विभीषण / राजनारायण बोहरे
हनुमान से लंका की खबरें सुन कर श्रीराम ने सुग्रीव से पूछा " क्या करें मित्रवर? '
सुग्रीव बोले "हमको लंका की सेना की सारी खबरें और वहाँ की भौगोलिक जानकारी मिल गई है, अब देर का क्या काम? हमे तुरंत चल देना चाहिए।"
जामवंत बोले "प्रभो, हम अब कुछ गुपतचर लंका में भेज रहे है जिनके द्वारा आगे से हमे लंका की पल-पल की जानकारी मिलती रहेगी, इस कारण हम किसी भी तरह से उनसे कमजोर नहीं पड़ेंगे। आप संकोच न करें हमसब चलने के लिए तैयार हैं।"
फिर क्या था, बात की बात में सब लोग लम्बी यात्रा के लिए सजने लगे।
अगले दिन सुबह श्रीराम और लक्ष्मण ने अपने सारे मित्रो के साथ लंका के लिए अपनी यात्रा शुरू की।
आगेआगे उस दलके कुछ बानर थे जो अभी इसी दिशा में जाकर लौटा था, पीछे जय श्रीराम कहता बहुत बड़ा समूह।
सारा रास्ता देखा भाला था सो समुद्र तट तकपहुँचने में ज़्यादा समय नहीं लगा।
समुद्र के किनारा देख कर राम ने पूछा कि हम समुद्रकैसे पार करेंगे, तो सबने अपने-अपने विचार बताये। कोई कहता था कि बहुत-सी नावों का बेड़ा तैयार किया जाय तो कोई कहता था कि सब लोग तैर कर पार करें।
यात्रा की थकान थी और सांझ घिरने लगी थी सो राम ने कहा कि हम लोग अब वहाँ जाकर आराम करते हैं जहाँ संपाती रहा करता था। कल सुबह हम लोग बैठ कर विचार करेंगे कि कया करना है।
सब लोग उठे और उस घाटी की ओर बढ़ चले जहाँ संपाती की गुफा थी।
खास ख़ास लोग समुद्र किनारे वाले रास्ते से भीतर गये तो बाक़ी लोग पहाड़ चढ़ कर घाटी की तरफ़ पहुँचे।
अंधेरा होने के पहले सब लोग अपने सोने का ठिकाना खोज चुके थे।
रात बहुत आराम से बीती।
अगली सुबह गुफा के चोैड़े वाले हिस्से में श्रीराम का दरबार लगा।
अब भी तय नहीं हो पा रहा था कि समुद्र कैसे पार होगा?
सूरज काफ़ी ऊपर चढ़ गया था और फलाहार का बंदोबस्त किया जारहा था कि एक बानर दौड़ता हुआ आया " प्रभु, लंका की तरफ़ से एक नाव में बैठ कर एक हट्टा-कट्टा आदमी आया है जो अपना नाम विभीषण बताता है और आपसे मिलना चाहता है। ;
हनुमान तेजी से बोले "उन्हे आदर के साथ लेकर आओ।"
कुछ देर बाद विभीषणजी राम के गले लग कर मिल रहे थे। राम ने पूछा "मित्र विभीषण बताओ, तुम्हारी क्या इच्छा है? तुम लंका कैसे छोड़ आये?"
विभीषण बोले "लंका में मेरा दम घुटता था। वहाँ बोलने पर पाबंदी है। हनुमानजी मिले तो मुझे आप से मिलनेकी उतावली हो गई। मैं आपसे केवल मित्रता की आशा लेकर आया हूँ, , मुझे कुछ नहीं चाहिए।"
श्रीराम बोले " हम अपनी ओर से आपको लंका का राजा घोशित करते है। हम बहुत जल्दी रावण को युद्ध में हरा कर राजा के पद से हटा देंगे। आज से हमारी ओर से आप लंकेश हैं।
विभीषण न-न करते रहे, लेकिन राम ने ज़मीन से धूल ली और मिट्टीसे ही विभीषण का तिलक करके कहा लंकेश विभीषण की जय हो।
सबने विभीषण की जय-जय कार की।
फिर वे सब लोग समुद्र किनारे आकर खुले मैदान में बैठ गये।
राम ने विभीषण से भी पूछा कि आप तो समुद्र के किनारे रहते हैं आप ही बताओ कि समुद्र पार करने का-का क्या रास्ता अपनाया जाय।
विभीषण जवाब देते इसकेपहले ही कुछ शोरगुल गूंजा। सबका ध्यान गया तो पता चला कि बानर लोग दो बानर जैसे दिखते युवकों को पकड़ कर ला रहे हैं।
जामवंत ने बताया कि ये दोनों लंका के जासूस हैं और विभीषणजी के पीछे-पीछे यहाँ तक आये हैं। ये लोग बानरों का वेश बना कर हमारी सारी बातें सुन रहे थेकि हमारे जासूसों को शक हो गया। फिर तलाशी ली गई तो इनके पास ऐसी चीजें मिली जिनसे इन पर शंका बढ़ रही थी सो इन्हे हमने गिरफतार कर लिया है।
