विवाह, रीति-रिवाज और प्रेम / जयप्रकाश चौकसे

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विवाह, रीति-रिवाज और प्रेम

प्रकाशन तिथि : 04 जुलाई 2012

ईशा देओल के विवाह समारोह में सनी और बॉबी देओल शामिल नहीं हुए और अभय देओल ने दुल्हन के भाई की सारी रस्मों को निभाया। इस तरह की बात प्रचारित की जा रही है कि धर्मेद्र भी बेमन से शामिल थे और इस असहयोग की वजह यह बताई जा रही है कि विवाह हेमाजी की इच्छा के मुताबिक दक्षिण भारतीय परंपरा में किया गया, इसलिए परिवार के भीतर का ‘पंजाब’ उसमें शामिल नहीं हुआ। धर्मेद्र की तबीयत कुछ खराब थी और उनकी यह उम्र बेटी के विवाह में भांगड़ा करने की नहीं है।

सनी और बॉबी किस वजह से नहीं आए, यह बताना कठिन है, परंतु कुछ समय पूर्व ही हेमाजी द्वारा निर्मित एवं ईशा देओल अभिनीत फिल्म के प्रदर्शन का सारा उत्तरदायित्व सनी देओल ने ही संभाला था और उनके सहयोग के बिना इस फिल्म का प्रदर्शन संभव नहीं था। अत: संकट की घड़ी में धर्मेद्र का परिवार एकजुट रहता है। खुशी के मौके पर आने न आने से यह ज्यादा जरूरी है। यह भी संभव है कि दक्षिण भारतीय परंपरा से विवाह करने को धर्मेद्र की स्वीकृति मिली हो। ज्ञातव्य है कि श्वेता बच्चन का विवाह भी उनकी माता जया की इच्छानुरूप बंगाली रीति-रिवाज से हुआ था, परंतु उस विवाह में वैदिक रस्में भी गरिमा से निभाई गई थीं। कन्या के विवाह में माता की इच्छा को महत्व देने का आदर किया जाना चाहिए। ईशा के पति के चुनाव में धर्मेद्र की रजामंदी शामिल रही।

विवाह में रीतियों से ज्यादा महत्व इस बात का है कि वर-वधू के बीच प्रेम है या नहीं, क्योंकि इस लोकप्रिय धारणा में कोई दम नहीं है कि जीवनसाथियों के विचार एक जैसे हों। असल बात यह है कि विचारों में भिन्नता होते हुए भी प्रेम के कारण लोग जुड़े रहे हैं। आपसी समझदारी व्यापारिक संबंधों में आवश्यक है, परंतु विवाह केवल प्रेम पर ही टिका रह सकता है। दो विपरीत राजनीतिक विचारधाराओं के लोगों के बीच भी विवाह टिका रहता है। व्यवसाय में समझदारी यह हो सकती है कि एक भागीदार निर्माण देख रहा है, दूसरा विक्रय व्यवस्था देख रहा है, परंतु विवाह में केवल प्रेम ही एकमात्र तथ्य होता है।

विवाह के रीति-रिवाज हर क्षेत्र में अलग-अलग होते हैं। जनजातियों में भी भिन्न-भिन्न रीति-रिवाज होते हैं। समुदाय की आर्थिक स्थिति निर्णायक तत्व है। साधनहीन जनजातियों में चंद कुल्हड़ हाथ की बनी शराब दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे के सिर पर डालते हैं और विवाह हो जाता है। कुछ जनजातियों में रिवाज है कि दुल्हन का भाई हवा में एक तीर चलाता है और दूल्हा-दुल्हन को गोद में उठाकर तीर के गिरने की जगह तक दौड़ता है और सहेलियां प्रयास करती हैं कि वह उसे गिरा दे। अगर दूल्हा उसे गिरा देता है तो शादी खारिज हो जाती है। क्या यह एक तरह से दूल्हे की सेहत का इम्तिहान है? याद कीजिए आर. बाल्की की फिल्म ‘चीनी कम’ में उम्रदराज अमिताभ बच्चन मध्य अवस्था की तब्बू से प्रेम करते हैं तो तब्बू उनसे कहती हैं कि उस दरख्त दौड़कर जाएं और दौड़ते हुए वापस लौटें, तब वह निर्णय करेंगी। यह दृश्य भी दम-खम का इम्तिहान था, परंतु हास्य के इस लहजे से फिल्माया गया था कि इसके भीतर छिपा संकेत उभरकर सामने ही नहीं आया।

विवाह के रीति-रिवाजों का भरपूर लाभ सीरियल-संसार उठाता है और वे अपनी कुछ रीतियां इजाद भी करते हैं। समाज चुहलबाजी के लिए बहाने खोजता है। जीवन की एकरसता से थोड़ी-सी देर के लिए आजादी पाने के लिए रीति-रिवाजों का आविष्कार किया गया है। तमाम रिवाजों में समाज की दबी हुई इच्छाएं अभिव्यक्तहोती हैं। साली को आधी घरवाली कहने के पीछे भी चुहलबाजी का ही खेल है। सामंतवादी दौर में दुल्हन के साथ एक सखी भी विदा की जाती थी और पति का दिल बहलाना उसका दायित्व था। गांधारी की सखी सुखदा भी हस्तिनापुर आई थी, जिसने ताउम्र गांधारी की सेवा की।

धृतराष्ट्र और सुखदा के संबंध के परिणामस्वरूप एक बेटे का जन्म हुआ, जिसे सौ कौरवों में शामिल नहीं किया गया। इस पुत्र का नाम युयुत्सु था और इसने पांडवों का समर्थन किया है। दासी मर्यादा की कोख से जन्म लेने के कारण विदुर को सबसे अधिक विद्वान होने के बाद भी राजा नहीं बनाया गया। अगर विदुर को राजा मान लेते तो महाभारत का युद्ध नहीं होता। समाज में लोकप्रिय तमाम रीति-रिवाजों की गंगोत्री भी एक ही है। शादी के सारे रीति-रिवाज प्रकृति के स्वरूपों पर आधारित हैं।