वुडी एलेन : भारत में हास्य की तलाश / जयप्रकाश चौकसे
वुडी एलेन : भारत में हास्य की तलाश
प्रकाशन तिथि : 11 सितम्बर 2012
छियत्तर वर्षीय अमेरिकी फिल्मकार वुडी एलेन से पूछा गया कि क्या वे भारत में फिल्म बनाएंगे। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि कोई हंसने-हंसाने वाली बात होगी तो वह भारत में भी फिल्म बनाएंगे। ज्ञातव्य है कि उनकी फिल्मों में घटनाक्रम जिस शहर में घटित होता है, उस शहर को भी वह एक पात्र की तरह प्रस्तुत करते हैं। वुडी एलेन की फिल्मों में हास्य-व्यंग्य होता है और अत्यंत गंभीर दार्शनिक बात भी वह हास्य के ढंग से प्रस्तुत करते हैं। मसलन उनकी एक फिल्म का पात्र निरंतर टेलीविजन देखता है और रिमोट कंट्रोल के उपयोग का आदी है। एक बार उसके फ्रिज में खाने का सामान नहीं है। कई दिनों बाद यह टेलीविजन का अभ्यस्त आदमी सड़क पर आता है और दो गुंडे उसे चाकू दिखाकर उससे अपना पर्स व घड़ी इत्यादि देने को कहते हैं। वह कहता है कि धमकियां मत दो, अभी रिमोट से चैनल बदल दूंगा, जाने कैसे क्राइम चैनल लग गया, अभी कॉमेडी चैनल लगाता हूं। यह आदमी अपने घर में लंबे समय तक टेलीविजन देखता है, वातानुकूलित यंत्र का भी रिमोट उसके हाथ में रहता है, अत: यथार्थ जीवन से उसका संपर्क इस कदर टूट गया है कि गुंडों को वह पात्र समझ रहा है। यह दृश्य आपको हंसाता है, परंतु इसमें गंभीर संकेत निहित हैं।
वुडी एलेन एक दु:खी दम्पति की संतान थे और उनका मूल नाम एलेन स्टीवर्ट कोनिग्सबर्ग है। सोलह वर्ष की आयु में उन्होंने वुडी एलेन के छद्मनाम से अखबार में चुटकुले भेजने शुरू किए और पसंद किए जाने पर उन्हें पैसा भी मिलने लगा। अपनी पहली कमाई से उत्साहित वुडी एलेन हास्य लेखक के रूप में टेलीविजन के कॉमेडी सर्कसनुमा कार्यक्रम लिखने लगे और भाग्यवश उन्हें अपने प्रिय बॉब होप के लिए लिखने का अवसर मिला। बचपन से ही वुडी एलेन फिल्म देखने के शौकीन रहे हैं। स्कूल से छुट्टी के दिनों में एक ही दिन में तीन-चार फिल्म देखने का उन्हें चस्का लग चुका था। उनकी सफलता की कहानी कुछ ऐसी है कि फिल्मों का एक आदतन घोर दर्शक फिल्मकार बन गया। हमारे रामगोपाल वर्मा और मधुर भंडारकर भी वीडियो लाइब्रेरी चलाते हुए फिल्मकार बन गए। कुछ हद तक वुडी एलेन की जीवन यात्रा भारत के हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव से भी मिलती है। भारत के जॉनी लीवर एक कंपनी में मामूली मजदूर थे और गणेश उत्सव में मोहल्लों के मंच पर हास्य कार्यक्रम देते हुए सिने कलाकार हो गए। दरअसल जीवन की पटकथा ही विचित्र होती है। हम राजू या जॉनी लीवर को दार्शनिक फिल्मकार वुडी एलेन के समकक्ष नहीं रख सकते।
वुडी एलेन अपनी फिल्मों में बतौर दर्शक देखी फिल्मों का हवाला प्राय: देते हैं, गोयाकि फिल्मकार को अपने दर्शक दिन हमेशा याद रहते हैं। याददाश्त हर सृजनशील व्यक्ति का खजाना भी है और शस्त्र भी है, परंतु उसमें निरंतर डूबे रहना उसको सीमित भी कर देता है, मानो शस्त्र को कमर में खोंसते समय वह अपने ही पेट में चुभ जाए। सफलता प्राय: इसी तरह का शस्त्र होती है, जो अपने से लिपटे रहने वाले को जख्मी कर देती है। यह वुडी एलेन के साथ कभी नहीं हुआ, परंतु हमारे कई फिल्मकार इससे हताहत हुए हैं।
बहरहाल, वुडी एलेन हास्य स्थिति खोज रहे हैं। उन्होंने हमारे नेताओं के बयान और कार्यकलाप नहीं देखे। भारतीय राजनीतिक परिदृश्य टेलीविजन के कॉमेडी सर्कस की तरह है। यह बात अलग है कि उनकी कॉमेडी देश की त्रासदी सिद्ध हो रही है। वुडी एलेन ने हमारे औद्योगिक घरानों की कार्यप्रणाली भी नहीं देखी, जो ऑटो-पायलट मोड के विमान की तरह है। वुडी एलेन भारत के आम आदमी के जीवन रणक्षेत्र में शस्त्रविहीन होकर असमान युद्ध में डरे रहने से अनभिज्ञ हैं और हमारा मीडिया तो वुडी एलेन द्वारा प्रस्तुत रिमोट कंट्रोल के आदी पात्र की तरह है। यह उनकी गर्भनाल की तरह है, जो पैदा होते समय काटी नहीं गई। यह हमारी राष्ट्रभाषा में लिखा कॉलम वुडी एलेन तक नहीं पहुंचेगा, परंतु वर्तमान भारत महान फिल्म बनाने की सामग्री है। भारत आने से उनका मनुष्य संबंधी ज्ञान खूब बढ़ सकता है। यहां वह ऐसे लोग देखेंगे, जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनसभाओं में जाते हैं, परंतु अपने जीवन में भ्रष्ट होने का कोई अवसर नहीं छोड़ते।
वुडी एलेन शहर को पात्र की तरह प्रस्तुत करते हैं। हमारे महानगर उन्हें पसंद नहीं आएंगे, क्योंकि वे उनके न्यूयॉर्क की भौंडी नकल हैं। अविकसित गांव और कस्बों में वे एक दिन भी नहीं रह पाएंगे। उन्हें हरिशंकर परसाई का जबलपुर या श्रीलाल शुक्ल के 'राग दरबारी' का कस्बा पसंद आ सकता है और खंडवा के निकट सोलह दिन से जल में खड़े लोगों के कस्बे में जा सकते हैं। नेताओं का ख्याल है कि ये लोग ओलिंपिक की तैरने वाली प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे हैं।