विश्व नींद दिवस और सपने / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 18 मार्च 2013
15 मार्च को नींद के दिन के रूप में मनाया जाता है। नींद के महत्व को रेखांकित करने के लिए यह दिवस रखा गया है। 'सोना स्पा' नामक हास्य फिल्म जो मकरंद देशपांडे के एक नाटक से प्रेरित है, में नसीरुद्दीन शाह 'नींद गुरु' की भूमिका में हैं। दरअसल गुरुडम के धंधे पर व्यंग्य करने के लिए यह फिल्म रची गई है। कहते हैं कि गुरु नित्यानंद के खिलाफ अनेक आपराधिक आरोप हैं, परंतु कुछ बड़े नेता उनके शिष्य हैं, इसलिए उन पर कार्रवाई नहीं हो रही है। एक गुरु के आश्रम में बच्चों के मृत शरीर मिले हैं, परंतु राजनीतिक सहयोग के कारण आरोपों की जांच नहीं हो रही है। जमीनें हड़पने के आरोप भी समय-समय पर अनेक गुरुओं पर लगे हैं। परेश रावल अभिनीत 'ओह माय गॉड' भी इसी विषय पर बनी सशक्त फिल्म है।
इस फिल्म में नींद गुरु का दावा है कि उनके आश्रय में आए भक्त के लिए वे मंत्र पढ़कर अपने अन्य शिष्य को भक्त के बदले सुला देंगे और नींद के बाद की ताजगी भक्त को महसूस होगी, गोया कि वैकल्पिक निद्रा भी गुरुजी बेचते हैं। मनुष्य की सेहत के लिए अच्छी नींद आवश्यक है। जब आप सोते हैं, तब शरीर अपने शिथिल अंगों की मरम्मत करता है। मांसपेशियों की कोशिकाओं में सुधार होता है। दरअसल नींद पर बहुत-सी कहावतें और गीत बने हैं, जैसे - जवानी जी भर सोया, बुढ़ापा देखकर रोया। ग्रीक के महान कवि होमर ने नींद और मृत्यु को जुड़वां भाई कहा है। जल्दी सोने और जल्दी उठने को अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक माना गया है। कहते हैं कि मजदूर मीठी नींद पाता है और आलसी की नींद में बड़े व्यवधान होते हैं।
नींद के साथ सपने जुड़े हैं और कवियों ने सपनों पर बहुत कुछ लिखा है। सिगमंड फ्रायड ने सपनों की व्याख्या पर बहुत कुछ लिखा है और फ्रायड का सरलीकरण यह है कि सपने दमित इच्छाओं का काल्पनिक समाधान हैं। सपने में मनुष्य का अवचेतन उजागर होता है, परंतु सपनों का अर्थ पढऩा अत्यंत कठिन है। नींद में स्वप्न आना मनुष्य की विलक्षण और छुपी हुई प्रतिभा का प्रमाण है। नींद के साथ कुछ बीमारियां भी जुड़ी हैं, जैसे स्लीप एप्निया। नाक से सांस लेने में कठिनाई के कारण लोग सोते समय मुंह से सांस लेते हैं। खर्राटे मजाक नहीं, गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। पोर्टेबल ऑक्सीजन कैप लगाकर स्लीप एप्निया से मुक्ति पाई जाती है। रात में नींद ठीक से नहीं आने के कारण दिन में आदमी ऊंघने लगता है। कुछ लोगों को नींद में चलने का भयावह रोग होता है। कॉलिन्स के उपन्यास 'मूनस्टोन' में सारा रहस्य नींद में चलने की बीमारी पर आधारित है।
