वीके मूर्ति कैमरे से कविता / जयप्रकाश चौकसे
वीके मूर्ति कैमरे से कविता
प्रकाशन तिथि : 17 जनवरी 2011
इकतालीस वर्षों से प्रतिवर्ष दिया जा रहा दादा साहब फाल्के पुरस्कार पहली बार एक कैमरामैन को दिया गया है। गुरुदत्त की फिल्मों के श्रेष्ठ छायांकन के लिए प्रसिद्ध वीके मूर्ति साहब को इस पुरस्कार से नवाजा गया है। बेंगलुरु में जन्मे वीके मूर्ति ने फली मिस्त्री के सहायक के रूप में काम आरंभ किया। उनके कार्य और विचार प्रक्रिया को उनका एक ही वाक्य रेखांकित करता है कि, छायांकन टेक्नोलॉजी नहीं है और मात्र कैमरे का काम भी नहीं है। आशय स्पष्ट है कि मशीन से ज्यादा महत्वपूर्ण उसे संचालित करने वाला मनुष्य है। कैमरामैन का साहित्य एवं सौंदर्य बोध व सांस्कृतिक अभिरुचियां महत्वपूर्ण हैं। उसकी कल्पनाशीलता मशीन की कमतरी की भरपाई कर देती है। वीके मूर्ति का श्रेष्ठ कार्य गुरुदत्त के साथ रहा है। वीके ने प्रमोद चक्रवर्ती के साथ 'लव इन टोक्यो' इत्यादि मसाला फिल्में भी शूट की हैं, परंतु उनकी ख्याति 'प्यासा', 'साहब बीवी और गुलाम' पर आधारित है। इसका अर्थ स्पष्ट है कि निर्देशक और कैमरामैन दोनों के सहयोग और आपसी समझदारी से बात बनती है। सिनेमा के छायांकन में धन की भी भूमिका है। निर्देशक, कैमरामैन को यथेष्ट समय और साधन उपलब्ध कराता है। एक बार आरके स्टूडियो में एक सैट पर राधू करमरकर 'प्रेमरोग' शूट कर रहे थे, दूसरे पर जाल मिस्त्री चेतन आनंद की 'कुदरत' कर रहे थे और तीसरे पर पीटर परेरा मनमोहन देसाई की फिल्म कर रहे थे। इलेक्ट्रिसिटी पर इतना लोड था कि फ्यूज उड़ जाता था। इसके बाद क्षेत्र के ग्रिड की विशेष व्यवस्था की गई। आरके ने भी व्यवस्था में बदलाव किया।
यह भी गौरतलब है कि वीके मूर्ति ने जिस मिचेल कैमरे और बाद में एरीफ्लैक्स के साथ काम किया, वे उस दौर में अमेरिका में आउट डेटेड माने जाते थे। उस जमाने में निगेटिव की गुणवत्ता भी विकसित नहीं थी। आज उपलब्ध उच्च कोटि के निगेटिव के साथ खराब काम संभव ही नहीं रहा। 'साहब बीवी और गुलाम' के लिए जमींदार के जलसाघर का सेट लगा था। समूह नृत्य के लिए आई लड़कियां कमोबेश बदशक्ल थीं। मीनू मुमताज सुंदर थीं। वीके मूर्ति ने इस ढंग से लाइटिंग की कि बदशक्ल समूह नचनिया के चेहरे अंधेरे में डूबे थे, प्रकाश केवल सुडौल कमर से चरणों तक था। फिल्म प्रदर्शन पर समालोचक ने लिखा कि अय्याश जमींदार की सेविकाओं की शक्ल नहीं होती, वजूद ही अधूरा होता है। कई बार निर्देशक को कैमरामैन की चतुराई से नाम कमाने का अवसर मिल जाता है।
'कागज के फूल' में नायक सृजनशील फिल्मकार है। सेट के बीच कुर्सी डाले बैठा है। छत से प्रकाश की एक बीम केवल उस पर आ रही है, शेष जगह अंधेरा है। सूर्य के प्रकाश को आईने की मदद से रिफलेक्ट करना वीके मूर्ति ने ही प्रारंभ किया। यह भी सच है कि कैफी आजमी और सचिन देव बर्मन रचित अमर गीत 'दिल बुन रहा है ख्वाब दम ब दम...' सुनते समय हमेशा उसके शॉट्स मन में कौंध जाते हैं। आज प्रदर्शन के पचास वर्ष बाद भी हमेशा ऐसा ही होता है, क्योंकि वीके मूर्ति ने शॉट बाय शॉट ख्वाबों का सृजन किया है। कैमरे से कविता ऐसे करते हैं। प्रकाश के ब्रश से पेंटिंग ऐसे रची जाती है।