विरासत / एस. मनोज

Gadya Kosh से
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घनानंद बाबू जीवन की नैतिकता और मर्यादाओं का पालन करते हुए आदर्श जीवन जीते रहे और उन्होंने अपने दोनों बेटों रूपक और दीपक को उच्च कोटि की शिक्षा दिलवाया। दोनों भाई आईआईटियन बनकर निजी कंपनी में सिंगापुर में नौकरी करने के लिए चले गए. दोनों भाई अलग-अलग कंपनी के बड़े अधिकारी बने। समय के साथ घनानंद बाबू सेवानिवृत्त हुए और पेंशन की राशि से रांची में एक डुप्लेक्स खरीदें। समय बीतता गया। वे वृद्ध हुए और एक दिन ऐसा आया जब उनकी संगिनी भी संग छोड़कर विदा हो गईं। अब इधर घनानंद बाबू का एकाकी जीवन उन्हें परेशान करता और उधर दोनों भाई अपने पिता की चिंता में परेशान रहा करते।

घनानंद बाबू दोनों भाइयों को बार-बार फोन पर कहते कि दोनों भाइयों में से कोई एक भारत आ जाय। यहाँ भी किसी बड़ी कंपनी में नौकरी लग जाएगी। रांची में रहे। मगर दोनों भाइयों का जवाब होता-पापा, आप सिंगापुर चले आएँ। हम लोगों के साथ ही रहें। अब गांव-घर का माया-मोह छोड़ दें।

ना इधर घनानंद बाबू राँची छोड़ते और ना उधर दोनों भाई सिंगापुर। बहुत दिनों तक दोनों ओर से आग्रह चलता रहा और जब माँ की पुण्यतिथि पर दोनों भाई राँची आए तब घनानंद बाबू ने दोनों भाइयों पर दबाव बनाया। फिर दोनों भाई आपस में बात कर पिता से बात करने के लिए पहुंचे। दीपक पापा से बोला-पापा, आप हमलोगों के साथ सिंगापुर नहीं चलेंगे तो छह महीने अपने गांव में जाकर रहिए और तब मैं या भैया राँची चला आऊँगा। आप गांव में छह महीने रहिएगा तब फिर हमलोगों को राँची आकर रहने के लिए कहिएगा।

घनानंद बाबू बेटे की बात सुनकर तमतमा गए. गुस्से से चेहरा लाल हो गया। वे लगभग चीखते हुए बोले-मैं अब गांव में रहूँ? गांव में क्या सुविधाएँ हैं?

पापा की इन बातों को सुनकर रूपक दीपक की ओर देखते हुए बोला-दीपक अब तुम ही पापा को समझाओ कि हमलोग राँची में आकर कैसे रहें।

घनानंद बाबू के चेहरे पर गुस्से के साथ आश्चर्य के भाव उभर आए और उन्होंने गुस्से में कहा-मतलब जिस प्रकार से मेरे लिए गांव है उसी प्रकार से तुम्हारे लिए रांची?

दीपक बोला-हाँ पापा।

फिर घनानंद बोले-और हम जो राँची से लेकर गांव तक इतनी बड़ी विरासत खड़ा किये, उसका क्या होगा?

दीपक निर्विकार भाव से बोला-किसी को दान में दे दीजिए या ट्रस्ट बना दीजिए या फिर गांव के लोगों के लिए ऐसे ही छोड़ दीजिए.

आश्चर्य और गुस्से में घनानंद बाबू के मुंह से आवाज नहीं निकल रहा था, किंतु उन्होंने अपने आप को कुछ देर में शांत करते हुए बोला-इतनी बड़ी विरासत और इसको ऐसे ही छोड़ दूं?

दीपक बोला-हाँ पापा। अब यह जमीन-जथा, घर-मकान विरासत नहीं होते। यह पुरानी अवधारणा है। अब विरासत होते हैं लोगों के कर्म और उनके बच्चे। दीपक रूपक की ओर घूम कर बोला-क्या भैया, मैं ठीक बोल रहा हूँ ना। रूपक अपने छोटे भाई की बातों का समर्थन करते हुए बोला-पापा, लोग अपने बेटों-बेटियों के मानवीय गुणों का परिष्कार कर विश्व मानवता के कल्याण या विकास के लिए जो काम करते हैं वही उनकी विरासत होती है। पापा आपकी विरासत हूँ मैं और दीपक।

घनानंद बाबू विरासत की नई अवधारणा एवं भविष्य की परिकल्पना की बात सुन दोनों बेटों का मुंह देखते ही रह गए।