वूडी एलन का 'कान' में चिंतनीय बयान / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :21 मई 2015
कान में यूरोप का बहुप्रचारित अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव अभी चल रहा है, परन्तु दो दिन पूर्व अमेरिका के प्रसिद्ध फिल्मकार वूडी एलन ने अपनी ताजा फिल्म 'इंटरनेशनल मैन' के सफल प्रदर्शन के बाद एक चौंका देने वाला भाषण दिया। उनहत्तर वर्षीय फिल्मकार ने कहा कि आज मानवता जिस दशा में है, उससे कहीं अधिक बुरी दशा हम सबकी होने वाली है। आज जिन बातों पर गर्व किया जा रहा है और उन्हें विजय पताका की तरह लहराया जा रहा है, उन्हीं सब खोखले दावों पर हम भविष्य में शर्मिंदा होंगे। उनका कहना है कि हमने जीवन को ही अर्थहीन बना दिया है, हम एक अनियंत्रित पागलपन को जी रहे हैं। हमारी सारी तथाकथित उपलब्धियां खोखली हैं और यह पृथ्वी ही नष्ट होने की ओर अग्रसर है। सूर्य के ताप में कमी आ रही है और वह उस दिये की तरह टिमटिमा रहा है, जो बुझने के पहले आखरी बार चमकता है। अगर वूडी एलन की फिल्म असफल होती, तो उनके बयान को व्यक्तिगत मायूसी से जोड़ा जा सकता था, परन्तु एक अनुभवी सफल, समृद्ध उम्रदराज आदमी के इस बयान को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
वूडी एलन ने लंबे कॅरिअर में रेडियो, रंगमंच, टेलीविजन तथा सिनेमा सभी विधाओं में महारत हासिल की है। उन्होंने हमेशा गंभीर विषयों पर बहुत ही मजाकिया ढंग से फिल्में बनाई। वे इस योग्यता के लिए जाने जाते हैं कि उन्होंने गहरी और गंभीर बातों को हास्यमय ढंग से प्रस्तुत किया। भारतीय दर्शकों को वूडी एलन को समझने के लिए राजकुमार हीरानी के सिनेमा का स्मरण करना चाहिए। सच तो यह है कि फिल्म माध्यम में अधिकांश गंभीर दार्शनिक बातें हास्य के लहजे में बयां की जाती हैं और सिनेमा के पहले कवि चार्ली चैपलिन ने यह सिनेमा के प्रारंभिक वर्षों में ही स्थापित कर दिया था। वूडी एलन के सिनेमा की एक बानगी प्रस्तुत है। एक आदमी अपने आरामदायक घर में बैठकर सारे काम रिमोट कंट्रोल से करता है। रिमोट से ही उसका एसी चलता है, परदे उठते-गिरते हैं और टेलीविजन पर चैनल सर्फिंग भी वह करता है। उसके इर्दगिर्द अनेक रिमोट रखे होते हैं। एक दिन उसका फ्रीज खाली है, अत: वह बाहर निकलता है। एक गुंडा उसे चाकू दिखाकर उसका बटुआ मांगता है। वह आदमी जेब से रिमोट कंट्रोल निकलता है और कहता है, 'शायद गलती से क्राइम चैनल लग गया है, अभी बदलकर कॉमेडी चैनल लगाता हूं।' सारांश यह है कि उस आदमी को भान ही नहीं है कि यथार्थ में उसे धमकी दी जा रही है।
वूडी एलन ने एक फिल्म में कुछ पात्रों को विभिन्न सदियों में उनका व्यवहार कैसा रहता है, यह दिखाया है। वे सिद्ध करना चाहते थे कि समय, देश इत्यादि के बदलने से मनुष्य का टुच्चापन नहीं बदलता। इसी तर्ज पर क्या हम वर्तमान कालखंड में गांधी, नेहरू, चर्चिल या हिटलर के होने की कल्पना कर सकते हैं? क्या वे इस बाजार, विज्ञापन, टेक्नोलॉजी शासित कालखंड में उतने ही असरकारक होते या अपने आदर्श कायम रख पाते? वूडी एलन की अनेक फिल्मों में वे स्वयं नायक की भूमिका करते रहे हैं। वे कुछ फिल्मों में प्रेमल बुद्धिजीवी की तरह प्रस्तुत हुए हैं और कुछ में अत्यंत दयनीय, निरीह परन्तु ठग की तरह नजर आए हैं। उनकी तीसरी छवि में उपरोक्त दोनों का मेल प्रस्तुत है। अर्थात बुद्धिजीवी और ठग स्वरूप एकसाथ प्रस्तुत है। यह मिश्रण कुछ बेतुका सा नजर आता है, परन्तु सतह के भीतर बुद्धिजीवी का आत्मकेंद्रित होना उसकी ठगी का ही हिस्सा होता है। बहरहाल, कोई व्यक्ति चौबीसों घंटे बुद्धिजीवी नहीं रहता और कोई ठग हमेशा ठगी नहीं करता। संभवत: रावण के दस सिर भी मात्र उनके अनेक रूपों के प्रतीक हैं। वूडी एलन को अपने शहर मैनहट्न से गहरा प्यार रहा है और अधिकांश फिल्मों की पृष्ठभूमि मैनहट्न रही है। सभी फिल्मों में उनके बचपन के अनुभव भी सृजन का आधार रहे हैं।
वूडी एलन के इस बयान को आप इस तरह देखें कि हमने धरती के पचास प्रतिशत खनिज का इस्तेमाल कर लिया है और दोहन की गति तीव्र हो गई है। नदियों को प्रदूषित कर लिया है और पहाड़ों को वृक्षविहीन। ये सारे कार्य विकास के नाम पर किए गए हैं। सबसे भयावह यह कि मनुष्य दिन ब दिन कम संवेदनशील होता जा रहा है। मौसम भी इस संवेदनहीनता से नाराज हो गए हैं।