विभीषण ने पहचाना से तो लंका के प्रसिद्ध जासूस शुक और सारन है। ये दोनांे कई तरह की भाषायें जानते हैं और कई तरह के वेश बदलने में माहिर हैं।
सुग्रीव ने कहा कि इनके नाक-कान काट लिये जायें। हनुमान ने कहा कि इनके यहाँ तो अंग-भंग करने की परंपरा है, इनकेसाथ भी वही किया जाय।
जामवंत बोले "प्रभूू, किसी दूत या गुप्तचर के साथ अपमान भरा व्यवहार नहीं होना चाहिए।"
राम बोले "इन्हे छोड़ दो।"
लक्ष्मण ने कहा "तुम लोग निडर रहो। जाओ और रावण को मेरा एक संदेश ज़रूर देदेना कि उसने जो काम किया है वह ठीक नहीं है। हम जल्दी ही उसे आकर उसी के घर में सजा देंगेै"
शुक और सारन ने सिर झुका कर उनकी बात से सहमति प्रकट की और अनुमति मिलते ही समुद्र तट की ओर दौड़ लगा दी। देखते ही देखते वह पानी में कूदे और उन्होंनेपानी में छुपी एक नौका को बाहर निकाल लिया। फिर उन लोगांें ने नाव के चप्पू संभाले ओर तेज गति से लंका की दिशा में चले गये।
राम ने दुबारा विभीषण से पूछना चाहा तो जामवंत बोले "प्रभू हमारी सेना बहुत बड़ी है। इसके द्वारा तैर कर समुद्र पार करना या नावों से पार कराना बहुत कठिन होगा। इसलिए नल और नील नाम के हमारे दो बानर चाहते हैं कि उनकी बात सुन ली जाय।"
राम ने अनुमति दी तो नल और नील को बुलाया गया। नल ने बताया कि इस पूरे समुद्र तट के किनारे ऐसे पत्थर मिलते है जिनमें वज़न नहीं है, इन्हे समुद्र में तैराकर कर आपस में बाँध दिया जाये तो नाव की तरह का एक लम्बा पुल बन सकता है।
सबको यह सुझाव अटपटा लगा रहा था कि समुद्र पर तैरता हुआ इतना बड़ा पुल भला कभी बन भी सकता है।
सबको लगा कि यह सुझाव ठीक है लेकिन एक आशंका थी कि इतना बड़ा पुल बनने में बहुत समय लग जायेगा। नल और नील ने कहा कि अपने कुछ साथियों को यह काम सिखा देंगे, फिर पूरी सेना पत्थर ला-लाकर समुद्र में डालती जायगी और इस तरह जल्दी ही पुल बन जायगा।
काफी सोच विचार के बाद राम ने सहमति दी तो नल और नील ने काम शुरू कर दिया। सेना के सारे सैनिक जुट गये। नल नील ने दधिमुख, केहरि, निसठ और सठ नाम के अपने दोस्तों का भी यह काम सिखा दिया तो काम ने तेजी पकड़ ली और जामवंत ने ऐसी व्यवस्था कर दी कि पूरी सेना को तीन भागों में बांट दिया। हर छै सात घण्टे बाद एक भाग के लोग काम में लुट जाते और इस तरह से रातोे-दिन काम चलने लगा।
हर आदमी के मन में उत्साह था, सबको उत्सुकता थी कि कैसे पुल बनेगा और दउस पर इतनी बड़ी सेना कैसे जा पायेगी। इसलिए जितना हिस्सा बन जाता उस पर सेना की एक टुकड़ी धम्म-धम्म करके चलती और उसकी मजबूती को ढंग से परखती। पुल सचमुच ख़ूब मज़बूत बन रहा था। सबको नील और नल की शिल्प कला पर हैरानी होती।
लग रहा था कि महीनों में जाकर यह काम पूरा होगा लेकिन सात दिन में ही सारा काम निपट गया।
फिर जब पूरे पुल की मजबूती देखली गयी तो श्रीराम से पुल पर चलने की प्रार्थना की गई। राम-लक्ष्मण के साथ पहले उनके सचिव और मित्र पुल पर से निकले इसके बाद में सेना ने निकलना शुरू किया।
सारी सेना सुबह से दोपहर तक समुद्र के पार हो गई।
रास्ते में एक ओर अपने नकली टापू पर खड़ा मैनाक हाथ हिला कर सेना का उत्साह वर्धन करता रहा।
उस पार पहुँच कर जामवंत ने बानरों को कहा कि वे चाहें तो अब आराम कर सकते हैं और चाहें तो खेल-कूद सकते हैं।
राम और उनके मित्र तो कुछ शिलाखण्डों को बैठने के आसन बना कर बैठ गये और बहुत से बानर खेल-कूदने में मशगूल हो गये। जिन्हे भोजन का बंदोबस्त करना था वे फलदार वृक्षों और जड़ी-बूटियों की तलाश में लग गये।