विशाल भारद्वाज, कंगना और कासाब्लांका / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
विशाल भारद्वाज, कंगना और कासाब्लांका
प्रकाशन तिथि :30 मई 2015


विशाल भारद्वाज, कंगना रनोट, सैफ अली खान और शाहिद कपूर के साथ 'रंगून' नामक फिल्म बनाने जा रहे हैं, जिसकी प्रेरणा उन्हें दूसरे विश्वयुद्ध के समय 'कासाब्लांका' से मिली है। इस फिल्म में प्रतिभाशाली इम्प्री बोगार्ट व इनग्रिड बर्गमैन के साथ अनेक कलाकारों ने अभिनय किया था। इस फॉर्मूला प्रेम त्रिकोण की बॉक्स ऑफिस सफलता का कारण यह था कि युद्ध के घटनाक्रम में हिटलर की पराजय के आसार नजर आ रहे थे और अवाम कुछ इत्मीनान की सांस ले पा रहा था। इसी कारण समीक्षक क्लॉड चैबराल ने व्यंग्य के लहजे में कहा था कि उन्हें फिल्म निर्माण में सफलता का राज मालूम हो गया है और वह है प्रदर्शन का समय।

आज हमारे देश में सुपरस्टार किसी न किसी उत्सव के समय फिल्म का प्रदर्शन करते हैं जैसे ईद, दीवाली व क्रिसमस। अब प्रदर्शन की तिथि पंचांग तय करती है और उत्सव प्रेमी भारत इस तरह के टोटकों को अपरोक्ष रूप से बढ़ावा ही देता है। आज किसी भी क्षेत्र में किसी को भी गुणवता से अधिक विश्वास टोटकों पर हो गया है और मजे की बात यह है कि ये तमाम लोग टेक्नोलॉजी के आधुनिकतम उपकरणों का जी खोलकर इस्तेमाल करते हैं।

'कासाब्लांका' का पुनरावलोकन प्रदर्शन के दशकों बाद अनेक लोगों ने किया है और उसमें वे खूबियों की खोज की गई, जो उसमें है ही नहीं। वुडी एलेन का कहना है कि यह फिल्म एक लोकप्रिय लोककथा की तरह है और सिनेमैटिक एक्सीलेंस से इसका कोई संबंध नहीं है। हमारे अपने देश में 'शोले' एक लोकप्रिय लोककथा की तरह है और सिनेमाई गुणवत्ता से इसका रिश्ता भी गहरा नहीं है। कुछ दृश्य काव्यमय है जैसे रात में अमिताभ बच्चन का माउथ ऑर्गन बजाना और उस ठाकुर की हवेली की एक खिड़की में युवा विधवा ऐसी खड़ी है मानो खिड़की की फ्रेम में कोई पेंटिंग जड़ी हो और अगले दिन भैंसे पर सवार अमिताभ का विधवा जया को मंदिर से आता देख कूदकर एक कोने में सिमट-सा जाना। जैसे कासाब्लांका में 'ग्रैन्ड होटल' व अन्य फिल्मों के अंगों का प्रभाव है वैसे ही शोले पर एक दर्जन फिल्मों का प्रभाव है। कुछ दृश्य तो जस के तस रख दिए गए हैं जैसे पानी की टंकी पर खड़े धर्मेंद्र का नशे में बहकना इत्यादि। इन बातों का यह अर्थ नहीं कि कासाब्लांका से शोले की तुलना की जा रही है। अगर कासाब्लांका युद्ध-काल में प्रदर्शित हुई तो शोले भी आपातकाल में ही प्रदर्शित हुई है। अगर अमेरिकन फिल्म में हम्प्रि बोगार्ट और इनग्रिड बर्गमैन के साथ कई सितारे और भी थे, तो शोले में अमिताभ बच्चन व धर्मेंद्र तथा हेमा व जया बच्चन थे परंतु श्रेष्टतम अभिनय संजीव कुमार ने किया।

बहरहाल, विशाल भारद्वाज अमेरिकन फिल्म को फ्रेम दर फ्रेम नहीं बनाने वाले हैं। उन्होंने केवल प्रेम त्रिकोण लेकर दूसरे विश्वयुद्ध के अंतिम चरण में रंगून में अंग्रेजों और जापान की फौज का युद्ध लिया है और इसमें सुभाष बोस की फौज भी संभवत: शामिल है। ज्ञातव्य है कि बोस की आजाद हिंद फौज के तीन लोग जिंदा पकड़े गए थे, जिनमें शहनवाज खान, भुल्लर थे और शाहनवाज खान शाहरुख खान के दादा हैं। ज्ञातव्य है कि बोस के योद्धाओं का मुकदमा लाल किले की खुली अदालत में जवाहरलाल नेहरू ने लड़ा था और आज का प्रचार तंत्र नेहरू को सुभाष बोस का दुश्मन करार दे रहा है, जबकि नेहरू और बोस मित्र थे और बोस का सैद्धातिक विवाद गांधी के साथ था परंतु गांधीजी की छवि संत की है और बुद्धिजीवी नेहरू को कभी भी कटघरे में खड़ा किया जा सकता है। हम संत को आदर देते हैं परंतु बुद्धिजीवी के प्रति हमें सम्मान नहीं। नेहरू ने अपने जीवन में पहली और आखरी बार अदालत में जिरह की है और उनकी टीम में अन्य वकील भी थे।

बहरहाल, विशाल भारद्वाज की फिल्म उनके अपने अंदाज की फिल्म होगी और इसमें अनेक गीत भी हैं। कंगना जैसी प्रतिभाशाली अभिनेत्री के साथ यह उनका पहला अवसर है। सैफ का कॅरियर ढ़लान पर है और शाहिद कभी उड़े ही नहीं कि उनके गिरने का भय हो। विशाल और कंगना का जुड़ना महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है। कंगना उनकी पटकथा पर बहस जरूर करेगी, वे पूरी तरह आश्वस्त होकर ही काम करती हैं। इस फिल्म में गीत बहुत हैं और आश्चर्य होता है कि संगीत में विशाल कभी पश्चिम की प्रेरणा नहीं लेते परंतु कथाओं को पश्चिम से ही लेते हैं। एक ही व्यक्ति की सृजन प्रक्रिया में ये दो धाराएं आश्चर्यचकित करती हैं। भारतीय दर्शक ने हली बार रंगून का नाम एक गीत में सुना था- 'मेरे पिया गए रंगून, वहां से किया टेलीफोन'।