वेबसाइट पर नीले फीते का जहर / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 19 मार्च 2020
अश्लीलता दिखाने वाले वेबसाइट का विरोध किया जा रहा है। एक मुहिम चलाई जा रही है और इस विषय पर राज्यसभा में प्रश्न पूछे गए। सरकार लगभग 900 वेबसाइट्स को प्रतिबंधित कर चुकी है, परंतु वेबसाइट जंगली घास की तरह उग आती हैं। यूरोपीय देश स्वीडन अश्लील फिल्मों, क्लबों और पत्रिकाओं के प्रकाशन के लिए जाना जाता है। स्वीडन में अश्लील किताबें, फिल्में प्रतिबंधित नहीं हैं। पर्यटकों के लिए यह स्वतंत्रता वरदान है। गौरतलब यह है कि स्वीडन में दुष्कर्म सबसे कम होते हैं। ज्ञातव्य है कि कंगना रनौत अभिनीत फिल्म ‘क्वीन’ के कुछ दृश्य स्वीडन के फ्री मार्केट में फिल्माए गए हैं।
याद आता है कि इंदौर के महात्मा गांधी मार्ग पर एक दुकान में विदेशी पत्रिकाएं बिकती थीं। महारानी रोड पर भी एक दुकान में ‘इम्प्रिंट’ व ‘एनकाउंटर’ नामक पाक्षिक पत्रिकाएं आती थीं। बहरहाल, गांधी मार्ग स्थित दुकान के मालिक को इस तरह के विवादास्पद साहित्य का संकलन करना बहुत पसंद था। मित्रों ने पूछा कि दुकानदार को अंग्रेजी भाषा की कामचलाऊ जानकारी है, अत: ये किताबें वह कैसे पढ़ पाता है। दुकानदार ने तपाक से जवाब दिया कि इन किताबों को पढ़ने के लिए अंग्रेजी भाषा के ज्ञान से अधिक आवश्यक है अश्लील अवचेतन। मानव मस्तिष्क में अश्लीलता के प्रति एक स्वाभाविक रुझान है। होली उत्सव में स्पर्श की इजाजत होती है। इतना ही नहीं, चाल व भाव भंगिमा के द्वारा भी इच्छाएं अभिव्यक्त की जाती हैं। भीड़ में दो समलैंगिक एक-दूसरे को चीन्ह लेते हैं। ज्ञातव्य है कि विद्या बालन अभिनीत फिल्म ‘डर्टी पिक्चर’ में अश्लील माने जाने वाली फिल्मों की नायिका के सुख-दुख और भय को प्रस्तुत किया गया था। इसकी प्रेरणा दक्षिण भारत की एक सितारा के जीवन से मिली थी। यह उस सितारे की अघोषित बायोपिक थी। एक दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भारत के कोषालय में विदेशी मुद्रा की कमी को दूर करने कि लिए अप्रवासी भारतीयों को फिल्म निर्यात की इजाजत दी और हर फिल्म के लिए पांच हजार डॉलर भारत में जमा करना होते थे। उसी दौर में इंटरपोलेशन ऑफ फिल्म प्रिंट भी प्रारंभ हुआ, जिसके तहत विदेशी अश्लील दृश्य भारतीय फिल्म के प्रिंट में जोड़ दिए जाते थे। ज्ञातव्य है कि फिल्म से हटाए गए दृश्य सेंसर बोर्ड पूना फिल्म संस्थान भेज देता था। खाकसार ने उन दृश्यों के लिए पूना संस्थान के गोदाम छान मारे, परंतु कटे हुए दृश्य पर फिल्म का नाम नहीं होने के कारण वह शोध कार्य रोक दिया गया। गोदाम में कचरे की तरह सेल्युलाइड पड़ा हुआ था। चलते समय भय लगता था कि आपका कोई पैर मर्लिन मुनरो या एलिजाबेथ टेलर के बिंब पर तो नहीं पड़ रहा है? यह आश्चर्य की बात है कि इंडियन पेनल कोड सेक्शन 292, 293, 294 में अश्लीलता को परिभाषित करने से बचा गया है। उसमें लिखा है कि वेबसाइट डिक्शनरी में दी गई परिभाषा को स्वीकार किया जा सकता है। यह समझना जरूरी है कि लेखक का उद्देश्य क्या है? क्या वह उत्तेजना फैलाकर धन कमाना चाहता है? क्या वह एक मानवीय अनुभव के विवरण को प्रस्तुत कर रहा है। सन् 1933 में जेम्स जॉयस के उपन्यास ‘यूलिसिस’ पर अश्लील होने का आरोप था और जज वूल्जे ने यह फैसला दिया था कि किसी भी कृति के एक छोटे से हिस्से के कारण उसे प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता। बहरहाल, आज माता-पिता और परिवार की यह जवाबदारी है कि वे कमसिन किशोरों को मशविरा दें कि उन्हें नीले फीते के जहर से बचना है। ज्ञातव्य है कि अश्लील फिल्मों को नीला फीता कहा जाता है। स्वीडन इस निषेध से पूरी तरह मुक्त देश है। दशकों पहले से ही स्वीडन की शिक्षा संस्थाएं, सेक्स शिक्षा पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं। अज्ञान के अंधकार में व्याधियां फैल जाती हैं।