विराट कोहली और टाइम मशीन / जयप्रकाश चौकसे

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विराट कोहली और टाइम मशीन
प्रकाशन तिथि : 26 अक्टूबर 2018


विराट कोहली ने एकदिवसीय क्रिकेट में 10 हज़ार रन का आंकड़ा पार कर लिया है, जो केवल 13 बल्लेबाज कर पाए हैं। जिनमें पांच भारतीय बल्लेबाज शामिल हैं। विराट कोहली की प्रतिभा और परिश्रम को नमन परंतु गौरतलब है कि सुनील गावस्कर के दौर में वेस्ले हॉल, ग्रिफिथ, डेविडसन और लिडवाल जैसे घातक गेंदबाज सक्रिय थे। सचिन तेंडुलकर के दौर में इमरान खान और वकार यूनुस जैसे गेंदबाज 'रिवर्स स्विंग' करते थे। विराट कोहली के दौर में किसी भी टीम के पास उतने घातक गेंदबाज नहीं हैं।

विराट कोहली के पक्ष में यह बात जाती है कि अब क्रिकेट बारहमासी हो गया है और लगातार खेलते रहना थका देने वाला अनुभव हो सकता है। खेलने के लिए की गई लंबी यात्राएं भी कठिन होती हैं। आज बल्लेबाज अपने शरीर को चोट से बचाने के लिए भांति -भांति के पैड्स का इस्तेमाल करता है। गावस्कर के दौर में एब्डॉमिनल गार्ड और हाथ पैरों के लिए कवच उपलब्ध थे। कोहनी को बचाने वाले एलबो पैड तो स्वयं सुनील गावस्कर ने बनवाया था। हेलमेट का उदय भी काफी बाद में हुआ है। एक तेज गेंद ने नरी कॉन्ट्रेक्टर को घायल कर दिया था। बड़ी कठिनाई से प्राण बचाए गए थे। वर्तमान में तो बल्लेबाज एक संपूर्ण जिरहबख्तर पहनकर बल्लेबाजी करने आता है। अब वह 'बाहुबली' के पात्र की तरह नज़र आता है। आज थर्ड अंपायर से निर्णय लेने में सहायता मिलती है परंतु यह सुविधा सुनील गावस्कर के दौर में उपलब्ध नहीं थी। टेक्नोलॉजी इतनी शक्तिशाली हो गई है कि मनुष्य की सोच को भी प्रभावित करती है।

विश्वनाथ को बल्लेबाजी करते देखना एक विरल अनुभव था। उसने बल्लेबाजी को कला के स्तर पर पहुंचा दिया था। सैयद किरमानी और फारुख इंजीनियर की विकेट कीपिंग देखने में आनंद आता था। फारुख इंजीनियर ने एक मैच में लंच के पहले ही 96 रन बनाए थे। वे अत्यंत विस्फोटक बल्लेबाज थे। अनिल कुंबले एक मात्र फिरकी गेंदबाज थे, जिनके द्वारा की गई गेंदबाजी को मध्यम तेज गेंदबाजी भी कहा जा सकता है। सुभाष गुप्ते और रिची बैनो जैसे स्पिनर आज देखने को नहीं मिलते। बापू नाडकर्णी इतने सटीक गेंदबाज थे कि एक ही जगह सारी गेंद फेंक सकते थे। अगर आप एक रुपए का सिक्का पिच पर रख दें तो बापू नाडकर्णी की हर गेंद सिक्के पर ही पड़ती थी और उस सिक्के का मूल्य आज के रुपए की तरह लगातार अपना मूल्य नहीं खो रहा था।

