वे तीन मित्र / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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एक बार भालू, भेड़िया और लोमड़ी मिले और अपनी-अपनी भुखमरी का दुखड़ा सुनाने लगे। उन्होंने आपस में तय किया कि कुछ ऐसा उपाय किया जाए जिससे पेट की आग बुझ सके। तीनों लोग अच्छे मित्रों की तरह साथ रहें और सुख-दुख में एक-दूसरे का हाथ बटाएँ। वे एक-दूसरे के गले मिले। तीनों ने अपनी-अपनी वफादारी की कसम खाई।

एक दिन वे शिकार के लिए निकले। रास्ते में उन्हें एक हिरन मिला। उन्होंने उसे मार डाला। हिरन को बाँटने के लिए तीनों पेड़ के नीचे बैठ गए। भालू ने भेड़िये से कहा-``तुम इस हिरन को तीनों में बाँट दो।´´

भेड़िया बोला-``आप बड़े हैं और हमारे मुखिया हैं, अत: हिरन का सिर आपको मिलेगा। टाँगें लोमड़ी को। बाकी जो बचेगा, उसे मैं ले लूँगा क्योंकि बाँटने वाले को बचे-खुचे पर सन्तोष करना चाहिए।´´

भालू ने भेड़िये की चालाकी ताड़ ली। उसने इतना सुनते ही जोरदार घूँसा भेड़िये की कनपटी पर जड़ दिया। वह भयानक चीख के साथ एक ओर गिर पड़ा। भालू फिर लोमड़ी की ओर मुड़ा-``तुम हिरन को बाँटो।´´

लोमड़ी उठी और खुशामद भरे लहजे में बोली-``हिरन के सिर पर आपका अधिकार है, क्योंकि आप हमारे मुखिया हैं। आप हमारे लिए दौड़-धूप करते हैं, इसलिए टाँगें भी आपकी ही हैं। आप हमारा हमेशा बहुत ध्यान रखते हैं, इसीलिए बाकी भाग भी आपका ही है।´´

``लोमड़ी, तुम सचमुच बहुत चतुर हो। तुमने यह बँटवारे की चतुराई और समझदारी कहाँ से सीखी?´´

``आपने ही सिखाई मेरे मालिक! मैं एक बार में ही सीख जाती हूँ। मुझे दुबारा सिखाने की जरूरत नहीं पड़ती´´-लोमड़ी मुस्कराई।

भेड़िया दोनों की तरफ टुकुर-टुकुर देख रहा था।

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