विष्णु प्रभाकर / परिचय

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हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकार विष्णु प्रभाकर मूलत: नाटककार व कहानीकार हैं। इसके अतिरिक्त इन्होंने जीवनी और लघुकथा-साहित्य में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। विष्णु प्रभाकर की पहली लघुकथा ‘सार्थकता’ मुंशी प्रेमचंद द्वारा संस्थापित/संपादित ‘हंस’ पत्रिका के जनवरी 1939 अंक में प्रकाशित हुई थी। इनके अब तक—‘जीवन पराग’(1963), ‘आपकी कृपा है’(1982) और ‘कौन जीता कौन हारा(1989)—तीन लघुकथा-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इन तीनों ही संग्रहों में लघुकथाएँ और बोधकथाएँ, दोनों साथ-साथ रखी गई हैं। ‘आपकी कृपा है’ संग्रह में लघुकथा-आंदोलन के महत्व का उल्लेख करते हुए वह कहते हैं—“आज लघुकथा को लेकर जो आंदोलन उभरा है, यदि वह न उभरा होता तो संभवत: मेरा ध्यान इस ओर इतनी गंभीरता से न जाता।” उनके ही शब्दों में—“आदर्श लघुकथा वह होती है, जो किसी कहानी का कथानक न बन सके।” विष्णु प्रभाकर की अनेकश: चर्चित लघुकथाओं में फर्क, पानी की जाति, ईश्वर का चेहरा और दोस्ती प्रमुख हैं। ‘फर्क’ लघुकथा में मनुष्य-मनुष्य के बीच बनाई हुई सीमाओं पर सहज व्यंग्य किया गया है, तो ‘ईश्वर का चेहरा’ रचना भावनात्मक धरातल पर आकर सांप्रदायिक भेदभाव को भुलाने की प्रेरणा देती है। विष्णु प्रभाकर की सन 1963 के बाद लिखी लघुकथाएँ मुख्य रूप से मानवीय संवेदनाओं की रचनाएँ हैं। उन्होंने द्वंद्व के माध्यम से मानव में छिपे शुभ और सुंदर तत्वों को उभारने का कलात्मक प्रयास किया है। इन रचनाओं की ताकत इनकी सजग सरलता व सहजता में है।