विवाह में चीनी कम या चीनी ज्यादा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :22 फरवरी 2016
एक निर्माता ने सगर्व कहा कि उसकी फिल्म में प्रस्तुत प्रेम-कथा शयन कक्ष से शुरू होकर विवाह की वेदी तक जाती है। शयन कक्ष प्रेम कहानियों का कब्रिस्तान भी रहा है और नर्सरी भी रहा है। यह मामला एक आदिम इच्छा से जुड़ा है कि विवाह में शारीरिक सम्बंधों का दोनों पक्षों के लिए संतोषप्रद होना जरूरी है। एक अंग्रेजी उपन्यास के प्रारंभ में महात्मा गांधी का यह वाक्य छपा है कि 'विवाह दो आत्माओं का मिलन है शरीर के माध्यम से।' उस उपन्यास का नायक माल ढोने वाले पानी के जहाज पर काम करता है और महीनों परिवार से दूर रहता है। अपनी पत्नी की याद वह इस शिद्दत से करता है कि उसे पत्नी की शारीरिक मौजूदगी का विश्वास हो जाता है, जबकि वह हजारों मील दूर अपने घर बैठी है। उस उपन्यास का नाम 'बॉडी एंड सोल' था जो मैंने अरसे पहले बुरहानपुर की म्यूनिसिपल कमेटी द्वारा स्थापित वाचनालय में पढ़ी थी। अब इस बात का कोई अर्थ नहीं कि हमारे देश के वाचनालयों का क्या हाल है। राजकुमार हीरानी की फिल्म 'लगे रहो मुन्नाभाई' में एक विलक्षण दृश्य वाचनालय में फिल्माया गया है, जहां मवाली मुन्नाभाई किताब पढ़ते-पढ़ते सो गया है और साक्षात गांधीजी से उसका वार्तालाप होता है।
बहरहाल, विवाह जैसे रिश्ते में दूल्हा-दुल्हन की शारीरिक क्षमता का प्रश्न गौण नहीं है, परन्तु यह भी सच है कि प्रेम शरीर के परे भी जाता है। 'इन्टीमेसी' नामक उपन्यास में एक दम्पती के बीच यही समस्या है और पत्नी उसे छोड़कर एक मित्र के साथ भाग जाने का इरादा करती है, परन्तु ऐन समय पर उसे वे सारे सुख के क्षण याद आते हैं, जो उसने अपने नपुंसक पति के साथ गुजारे हैं और वह उसी के साथ ताउम्र रहने का निर्णय करती है। प्रेम सेक्स के परे भी होता है और शरीरों के क्षेत्रफल से कहीं बड़ा उसकी भावना का क्षेत्र है। 'इन्टीमेसी' नामक पुस्तक या तो एरिच मारिया रिमार्की ने लिखी है या अल्बर्तो मोराविया ने लिखी है। उम्रदराज लोगों की याददाश्त का हिरण ऐसी ही छलांगें लगाता है। प्रेम और विवाह में शारीरिकता की भूमिका के मामले में जनजातियां और आदिवासी लोग आधुनिक लोगों से कम दुविधाग्रस्त होते हैं। इस तरह की दुविधाएं शहरी मध्यम वर्ग के अवचेतन में हमेशा छाया-युद्ध में रत रहती है। एक जनजाति में दूल्हे को दुल्हन को गोद में उठाकर भागना होता है और परिवार के बच्चे उनसे छेड़छाड़ करते हैं, ताकि दूल्हे की बाहों में से दुल्हन नीचे गिर जाए। ऐसे में विवाह प्रक्रिया रद्द कर दी जाती है और वहां इसको एक सहज चीज मानते हैं। यह भी फिजिकल कम्पेटिबिलिटी का इम्तहान है।
उपरोक्त बात को जीनियस आर. बाल्की ने अपनी फिल्म 'चीनी कम' में प्रस्तुत किया है। फिल्म में अधेड़ नायिका अपने से उम्र में काफी बड़े अपने प्रेमी को कहती है कि वह दौड़कर इंगित किए हुए वृक्ष को छूकर आए। अमिताभ यह काम करते हैं और पूछते हैं कि ऐसा क्यों कहा गया। नायिका मुस्कराकर कहती है कि शादी का इरादा करने वालों में कोई दमखम है या नहीं। यह बात डेविड धवन जैसे फिल्मकारों के हाथ अश्लील हो जाती, परन्तु आर. बाल्की का अंदाजे-बयां ही कुछ और है।
स्त्री-पुरुष सम्बंध एक गहरा व्यावहारिक विषय है। जां पॉल सार्त्र और उनकी अंतरंग मित्र सिमॉन द बूव्वा दशकों साथ रहे और उस लंबे समय में उनके अन्य प्रेम प्रकरण भी हुए, परन्तु उन्होंने कोई बात एक-दूसरे से छुपाई नहीं। रिश्तों की पवित्रता आपसी साफगोई पर निर्भर करती है। प्रेम वहां से अदृश्य हो जाता है, जहां से रिश्तों में झूठ प्रवेश करता है। अंग्रेजों की गुलामी के दौर में विक्टोरियन मूल्यों की घुसपैठ से भारतीय उदात्त संस्कृति की बहुत हानि हुई है। इन विक्टोरियन मूल्यों ने मनुष्य के स्वाभाविक सम्बंधों पर बेहिसाब परदे डाल दिए हैं और अब तो परदों के परे जाने की इच्छा ही हमने खो दी है। इस रोजमर्रा के जीवन के व्यावहारिक सत्य पर ग्वालियर के पवन करण ने विलक्षण कविताएं लिखी हैं। उनकी एक कविता शुभारानी पर है, जो प्रमुख बौद्ध भिक्षुणी थीं और संसार के प्रलोभनों से स्वयं को बचाने के लिए उसने अपनी आंखें तज दी थीं। उस कविता का एक अंश इस तरह है-
वे बोली जरा गौर से देखो यहां इस जंगल में जिसे तुम दुनिया कहते हो मुझ सी स्त्रियों की अनेक आंखें पड़ी हैं सदियों पुराने इस जंगल में पुरुषों के कहने पर हम स्त्रियां इसी तरह अपनी आंखें निकालकर फेंकती आई हैं।