एसएस वासन ने १९४४ में 'दासी अपराजित' नामक मजेदार कथा-फिल्म बनाई थी, जिसमें एक नगरवधू अपने घर आने वाले धोबी के खिलाफ राजा के दरबार में मुकदमा कायम करती है कि इस धोबी ने उसकी दासियों के सामने यह कहा कि अब वह दिन-रात मेहनत करके नगरवधू से अंतरंगता के लिए पैसे नहीं जमा करता, क्योंकि वह उसे स्वप्न में दिखाई देने लगी है। राजा इस अनोखे मुकदमे पर फैसला देने के असमंजस में है, क्योंकि धोबी ने दरबार में भी सरेआम यह बात कही है। रानी राजा से आज्ञा लेकर अपना निर्णय देती है। वह दरबार में एक आईने के सामने हजार स्वर्ण मुद्राएं रखती हैं और नगरवधू से कहती है कि स्वप्न की अंतरंगता का मेहनताना वह आईने में स्वर्ण मुद्राओं की छवि को उठाकर ले ले। लगता है कि संसार में ऐसा कोई विषय नहीं, जिस पर फिल्म न बनाई गई हो। क्रिस्टोफर नोलन ने तो सपनों को चुराने वाले व्यक्ति और अवचेतन पर कब्जा जमाने वाले पर भी 'इनसेप्शन' नामक कठिन फिल्म रची है। यह भी संभव है कि मनुष्य अपने भय और स्वप्न की चाभी से समय के रहस्य को समझ ले, क्योंकि दोनों ही की उत्पत्ति में समय के संकेत हैं। गांधारी को अंधकार से भय लगता है। यह उस भविष्य का संकेत है, जिसमें अंधे धृतराष्ट्र से उसका विवाह होता है और अपनी सुंदर आंखों पर पट्टी बांधने को उसकी पति भक्ति माना जा सकता है और उसका विरोध भी माना जा सकता है, क्योंकि उसके पिता शक्तिशाली हस्तिनापुर से आए विवाह प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं और युद्ध से अपने देश को बचा लेते हैं। जन्मांध धृतराष्ट्र का स्वप्न था कि वे पत्नी की आंखों से संसार देखेंगे। अत: एक ही घटना में स्वप्न और भय मौजूद हैं तथा भूत, भविष्य के संकेत भी वर्तमान में मौजूद हैं।
अच्छी नींद को प्राय: परिश्रम से जोड़ा जाता है और यह एक पूंजीवादी झूठ और षड्यंत्र है कि गरीब, मेहनतकश को अच्छी नींद आती है। अभाव कोई नरम गद्दा नहीं है, जिस पर गरीब मेहनतकश मजे की नींद लेता है। कान का भी नींद से कोई संबंध नहीं है, क्योंकि सबसे अधिक थकान हमें वे काम देते हैं, जो हम नहीं कर पाए और हमें करना चाहिए था। मनपसंद काम कभी थकाता नहीं है, वह तो ऊर्जा देता है।
नींद की गोलियों का सेवन जीवन की भागमभाग और असंतोष के कारण किया जाता है, परंतु कुछ लोगों ने नींद न आने पर गोलियों की मात्रा बढ़ाई और गफलत में इतनी अधिक गोलियां खा लीं कि उठे ही नहीं। कुछ लोगों को अनिर्णय का असमंजस सुला देता है, परंतु यह नींद तो मात्र पलायन है, क्योंकि उससे समस्या का निदान नहीं होता। नींद में अवचेतन जाग जाता है और संगीत से नींद का रिश्ता है, इसलिए लोरी गाई जाती है। नींद के आवाहन के लिए अनेक जतन किए जाते हैं। प्रेमालाप का स्वांग भी रचा जाता है। कभी-कभी आंख में फुंसी हो जाती है, जैसे किसी सपने ने काट लिया हो। 'जागते रहो' में शैलेंद्र का गीत है- 'जिंदगी एक ख्वाब है, ख्वाब में सच है क्या, भला झूठ है क्या, मय का एक कतरा पत्थर के सीने पर पड़ा और उसने भी कहा, जिंदगी एक ख्वाब है।'