विवादास्पद फिल्म 'पद्मावत' पर मुख्यमंत्रियों का फतवा / जयप्रकाश चौकसे

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विवादास्पद फिल्म 'पद्मावत' पर मुख्यमंत्रियों का फतवा
प्रकाशन तिथि :15 जनवरी 2018


अमेरिका में पेंटागॉन पेपर्स के प्रकाशित होने के साथ ही एक बड़ा सरकारी घपला सामने आया। आर्थिक घपले सभी देशों में होते रहे हैं परंतु भारत में यह हाथ ठेले पर मोहल्ला दर मोहल्ला सब्जी बेचने की तरह होता है। स्टीवन स्पिलबर्ग ने निष्णात कलाकार मेरिल स्ट्रीप और सुपर सितारा टॉम हैंक्स अभिनीत 'पोस्ट' नामक फिल्म का निर्माण महज छह महीनों में कर दिया। किसी फिल्म में अभिनय करने के मेरिल स्ट्रीप के फैसले के साथ ही उसका आर्थिक जोखिम खत्म हो जाता है। उन्होंने आशु कवि की तरह फिल्म गढ़ी परंतु फिल्म इस तरह लगती है मानो वर्षों की योजना का परिणाम हो। फिल्म तकनीक पर उनकी पकड़ इतनी मजबूत है कि वे सिनेमा के आशु कवि लगते हैं। स्टीवन स्पिलबर्ग ने विज्ञान फंतासी प्रस्तुत की और उसमें जीवन दर्शन व नैतिक मूल्यों की गहन गंभीर चिंताओं को अभिव्यक्त किया है। उन्होंने सभी तरह की फिल्में बनाई हैं। उनकी फिल्म 'कलर पर्पल' में अदालत का दृश्य है। कक्ष में महान राष्ट्रपिताओं की तस्वीरें लगी हैं और आरोपी अपने गवाह के रूप में राष्ट्रपिताओं को बुलाना चाहता है।

अमेरिका में एक दौर में कथा फिल्मों का बनते रहना संदिग्ध हो गया था। उस दौर में स्टीवन स्पिलबर्ग ने रूठे हुए दर्शक को मना लिया। उन्होंने मनोरंजक और विचारोत्तेजक फिल्मों का निर्माण किया औैर अपने उद्योग को बचा लिया। आज भारत में दर्शक रूठ गया है। प्रदर्शन के पहले दिन ही दर्शक अभाव के कारण शो निरस्त किए गए हैं। कथा फिल्म के संकट का मूल कारण यह है कि हमारे फिल्मकार उबाऊ फिल्में बना रहे हैं। दूसरा कारण यह है कि प्रांतीय मुख्यमंत्री सेन्सर द्वारा प्रमाणित फिल्म के प्रदर्शन को अवैध घोषित कर रहे हैं। सरकार की एक बांह रजामंदी दे रही है और दूसरी बांह नकार रही है गोयाकि ट्रैफिक सिग्नल पर लाल और हरी बत्ती साथ-साथ जल रही है। अब अवाम क्या करे? संजय लीला भंसाली ऐेसे फिल्मकार नहीं हैं, जिनसे किसी महान फिल्म की आशा की जा सके परंतु उनकी फिल्म का प्रदर्शन नहीं रोका जाना चाहिए। फिल्म पर फैसला केवल दर्शक ही दे सकता है। भंसाली मन ही मन हिंदुत्व के हामी रहे हैं परंतु वह इस तरह वापस आकर उन्हें ही नष्ट करेगा; उन्होंने सोचा भी नहीं था। संकीर्णताएं ऐसे ही बूमरेंग होती हैं। गौरतलब है कि अपने सीरियल 'चाणक्य' के लिए ख्यात फिल्मकार द्विवेदीजी की सनी देओल अभिनीत 'अस्सीघाट' चार वर्ष की अदालती लड़ाई के बाद प्रदर्शन के लिए तैयार है। फिल्म प्रारंभ हुई थी सनी देओल की सितारा हैसियत की दोपहर में और प्रदर्शित हो रही है उनके कॅरिअर के संध्याकाल में। इस तरह रुपए का माल चवन्नी हो जाता है, जिसका नोटबंदी से संबंध नहीं है।

ग्राम पंचायतों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक सारी नियुक्तियां योग्यता के आधार पर न करके एक राजनीतिक धारा में विश्वास के आधार पर हो रही है। यह शैली फौजी नियुक्तियों में आत्मघाती हो सकती है। सोमनाथ पर आक्रमण होने के पहले आसपास के राजाओं ने अपनी सेना मंदिर की रक्षा के लिए भेजना चाही तो पुजारियों ने दंभ से करा कि वे मंदिर के चारों ओर खड़े होकर मंत्र जाप करेंगे और शत्रु सेना का विनाश हो जाएगा। इसी दृष्टिकोण के कारण सोमनाथ में पराजय हुई। मंत्र जाप के बीच संहार होता गया।

उच्चतम न्यायालय में हुई घटना अत्यंत चिंताजनक है। कुमार अंबुज की शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली कविता की कुछ पंक्तियां इस तरह है, 'जैसा कि न्याय, जो बार-बार मांगने से ही मिल पाता है थोड़ा बहुत और न मांगने से कुछ नहीं सिर्फ अन्याय मिलता है। मुसीबत यह भी है कि तुम नहीं मांगोगे, तो वह समर्थ आदमी अपने लिए मांगेगा न्याय और तब सब मजलूमों पर होगा ही अन्याय… लेकिन, एक पुरानी नज़ीर और कानून की नई तकरीर, न्याय को एक बार फिर कर देगी मजबूर, यह रोजमर्रा की बात है इसलिए, हो सकता है तुम्हें खास अफसोस भी न हो कि आखिर तुम्हारे सामने ही एक स्त्री ने आगे कुछ भी कहने से इनकार करते हुए, धीमी थकी लेकिन साफ आवाज में कहा था, नहीं मुझे न्याय नहीं चाहिए और उस बूढ़े की बुदबुदाहट भी तुम्हें याद होगी, इस न्याय से तो अन्याय बेहतर होता।'

जाने क्यों याद आती है अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नो अभिनीत फिल्म 'पिंक' की जिसमें वह 'ना' कहती है, जिसे अनसुना किया जाता है। दसों दिशाओं में गूंज रहा है 'और नहीं, अब और नहीं।'