विरासत का व्यापार, व्यापार की सियासत / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 01 मई 2018
आजकल घटित हो रही बातें और बयानबाजी 'बिलीव इट ऑर नॉट' में शामिल की जा सकती हैं। इन्हें 'गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स' में भी शामिल किया जा सकता है। एक खबर है कि दिल्ली के लाल किले के रखरखाव व पर्यटकों से वसूली का अधिकार एक औद्योगिक घराने को दे दिया गया है। रखरखाव संभवत: यही कंपनी रखेगी, परन्तु पर्यटकों को महंगे दाम चुकाने होंगे। महंगाई के दौर में ऐतिहासिक स्थानों को देखना सस्ता कैसे हो सकता है। मध्यप्रदेश की सरकार भी सांची और खजुराहो के लिए इसी तरह की व्यवस्था करने जा रही है गोयाकि ऐतिहासिक विरासत को व्यापार बना दिया गया है। लोभ और लाभ से संचालित विचार प्रक्रिया इससे अधिक नहीं सोच सकती। अजंता और एलोरा की गुफाओं पर भी किसी व्यापारी का नियंत्रण कभी भी घोषित किया जा सकता है। इस तरह सोचने वाले किसी दिन उपनिषद और वेदों को भी व्यापार जगत को सौंप सकते हैं। इस तरह ग्रन्थों के ठेके दिए जाने पर जर्मनी ऊंची बोली लगा सकता है क्योंकि वह इनका अनुवाद करने वाला पहला देश रहा है। आर्य जाति के श्रेष्ठ लोग सदियों पूर्व जर्मनी में बस गए और उनमें कमतर खैबर की घाटी पार करके गंगा तट पर आ बसे।
कई दशक पूर्व नेहरू युग में फिल्मकार चेतन आनंद ने ऐतिहासिक इमारतों पर एक कार्यक्रम रचा था जिसमें सर्च लाइट जिस हिस्से पर पड़ता है, उस हिस्से का इतिहास और उसकी बनावट की बारीकियों का विवरण कॉमेन्ट्री द्वारा किया जाता था। यह 'साइट एन्ड साउंड' और 'लाइट एन्ड शेडो' की जुगलबंदी की तरह था। यश चोपड़ा की फिल्म 'लम्हे' का क्लाइमैक्स इसी तरह के स्थान पर रचा गया था। 'लम्हे' के नायक का कोई खून का रिश्ता नायिका से नहीं था परन्तु उसकी पुण्यतिथि पर हर वर्ष वह लंदन से भारत आकर हवन करता था और एक बार हवन कुंड से उठती हुई लपट के मध्य वह नायिका की बेटी को पहली बार देखता है। इसी दृश्य के कारण उनकी प्रेम कहानी कमजोर हो जाती है। सनातन रीति रिवाजों को मानने वाले दर्शक के लिए हवन की लपट के मध्य देखी गई कन्या से उपजी प्रेम कथा को पचाना कठिन होता है।
बहरहाल अब लाल किले की देखरेख व्यापारी के हाथ है तो भय लगता है कि कहीं वह लाल रंग पर गेरुआ या भगवा रंग न चढ़ा दे क्योंकि उत्तर प्रदेश में ऐसा किया गया था परन्तु अवाम के विरोध के बाद जस का तस कर दिया गया। बहरहाल लाल किले के इतिहास में यह बात भी शामिल है कि सुभाषचंद्र बोस की सेना के कुछ लोग अंग्रेज सरकार ने गिरफ्तार किए थे और उनका मुकदमा पारम्परिक अदालत में नहीं करके अदालत लाल किले में लगाई गई थी और बतौर वकील पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने जीवन का पहला और आखरी मुकदमा लाल किले में लड़ा था। वे सुभाषचंद्र बोस के साथियों की पैरवी करने प्रस्तुत हुए थे। महात्मा गांधी व नेहरू का भगतसिंह या सुभाषचंद्र बोस का विरोधी होना चतुराई से रचा गया झूठ है। मंजिल पर उन दोनों का कभी कोई विवाद नहीं था, रास्ते जरूर अलग थे।
बारह मई सोलह सौ उनचालीस के दिन किले का निर्माण प्रारंभ हुआ और उस्ताह एहमद इसके आर्किटेक्ट थे जैसे ईसा आफन्दी ताजमहल के आर्किटेक्ट थे। गौरतलब यह है कि पर्सिया से आए इन वास्तुविदों ने भारत में जिस तरह की इमारतें गढ़ीं, वे उन इमारतों से एकदम अलग हैं जो उन्होंने पर्सिया में बनाई थीं। इन उस्तादों का विश्वास था कि इमारत जमीन से वैसे ही उभरना चाहिए जैसे पौधे जमीन से अंकुरित होते हैं। आधुनिक बहुमंजिला इमारतें तो खंजर की तरह धरती के सीने में ठोक दी गई लगती हैं। छ: अप्रैल सोलह सौ अड़तालीस को काम पूरा हुआ।
यह मुगल बादशाहों का निवास स्थान 1856 तक रहा। सारी मुगल इमारतों के आंगन में पानी की नहरें बनाई गई हैं और उन्हें नहरे बहिश्त भी कहा गया है। प्रथम मुगल बादशाह बाबर ने भारत में बस जाने का निर्णय ही इसलिए लिया था कि वह नदियों से बहुत प्रेम करता था। शाहजहां ने ताजमहल और लाल किले का निर्माण कराया था। मुगल बादशाहों का इमारत बनाने का जुनून का कारण यह था कि इसके माध्यम से वे रोजगार देते थे और उनकी इकोनॉमी भी धड़कती रहती थी। लाल किला 254 एकड़ में फैला है और अंडाकार आकार लिए हुए है। बहादुर शाह जफर इसमें निवास करने वाले आखिरी बादशाह थे। मोहम्मद शाह 'रंगीला' इसमें बीस वर्ष तक रहा। उसके संगीत प्रेम और नृत्य के प्रति झुकाव के कारण उसे रंगीला कहा गया।
हर वर्ष पंद्रह अगस्त को भारत के प्रधानमंत्री लाल किले पर राष्ट्रध्वज फहराते हैं और देश को संबोधित करते हैं। लाल किले के रखरखाव को ठेके पर दिए जाने के विषय में एक नेता ने कहा कि इस तरह तो संसद भवन की देखरेख भी व्यापारी को दी जा सकती है। दरअसल अनेक सांसदों को चुनाव लड़ने के लिए धन औद्योगिक घरानों से मिलता है, अत: उनके हितों की रक्षा भी करना पड़ती है। इस तरह देखें तो लाल किला पहली इमारत नहीं जिसकी देखरेख व्यापारी के सुपुर्द की गई है।