अमेरिका पलायन कर जाना, फिल्म चित्रलेखा के साहिर रचित गीत की याद ताजा करता है 'संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे, इस लोक को अपना न सके उस लोक में भी पछताओगे, ये पाप है क्या ये पुण्य है क्या, रीतियों पर धरम की मोहरें हैं, यह भोग भी एक तपस्या है, तुम त्याग के मारे क्या जानो, अपमान रचेता का होगा, रचना को अगर तुम ठुकराओगे'। सारांश यही है कि स्वर्ग, नर्क सब इसी धरती पर है। ज़िंदगी की जीत पर यकीं करने के सिवा कोई रास्ता नहीं है।