वेताल फिर डाल पर / आलोक कुमार सातपुते

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विक्रम के कंधे पर सवार वेताल ने कहा-ले भाई विक्रम, मूंगफल्ली खाकर टाईम-पास कर ले। आज इंटरनेट के युग में भी कथाकारों ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा है और तुम्हें मुझे ढोना पड़ रहा है। भई, मेरी कहानियों का स्टॅाक तो ख़त्म हो गया है, फिर भी मैं तुम्हें एक घटना सुनाता हूँ और उसने सम्बन्धित प्रश्न पूछता हूँ। यदि तुमने उत्तर बताया तो भी ठीक, और नहीं बताया तो भी ठीक। मुझे तो वापस जाकर उसी डाल पर लटकना है। तो सुन:

आर्यवर्त नामक देश के राजा ने अपनी लड़की के विवाह के लिये समाचारपत्रों में विज्ञापन प्रकाशित कराया।

विक्रम (वेताल की बात बीच में ही काटकर )- लेकिन मैंने तो सुना है कि आर्यवर्त मे तो जनता का ही राज है। लोकतंत्र की बयार बह रही है। ऐसे में वहाँ राजा कहाँ से आ टपका?

वेताल-तुमने अपना मुंह क्यों खोला राजन? ख़ैर यह पहली ग़लती है, इसलिये माफ़ कर देता हूँ। सुनो आर्यवर्त में जो लोकतंत्र के ठेकेदार बने बैठे हूँ, वही तो वहाँ पर राजा हैं। ख़ैर तो विज्ञापन के प्रत्युत्तर में तीन लड़कों के पत्र आए। पहले लड़के ने ई-मेल भेजा और साथ ही अपनी संपन्नता का बखान भी किया। दूसरे लड़के ने साहित्यिक अंदाज़ में एक पोस्टकार्ड भिजवाया और स्वयं को सरस्वती का पुत्र होने का दावा किया, जबकि तीसरे ने दो वक़्त की रोटी और चार साड़ियों के साथ लड़की को सुखी रखने वाला डायलॅाग़ लिख मारा। राजन् अब तुम ये बताओ कि वह लडकी किससे शादी करेगी?

विक्रम-वर्तमान भौतिकवादी युग में निश्चित रुप से वह लड़की पहले लड़के को ही चुनेगी।

बिलकुल ठीक! तू बोला और मैं चला, कहकर वेताल ने फिर उसी डाल पर लटककर अपनी औपचारिकता पूरी की।