ऑस्ट्रेलिया में आयोजित विश्व कप स्पर्धा में पाकिस्तान अपने लीग मैच ही हार रहा था परंतु इमरान खान की गेंदबाजी और नेतृत्व ने उन्हें विश्व कप विजेता बना दिया। क्या अपनी राजनीतिक पारी में भी इमरान खान उसी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तान की अवाम का जीवन सुविधाजनक बना पाएंगे? पाकिस्तान की सियासत का केंद्र फौज रही है और भ्रष्टाचार व्यापक है। दोनों देश एक ही गोश्त के दो टुकड़ों की तरह हैं। अत: एक में कीटाणु पड़ जाए तो दूसरा उस रोग से कैसे बच सकता है। पाकिस्तान में कठमुुल्लापन भी छाया हुआ है। इधर हिंदुत्व तो उधर मौलवी फतवा देते रहते हैं।

बहरहाल, अगर टाइम मशीन में बैठाकर हम कोहली को वेस्ले हॉल, ग्रिफिथ और डेविडसन के कालखंड में भेज सकें तो उनकी प्रतिभा का आकलन अलग ढंग से हो सकता है और अगर इसी टाइम मशीन में बैठकर सर गैरी सोबर्स, वीक्स, वॉटसन, नील हार्वे आज की गेंदबाजी को धुनकें तो रनों का पहाड़ खड़ा हो जाएगा। परेशानी तो तब होगी जब हम कोहली को भारत के पांचवें छठे दशक में भेजें तो अनुष्का शर्मा को मधुबाला से टकराना होगा और स्लिप में खड़ी मीना कुमारी उनका कैच पकड़ सकती हैं। इस संदर्भ में गौरतलब है कि क्रिकेट का आंखों देखा हाल सुनाने वालों का भाषाई अज्ञान के साथ खेल की बारीकी नहीं समझ पाना। वे वर्तमान का वृत्तांत नहीं देते हुए, प्राय: विगत के गलियारे में गुम हो जाते हैं या प्रशिक्षक बनकर खिलाड़ियों को सिखाने लगते हैं। सबसे अधिक स्तर गिरा है इस क्षेत्र में। क्रिकेट कमेंट्री भारतीय ने ईजाद की थी और रेडियो पर हाल सुनाया जाता था। उनका नाम विस्मृत हो गया परंतु वे अकेले ही पांचों दिन खेल का विवरण देते थे। आज की तरह चार लोगों की टीम नहीं होती थी। इस तरह क्रिकेट पत्रकारिता का स्तर बहुत ही गिर गया है। नेविल कार्डस का विवरण पढ़कर कविता सुनने का आनंद आता था। नेविल कार्डस लिखते हैं कि जब तेंडुलकर बल्लेबाजी करने आए तो बल्ले की चौड़ाई साढ़े तीन इंच थी जैसा कि नियम है परंतु जैसे-जैसे खेल चलता रहा, हमें आभास होता था मानो उनके बल्ले की चौड़ाई 3 फीट हो गई है और कोई भी गेंद विकेटकीपर के दस्ताने में जाती ही नहीं है। बल्ले के बीच में गेंद लगने पर एक मधुर ध्वनि निकलती है। खराब शॉट कर्कश ध्वनि को जन्म देता है। कई स्ट्रोक्स विलंबित ताल की तरह ध्वनित होते हैं। क्रिकेट मैदान पर राग दरबारी गूंजता है। क्रिकेट को संगीत की मात्रा में वर्णित किया जा सकता है। कोई आश्चर्य नहीं है कि लता मंगेशकर को यह खेल अत्यंत पसंद है। आज क्रिकेट खिलाड़ी करोड़ों रुपए प्रति वर्ष कमाते हैं। विज्ञापन फिल्मों में काम करते हैं। पॉली उम्रीगर के दौर में खिलाड़ी को मात्र ढाई सौ रुपए प्रतिदिन लॉन्ड्री के नाम पर दिया जाता था और मैच तीन दिन में समाप्त हो तो पांच दिन का भत्ता नहीं मिलता था। सब चीजें निरंतर बदलती रहती है परंतु क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की दकियानूसी बनी रहती है।