विश्वास / एक्वेरियम / ममता व्यास
एक गांव में एक भोला-सा बच्चा रहता था। वह सारी कायनात को अपनी छोटी मु_ी में बंद कर लेना चाहता था। पत्थर उसके प्रिय खिलौने थे। छोटे-छोटे कंकड़ों को पानी में फेंकता और कहता-"पानी तुम पत्थर हो जाओ."
पानी हंसता, पानी के संग मछलियाँ भी उस पर हंसती।
उनके हंसने से पानी पर लहरें बनतीं। जब बहुत देर तक पानी उसकी बात नहीं मानता तो वह अपने सारे फेंके हुए कंकड़ वापस उठा लेता। अबकी बार वह पत्थरों के देश जाता। वहाँ के सभी पत्थरों को वह फूल, पत्ती, खुशबू आदि नाम से पुकारता, कोई भी पत्थर उसकी बात नहीं मानता। एक दिन उसने पत्थरों से पत्तियों-सी कोमलता मांगी। बदले में उन्हें ईगोइस्ट भी कह दिया।
इस बात पर पत्थर नाराज हो गए और कह उठे-"इस धरती पर ईगो सिर्फ़ तुम इंसानों में ही देखा है हमने। तुम्हारे सारे खेल इसी इगो के कारण हैं। युद्ध, हार-जीत और तो और प्रेम भी...तुम इन्सान प्रेम भी अपने ईगो को संतुष्ट करने के लिए ही करते हो। हम पत्थर हैं तो हमें रहने दिया जाये ना कठोर। क्यों व्यवहार करें हम पत्तियों-सा कोमल? तुम चाहो तो किसी कोमल स्त्री को पत्थर बना दो। तो कभी हमें मूर्ति में ढाल कर मंदिर में बिठा दो और रोज दीये जलाओ. वरदान दे-दे तो देवी, नहीं तो वही पत्थर दिल मूरत...क्यों? क्यों पूजते हो पत्थरों को? क्यों पुकारना उन्हें दूसरे नामों से। जानते नहीं क्या कितनी पीड़ा है, कठोर से कोमल हो जाने में...कितना दर्द है, पत्तियों-सा व्यवहार करने में, कितना कष्ट है मूर्ति में ढल जाने में, कितना मुश्किल कोयले से हीरा बनना।"
पत्थर की बात बीच में काट कर वह बच्चा बोला-"सुनो वह पत्थरों के बीच सफेद-सा, कोमल-सा क्या दिखता है।"
पत्थर ने ठंडी आह भरी...कुछ सदियाँ पहले उस पत्थर को मोम पुकारा गया था। तब से वह मोम हो गया, लेकिन पुकारने वाला आज तक नहीं लौटा...बच्चा उदास होकर लौट आया। लेकिन मन ही मन उन पत्थरों को फूल-पत्तियाँ पुकारता रहा और एक सुबह सभी पत्थर सुन्दर पौधे बन गए थे। आजकल वह बच्चा रातों को जाग कर तारों से बतियाता है, उन्हें जमीन पर बुलाता है।
हैरानी इस बात की कि सब उसकी बात मान कैसे लेते हैं? ज़रूर उसका नाम प्रेम या विश्वास होगा। है ना?