विशाल, कंगना और नाडिया / जयप्रकाश चौकसे

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विशाल, कंगना और नाडिया
प्रकाशन तिथि :16 अप्रैल 2015


इस कॉलम में लिखा गया था कि कंगना रनोट ने विशाल भारद्वाज को भोज के लिए आमंत्रित किया था। अब खबर आई है कि विशाल भारद्वाज हिन्दुस्तानी सिनेमा की पहली स्टंट नायिका नाडिया के बायोपिक में कंगना को लेना चाहते है। उन्होंने कई वर्ष पूर्व पटकथा लिखी थी और कुछ समय पूर्व वे दीपिका पादुकोण को लेना चहते थे परंतु बात नहीं बनी।

नाडिया का जन्म-नाम मैरी इवांस था और वे ग्रीक मां तथा अंग्रेज पिता की संतान थी। आस्ट्रेलिया से उनका परिवार बम्बई आया जहां मैरी ने विविध नौकरियां की, यहां तक कि कुछ समय सर्कस में भी काम किया जहां फिल्मकार जे.बी.एच वाडिया ने उन्हें देखा और फिल्म अभिनय में ले आये। मैरी को हिन्दी नहीं आती थी। जे.बी.एच के छोटे भाई होमी वाडिया ने हिन्दुस्तानी सिनेमा में पहली बार एक ऐसी नायिका का पात्र रचा जो घुड़सवारी करती है, तलवार बाजी करती है और दुष्टजनों को मार कर, गरीबों को न्याय दिलाती है। पहली फिल्म 'हंटरवाली' 1935 में प्रदर्शित हुई और गोरी चिट्टी नीली आंखों वाली विदेशी महिला को न्याय के लिए लड़ते हुए बताया। गोयाकि वह सारे काम मर्दों वाले करती है, इस फिल्म में उसे फीयरलेस नाडिया के नाम से पुकारा गया। उस गुलामी के दौर में दर्शक को अच्छा लगा कि एक अंग्रेज उनके लिए लड़ रही है। उस दौर का कोई भी वितरक इस फिल्म को खरीदना नहीं चहता था परंतु वाडिया बंधुओं को यकीन था कि आम लोग इसे पसंद करेंगे। उन्होंने ही इसे प्रदर्शित किया और यह सन् 1935 की सबसे सफल फिल्म सफल हुईं।

इसके बाद इसी तरह की एक्शन फिल्मों का सिलसिला शुरु हुआ, 'हरीकेन हंसा','लुटेरी लैला','डायमंड क्वीन','पंजाब मेल'। इस फिल्म में वे घोड़े पर बैठकर चलती रेलगाड़ी की छत पर घोड़ा दौड़ाती हैं। वाडिया बंधु इस तरह के स्टंट फिल्माने में माहिर थे। उस दौर में नाडिया के परदे पर आते ही तालियां बजाई जाती थीं और वे अपने एन्ट्री शॉट में चाबूक लहरा कर 'हे' करती थी। उनका स्वागत वैसा ही हुआ जैसे शिखर दिनों में अमिताभ बच्चन का होता था या अब सलमान खान का होता है। नाडिया की मदद के लिए उनका परम भक्त होल जॉन कॉउस नामक कलाकार करता था, परंतु इनके बीच कोई प्रेम कहानी नहीं थी जैसा कि हमने माॅडेस्टी ब्लेज और विली गारविन का रिश्ता देखा।

जब इस तरह की एक्शन फिल्में सफल हुई तब किसी और निर्माता ने वैसी फिल्में नहीं बनाई, क्योंकि नाडिया केवल वाडिया बंधुओं के लिए काम करती थी। उनका कोई विकल्प नहीं था। जब उनका घुड़सवारी और शमशीरबाजी का दौर ठंडा पड़ रहा था, उन्होंने नाडिया के साथ सामाजिक फिल्म 'मौज' बनाई। जिसका घाटा उन्होंने 'हंटरवाली की बेटी' बनाकर पूरा किया। उनकी आखरी फिल्म 'खिलाड़ी' 1968 में बनी। उन्होंने शिखर दिनों में ही होमी से शादी कर ली थी और 1996 में उनकी मृत्यु हुई।

यह तो तय है कि विशाल इसे महिला स्वतंत्रता व शक्ति की फिल्म बनाएंगे, साथ ही मसाला फिल्म को आदरांजलि भी देंगे। कंगना रनावत भूमिका में डूब कर काम करती हैं और नाडिया को अपने ही ढंग से अभिनीत करेंगी। 'रिवॉल्वर रानी' भी उन्होंने इस विश्वसनीयता से की कि यह यकीन करना मुश्किल था कि अभी इसे 'क्वीन' के रूप में देखा है। विशाल और कंगना दोनों ही प्रतिभाशाली है, परंतु प्राय: दो सृजनशील व्यक्ति टकराते भी हैं और यह देखना रुचिकर होगा कि दो तूफानी मौजे क्या गुल खिलाती हैं।

नाडिया उवाच में हम होमी के जीनियस को यथेष्ठ आदर नहीं दे रहे हैं, जिसने यह अनूठा पात्र 1934 में रचा। यह भी गौरतलब है कि जब उनके पारसी मित्र सोहराब मोदी इतिहास आधारित 'सिकंदर' और पुकार बना रहे थे, तब होमी ने महिला एक्शन फिल्मों की शृंखला रची।