विश्व कुटम्ब चौके में बर्तन टकराना / जयप्रकाश चौकसे

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विश्व कुटम्ब चौके में बर्तन टकराना
प्रकाशन तिथि : 29 जून 2020


अजय देवगन संयुक्त परिवार में रहते हैं। व्यवस्था ऐसी है कि अपनी निजता को बनाए रखते हुए सभी सहयोग करते हुए साथ-साथ रहते हैं। उन्होंने सभी के लिए काम सीखने के अवसर बनाए और सभी खरी कमाई खाते हैं। अजय के सचिव कुमार मंगत को वे अपने वृहत परिवार का हिस्सा मानते हैं और उसके पुत्र को भी फिल्म निर्माता बनने के अवसर मिले। सलमान खान के भाई और बहनें भी स्वतंत्र व्यवसाय करते हैं। ताराचंद बड़जात्या का संयुक्त परिवार इसी आदर्श पर फिल्में बनाते रहा है। उनकी तो एक फिल्म का नाम भी ‘हम साथ-साथ है’। उनकी एक फिल्म में घरनुमा मंदिर और मंदिरनुमा घर प्रस्तुत किया गया था। वे सदैव एक प्रकार के लॉक डाउन में रहे हैं। अक्षय कुमार का विश्वास है, छोटा परिवार सुखी परिवार। अक्षय कुमार व्यवस्था द्वारा प्रचारित नीतियों के प्रतिनिधि स्वरूप सामने आए हैं। शाहरुख खान अपनी इकलौती बहन के लिए ठोस आर्थिक व्यवस्था कर चुके हैं। आदित्य चोपड़ा ने यशराज चोपड़ा स्टूडियो के कैन्टीन का संचालन एक नामी संस्थान को दिया है। उनका लंगर सदैव जारी रहता है। रिलायंय स्टूडियो का कैन्टीन एक स्वतंत्र संस्था संभालती है। यह एक तरह से पूंजीवादी कैन्टीन है। औद्यौगिक घराने इसी तरह काम करते हैं। हर नियम के अपवाद होते हैं। इस तरह की व्यवस्था का अनुमान हम फिल्म ‘जॉली एल.एल.बी-2’ के एक दृश्य से लगा सकते हैं। अन्नू कपूर द्वारा अभिनीत वकील पात्र के दफ्तर में मुकदमा लड़ने का प्रस्ताव लेकर व्यक्ति को चाय बिस्कुट दिया जाता है। एक भ्रष्ट पुलिस अफसर अपना मुकदमा वकील को सौंपता है। जब वह जाने लगता है, तब वकील का सहायक उससे चाय-बिस्कुट के पैसे वसूल कर कहता है कि उसे अफसर होने के नाते यह रियायत दी गई है कि पानी के दाम नहीं लिए गए। सुभाष कपूर की फिल्म ‘बुरे फंसे ओबामा’ में प्रस्तुत किया गया कि मंत्री जी द्वारा संचालित सुगठित अपहरण व्यवसाय में अगुवा किया गया व्यक्ति का रिश्तेदार छुड़ाने की रकम अदा करने के साथ ही अगुवा किए व्यक्ति के खान-पान का भी भुगतान करता है। भ्रष्ट मंत्री जी की मेहमान नवाजी बहुत महंंगी पड़ती है। उन्हें अपच है व बवासीर के कारण असहनीय वेदना होती है। सुभाष यह रेखांकित करते हैं कि रिश्वत पचाना आसान नहीं होता। अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म ‘ओह माई गॉड’ में मेहमान के भगवान स्वरूप होने को अक्षरश: चरितार्थ होते प्रस्तुत किया गया है, इस फिल्म में भूकंप द्वारा पहुंची हानि का मुआवजा मांगने के लिए धरती पर खुद को भगवान का सेल्समैन बताने वालों के खिलाफ मुकदमा लड़ा जा रहा है। भगवान मुकदमा दायर करने वाले व्यक्ति के घर बिन बुलाए मेहमान जैसे रहने लगते हैं और उसका मार्ग दर्शन भी करते हैं। फिल्म में आरोपी स्वयं ही अपने खिलाफ लगाए गए मुकदमें के दस्तावेज बनाने में सहायता करता है। इसी कथा का विस्तार राजकुमार हीरानी की फिल्म ‘पीके’ में प्रस्तुत है।

महानगरों में पेइंग गेस्ट व्यवस्था के तहत एक कमरे में किरायेदार रखा जाता है, जो अपने रहने खाने-पीने का भुगतान करने वाले मेहमान जैसा है। यह व्यवस्था रेंट कानून से बचने को की गई है। क्या यह सही है कि चीन अपने कब्जे में ली गई जमीन पर पक्के मकान बनाकर वहां अपनी बस्ती बसाने जा रहा है। ऐसे यह मेहमान-मेजवान की संपत्ति हड़पना चाहता है। क्या इन चीनियों को आधार कार्ड मिलेगा और वे भारतीय चुनाव में मत दे सकेंगे। चीन की दलील यह है कि यह भूखंड उसकी भौगौलिक सीमा में आता था, परंतु अंग्रेजों ने उसे जीत लिया और भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद इसे अपना भौगोलिक यथार्थ मान लिया। यह शाश्वत राजनैतिक नियम है कि देश की आंतरिक घरेलू व्यवस्था का विस्तार ही उसकी विदेश नीति बनती है। वर्तमान में पनपी क्षेत्रियता और संकीर्णता के साथ शासन करने की व्यवस्था का विस्तार ही विदेश नीति भी बन जाती है। बबूल बोने पर आम का वृक्ष कैसे अवतरित होगा? हमारे सारे पड़ोसी हमारे खिलाफ हो गए हैं।