विरोधियों की मनोवृत्ति / क्यों और किसलिए? / सहजानन्द सरस्वती
कुछ लोगों ने , जो अब तक किसान-सभा में साथ थे , नागपुरवाले इस प्रस्ताव का विरोध किया। उनकी मनोवृत्ति समझना मुश्किल है। इससे पूर्व आंधार देश के पकाला स्थान में सन 1941 ई. के अक्टूबर में आल इंडिया किसान कमिटी की बैठक में जो प्रस्ताव स्वीकृत हुआ था युध्द के हीसंबंध में उसमें वह भी साथी थे , सहमत थे। उसमें यह स्पष्ट लिखा है कि “ यह कमिटी आजादी-पसंद भारतीय जनता और विशेषत: किसानों , मजदूरों , छात्रोंतथा युवकों के बहुत बड़े गिरोह पर जोर देती है वह सोवियत रूस को सभी तरह की संभव सहायता दें और नात्सीजर्मनी के विरुध्द होनेवाले युध्द को सभी मोर्चों पर तेज बनाने का काम करें “ ─ "The A.I.K.c. urges upon the freedom-loving people of India, particularly the vast bulk of Peasants and workers, students and youths, that they should render all possible to the U.S.S.R. and work for the intensification of war against Nazi Germany on all front."
नागपुरवाले प्रस्ताव से इसमें यही विशेषता है कि यह सोवियत को सभी प्रकार की संभव सहायता देने के सिवाय नात्सीजर्मनी के विरुध्द इस युध्द को सभी मोर्चों पर तेज बनाने की बात कहता है , जो बात नागपुरवाले में नहीं है। अब जरा सोचा जाएकि नात्सीजर्मनी के विरुध्द चलनेवाले युध्द को तेज करने का क्या अभिप्राय है , सो भी सभी मोर्चों पर ? इंग्लैंड या फ्रान्स में जो मोर्चा था उसी की मजबूती के लिए क्या करना जरूरी था ? क्या यह बात उनने सोची ? उस युध्द में सभी तरह की सहायता सभी जगह देने के अलावे इसका और अर्थ क्या हो सकता था ? दूसरी तरह से सभी मोर्चों पर उस युध्द में तेजी कैसे लाई जा सकती थी ? और जब सभी जगह उसमें मदद ही करना है तो फिर उस युध्द का या उसके उद्योगों काविरोधकैसे किया जा सकता था ? यह संभव कैसे था ? उस प्रस्ताव में यही परस्परविरोधी बात थी। कम-से-कम नागपुर मेंविरोधउठानेवालों के कामों और पकाला के प्रस्ताव में यही परस्परविरोधथा और इसे ही नागपुर के प्रस्ताव में रहने नहीं दिया गया यह कह कर कि “ शांति की ही तरह युध्द को टुकड़ों में बाँटा नहीं जा सकता “-"War like peace is indivisible." फिर उसमें मदद भी करें औरविरोधभी उसका ही करें यह संभव नहीं। इस तरह नागपुर के प्रस्ताव ने जो पकाला के कथन और विरोधियों के काम में होनेवाले पारस्परिकविरोधको मिटा दिया तो उचित था कि विरोधी लोग उसका स्वागत करते। मगर उनने विपरीत ही किया।