विवाह व्यवसाय के विभिन्न रूप / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 23 जुलाई 2019
सलमान खान एक विवाह केंद्रित फिल्म बनाने जा रहे हैं। उनके प्रिय फिल्मकार सूरज बड़जात्या ने उनके साथ शादी प्रेरित फिल्म 'हम आपके हैं कौन' बनाई थी, जो बॉक्स ऑफिस पर 'शोले' से अधिक धन कमाने वाली फिल्म साबित हुई। सूरज बड़जात्या ने 'विवाह' तथा 'एक विवाह ऐसा भी' नामक फिल्में बनाई। मदन मोहन मालवीय और महात्मा गांधी के प्रयास से शादियों को कम खर्चीला और सादगीपूर्ण बनाया गया था परंतु सूरज बड़जात्या की फिल्म ने 'विवाह' को कई दिन चलने वाले उत्सव में बदल दिया। संगीत निशा उत्सव में जुड़ गई, मेहंदी की रस्म में सारी रात चलने वाले नृत्य गीत शामिल हो गए। दरअसल, सूरज बड़जात्या को दोष नहीं दिया जा सकता। उस कालखंड में काला धन विराट हो गया और शादी के नाम पर धन की होली खेली जा सकती थी। खर्चीली शादियां हमारी आर्थिक खाई को रेखांकित करती हैं। सरकार की नीतियां भी अमीर को और अधिक अमीर बनाती जा रही हैं। गरीबी का उत्पादन यथावत जारी है। यह अलग बात है कि सेवकों की फौज के नहीं होने पर अमीर व्यक्ति सामान्य दैनिक कार्य भी नहीं कर पाता।
फिल्मों ने गरीबी को यथावत रखने के लिए उसे महिमा मंडित किया और अजीबोगरीब समीकरण यह उभरा की गरीब नेक और ईमानदार होता है, अमीर बुरा आदमी होता है। इस तरह का साधारणीकरण भ्रामक होता है। इसी भ्रम को पुरातन आख्यानों ने भी मजबूत किया है। राजा को धरती पर ईश्वर का अवतार माना गया। विज्ञान और टेक्नोलॉजी द्वारा किए गए आविष्कार का लाभ भी साधन संपन्न को पहले मिलता है। आजकल तो साधन संपन्न व्यक्ति से भी पहले टेक्नोलॉजी के आविष्कार आतंकवादी संगठनों को प्राप्त होते हैं। आतंकवादी संगठन विज्ञान और टेक्नोलॉजी की तस्करी भी करते हैं। आतंकवाद का धर्म से कोई संबंध नहीं है। वह एक व्यवसाय की तरह संचालित किया जा रहा है।
शादी-ब्याह का इंतजाम करना भी व्यवसाय की तरह उभरा है। वेडिंग प्लानर होते हैं और उनके प्रशिक्षण की भी व्यवस्था है। आदित्य चोपड़ा ने इस विषय पर 'बैंड बाजा और बारात' नामक मनोरंजक फिल्म बनाई थी। एक तरफ भूख के कारण लोग मर रहे हैं, दूसरी तरफ शादी ब्याह में भोजन खाया कम और फेंका ज्यादा जाता है। भारत का शादी प्रेम विदेशी फिल्मकारों ने भी भुनाया। 'मानसून वेडिंग' ऐसी ही फिल्म थी। शादी के लिए बनाई गई महंगी शेरवानी जीवन में एक ही बार पहनी जाती है। इसी तरह वधू की साड़ी भी बाद में कोई काम नहीं आती। यह वस्त्र इतने वजनी बन जाते हैं कि इन्हें रोजमर्रा के जीवन में नहीं पहना जा सकता। दहेज लेना और देना दंडनीय अपराध है परंतु यथार्थ जीवन में यह आज भी लिया और दिया जा रहा है। एक समाज में कुछ लोग विवाह योग्य युवाओं के परिवार की संपत्ति और उनका पूरा विवरण लिए जगह-जगह जाते हैं और रिश्ते तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनका मेहनताना दहेज का कुछ प्रतिशत होता है। उनके पास तस्वीरों का एलबम होता है। कुंडली के साथ बैंक का ब्योरा भी होता है। आयकर विभाग के पास भी वह जानकारी नहीं होती, जो इन मैरिज ब्रोकर के पास होती है। कुछ सामाजिक कार्यकर्ता सामूहिक विवाह का आयोजन करते हैं। कम खर्च में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के युवाओं का विवाह किया जाता है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की 'नौका डूबी' नामक कथा में दो जोड़े नाव में जा रहे होते हैं और बाढ़ के कारण बिछड़ जाते हैं। बाढ़ के बाद मिलने पर दूल्हा-दुल्हन बदल जाते हैं। घूंघट के कारण वर ने वधू का मुंह नहीं देखा था। इसी कथा पर किशोर साहू ने 'घूंघट' नामक सफल फिल्म बनाई थी। विवाह के निमंत्रण-पत्र भी कई पृष्ठों के और बहुत महंगे होते हैं। इस तरह का प्रति निमंत्रण-पत्र एक दो हजार रुपए तक का होता है। निमंत्रण-पत्र के साथ मिठाई का डिब्बा या ड्राई फ्रूट्स का डिब्बा भी भेजा जाता है। विवाह में शिरकत करने के लिए मेहमान भी महंगे कपड़े सिलवाते हैं। इन कपड़ों को बाद में कभी पहना नहीं जाता। महानगरों में कुछ दुकानों पर यह कपड़े किराए पर भी मिलते हैं। शादियों से जुड़े अनेक व्यवसाय हैं। मधु रात्रि पर जाने के लिए देश-विदेश के पर्यटन स्थल बड़े जतन से चुने जाते हैं। बारात में दूल्हा घोड़े पर बैठता है और घोड़े को रस्म के पहले खूब मात्रा में चने की दाल खिलाई जाती है। दूल्हे के बैठते ही उसके पेट की वायु निकल जाने को इस तरह परिभाषित किया जाता है कि दूल्हा कितना दमदार। दूल्हे की कमर में कटार या तलवार बंधी होती है। दुल्हन के घर पर लगे तोरण पर वह कटार से वार करता है।
सारा मामला ऐसा है मानो बारात नहीं एक सेना विजय अभियान पर निकली है। राजकुमार संतोषी की फिल्म 'लज्जा' में इस आशय का संवाद है कि विवाह उत्सव में डरा और सहमा हुआ व्यक्ति वधू का पिता और अकड़ दिखाने वाला वर के पिता के रूप में आसानी से पहचाना जा सकता है। हम लाख विकास व आधुनिकता का ढिंढोरा पीटे परंतु कन्या का जन्म होते ही पूरा परिवार एक वजन अपने सीने पर महसूस करता है। राजकुमार हिरानी ने अपनी फिल्म 'थ्री इडियट्स' में दिखाया है कि शादी में मुफ्त का भोजन करने के लिए निमंत्रण-पत्र नहीं पोशाक की आवश्यकता होती है। शहर की सीमा पर कृषि के लिए आरक्षित जमीन पर बगीचा बना दिया जाता है, जिसका इस्तेमाल विवाह उत्सव के लिए किया जाता है। हम लोग सारे नियम कानून और संविधान में पतली गली खोजने में निपुण हैं।