वेदना / अर्चना झा

Gadya Kosh से
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निजी अस्पताल का जनाना विभाग और दिनों की अपेक्षा आज कोई शोर शराबा नहीं..

कहीं-कहीं लोगों की फुसफुसाहट..

हाँ जो साफ सुनाई दे रहा था। वह रह-रह कर किसी की करुण सिसकियाँ.... आपस में लोग बात कर रहे थे एक दूसरे से शायद बेटा पैदा करने का दबाव होगा। एक बुजुर्ग दंपत्ति कह रहे थे पहली संतान लड़की का होना शुभ होता है। परिवार वालों का आक्रोश जब लड़की हो ही गई तो यह तमाशा क्यों? क्या जरूरत है इसकी? लेकिन वह सिसकी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। अंततः डॉक्टर उठ कर गई- ‘तुमने इतनी खूबसूरत स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया। एक औरत होकर बेटी के जन्म पर रो रही हो।‘

माँ जिसने कमल की पंखुड़ी के समान नवजात कन्या को छाती से लगाकर बैठी थी बोली मैडम जी जब ये गोद में आई तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ सारा संसार मेरे आंचल में समा गया हो लेकिन कुछ क्षण में ही मेरी खुशी इस सोच के सामने बौनी हो गई कि 'क्या यह सह पाएगी ?'