वैधानिक लूट के दौर में एक और डाकू फिल्म / जयप्रकाश चौकसे

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वैधानिक लूट के दौर में एक और डाकू फिल्म
प्रकाशन तिथि :06 अप्रैल 2018


सुशांत सिंह राजपूत और भूमि पेडनेकर एक दस्यु कथा अभिनीत कर रहे हैं। लंबे अरसे बाद एक डाकू फिल्म बन रही है। 1960 में राज कपूर की 'जिस देश में गंगा बहती है' के कुछ समय बाद ही दिलीप कुमार की 'गंगा जमुना' और सुनील दत्त की 'मुझे जीने दो' नामक तीन दस्यु केन्द्रित फिल्मों का प्रदर्शन हुआ था। कुछ वर्ष पूर्व ही इरफान खान अभिनीत 'पान सिंह तोमर' का प्रदर्शन हुआ था। एक और दस्यु केन्द्रित फिल्म के निर्माण के समय ही खबर आई कि निम्न जाति के दूल्हे को घोड़े पर बारात लाने के खिलाफ हिंसा हुई है। भारतीय समाज में निरंतर परिवर्तन होने के साथ ही एक परिवर्तनहीनता भी है जैसे समुद्र की सतह पर निरंतर लहरें चलती हैं परंतु समुद्र के गर्भ में कुछ नहीं बदलता। हम एक पुल पर से गुजरती ट्रेन और पुल के नीचे से बैलगाड़ी गुजरते हुए देख सकते हैं ठीक उसी क्षण आकाश में जेट उड़ता भी देख सकते हैं। हमारे हर वर्तमान क्षण में भूतकाल के साथ ही भविष्य के संकेत भी विद्यमान रहते हैं। हर एक क्षण गर्भधारण किया हुआ क्षण होता है।

भूमि पेडनेकर की 'जोर लगाकर हइशा' के बाद 'शुभ मंगल सावधान' भी सफल रही थी। इसी तरह सुशांत सिंह राजपूत 'पीके' जैसी सफल फिल्म का हिस्सा थे और 'काई पो छे' के भी नायक रहे हैं। इस तरह सफल ट्रैक रिकॉर्ड वाले दो कलाकार अब दस्यु आधारित फिल्म अभिनीत करने जा रहे हैं। अगर क्रिकेट के मुहावरे में कहें तो ये दोनों ही पुरानी गेंद से भी रिवर्स स्विंग कर सकते हैं। फिल्म में रिवर्स स्विंग नहीं होता, क्योंकि इसमें अवाम अम्पायर की जगह बैठा है। यह अधिकतम लोगों की पसंद या नापसंद का मजमा है।

डाकू पनपे हैं, क्योंकि उसकी बनावट ऐसी होती है कि यहां किसी का पीछा करना आसान नहीं है। गौरतलब यह है कि यूरोप में सिसली नामक स्थान से अमेरिका गए लोगों ने वहां संगठित अपराध को जन्म दिया है। आर्थिक खाई के साथ ही भौगोलिक हालात भी बहुत कुछ तय करते हैं। मारियो पुजो का उपन्यास 'गॉडफादर' पूंजीवादी देशों की महाभारत है। 'गॉडफादर' घटना प्रधान उपन्यास है पर उसमें महाभारत की तरह अर्थ की परतें नहीं हैं। बहरहाल, लेखक अर्जुन देव रश्क ने अपनी कथा देव आनंद को सुनाई। देव आनंद ने कहा कि वे इस तरह की फिल्म नहीं बनाते परंतु देव आनंद ने अर्जुन देव रश्क की मुलाकात राज कपूर से कराई।

अर्जुन देव रश्क ने शंकर, जयकिशन, हसरत और शैलेन्द्र की मौजूदगी में अपनी कथा सुनाई। सुनकर राज कपूर ने उन्हें कुछ रकम देकर कथा खरीद ली। रश्क के बाहर जाते ही शंकर ने कहा कि इस दस्यु कथा में गीत-संगीत की कोई गुंजाइश नहीं है। बड़ी रूखी-सी कहानी है। राज कपूर ने कहा कि दो सप्ताह बाद हम इस कहानी पर पुन: चर्चा करेंगे। दो सप्ताह बाद राज कपूर ने उसी कथा को कुछ इस अंदाज में सुनाया कि ग्यारह गीतों की गुंजाइश निकल आई। पूरी टीम प्रेरित हो गई और एक सोद्‌देश्य मनोरंजक फिल्म बनने का आधार बन गया। यह इत्तेफाक देखिए कि जब राज कपूर इस फिल्म का क्लाइमैक्स उटगमंडलम में शूट कर रहे थे तब मध्यप्रदेश में विनोबा भावे के प्रयास से डाकू आत्मसमर्पण कर रहे थे। एक सृजनशील फिल्मकार वर्तमान में ही भविष्य के संकेत पढ़ लेता है, क्योंकि वह एक सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करता है।

इसी तरह 1985 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी लाल किले में अपना पहला भाषण दे रहे थे, जिसमें उन्होंने गंगा को प्रदूषण मुक्त होने की बात की तब सिनेमाघरों में राज कपूर की 'राम तेरी गंगा मैली' का प्रदर्शन प्रारंभ हो चुका था। जब राज कपूर की 'आह' असफल हुई तब उन्होंने दो बच्चों पर केन्द्रित सिताराहीन 'बूट पॉलिश' बनाई। 'जागते रहो' की असफलता के बाद सफल 'जिस देश में गंगा बहती है' बनाई तथा 'मेरा नाम जोकर' की असफलता के बाद सर्वकालिक सुपरहिट 'बॉबी' बनाई। राज कपूर रबर की गेंद की तरह रहे, जिसे जितनी शक्ति से दीवार पर फेंको, वह उतनी ही तीव्र गति से वापस आ जाती है।

आज चम्बल पूरे देश में फैल गया है। सिसली से आया हुआ-सा लगता है अमेरिका का राष्ट्रपति। अब डाके दूसरे ढंग से डाले जाते हैं और उन्हें वैधानिकता भी मिल गई है। अवाम पर नए नाम से जजिया कर लग गया है। सरेआम उसकी जेब काटी जा रही है और कोई आपराधिक प्रकरण भी नहीं बनता।

बहरहाल, शेखर कपूर ने 'बेन्डिट क्वीन' बनाई थी, जिसकी प्रेरणा उन्हें फूलन देवी से मिली थी परंतु फूलन देवी ने अदालत से फिल्म प्रदर्शन रोकने की गुजारिश की कि यह प्रामाणिक फिल्म नहीं। जज ने फैसला शेखर कपूर के पक्ष में दिया। उस समय खाकसार ने कॉलम में संत रामदास की कथा लिखी थी जो इतने मनोयोग से रामकथा बांचते कि उनकी ख्याति हनुमानजी तक जा पहुंची। हनुमानजी सामान्य व्यक्ति की तरह कथा श्रोताओं के बीच बैठ गए। कथावाचक ने सुनाया कि रावण की कैद में सीता सफेद साड़ी पहने बैठी थी और चहुं ओर सफेद फूल खिले थे। हनुमानजी ने विरोध किया की साड़ी लाल रंग की थी और फूल भी लाल थे परंतु कथावाचक अपनी बात पर अड़ा रहा। श्रीराम ने हनुमान से कहा कि क्रोध के कारण उनकी आंखों में खून उतर आया था। इसलिए उन्हें सब कुछ लाल दिखा गोयाकि घटना स्थल पर मौजूद व्यक्ति गलत हो सकता है, कथावाचक सच कहता है।