वैलेंटाइन डे इन पनौतीगंज / कमलेश पाण्डेय

Gadya Kosh से
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देश देख-देख कर चलता आगे बढ़ रहा है. देखने की दिशाएँ आगे-पीछे, ऊपर-नीचे और दायें-बाएं हैं. आगे का मार्ग प्रशस्त होना मांगता, सो देश चलाने वाले उसे चमकाए रखते हैं. ठीक आगे महानगर हैं, दायें-बाएं छोटे-मंझोले शहर और पीछे है पीछे छूटता जा रहा विशाल गाँव-कस्बों का संसार. देश अक्सर मुड-मुड के पीछे देख लेता है और प्रगति के कुछ अवशिष्ट गिराता आगे बढ़ जाता है. पनौतीगंज में भी ऐसा बहुत कुछ टपका है. प्रगति के अरमानों से लबालब ये क़स्बा अंगड़ाइयां ले रहा हैं. युवालोग उम्र के तकाज़े से कुछ अधिक ही ले रहे हैं. उनके मोबाइल स्क्रीन उन्हें देश से भी आगे निकल कर ग्लोबल विलेज से जोड़ चुके हैं. वे जान गए हैं कि फागुन अब फरवरी है और बसंत वैलेंटाइन. पर इश्क के लिए कस्बे में अभी जुरुरी संसाधनों की भारी कमी है. क़स्बे में एक प्रेम-मुक्त समाज की स्थापना को कटिबद्ध बड़े-बुजुर्गों का पूरा जत्था है. प्रेम करने का ढर्रा वही पुराना-धुराना है कि शीरीं अभी भी घर में बंद-बंद सी है और फरहाद गलियों में निठल्ले घूम रहे हैं. पर प्रेम रोके कब रुका है. आईये देखते हैं पनौतीगंज में टिंकू और रिंकू पर वैलेन्टाईन-सप्ताह कैसे गुजरता है.

रोज़ डे बनाम ताड़ू-दिवस- एक अदद गुलाब जुगाड़ कर टिंकू गली के मुहाने पर बैठा ताड़ रहा है कि एक अधबने मकान की बिन रेलिंग की छत बुहारती कन्या में उसकी वैलेन्टाईन बनने की क्या संभावना है. रिंकू ने उसे ताड़ते देख लिया है और बुहारने के कार्यक्रम को संभव विस्तार दिया है. पर उसे नीचे भी बुहारना है. दोपहर हो चली है. तीसरी बार छत पर आने पर उसे टिंकू नहीं दिखता तो नीचे जा कर सो जाती है. भोजनोपरांत ताड़ने का दूसरे सेशन में ढलते सूरज के साथ टिंकू को अपनी ओर देखती रिंकू दिख जाती है. वो खुद खिल कर मुरझा चुका गुलाब झंडे की तरह उठा देता है. गली में ठंढ और अन्धेरा साथ साथ उतर आए हैं. टिंकू ताड़ू-दिवस मना कर खुश-खुश लौट आया है.

प्रपोज़ डे बनाम फेरा-दिवस- आज रिंकू किसी से साइकिल मांग लाया है. दुश्मनों की निगाह से बचता गली के फेरे लगा रहा है. इशारे से प्रपोज़ करना चाहता है. पर रिंकू इशारे की ज़द में नहीं है. बिना पल्लों की खिड़की में टाट का पर्दा है. एक फेरे में रिंकू दरवाज़े पर दिख जाती है. वो हाथ हिलाता है, रिंकू तिरछी नज़र से सलाम लेती है. टिंकू के फेरे दूनी रफ़्तार पकड लेते हैं. आगे.......! कुछ नहीं होता, शाम फिर आड़े आ जाती है, कस्बे की बिजली और सूरज हमेशा साथ ही ग़ायब होते हैं. पर टिंकू का दिलो-दिमाग रौशन है. वह कल के लिए चाकलेट जुगाड़ने में लग जाता है. इति फेरा-डे सम्पन्नम!

चाकलेट डे उर्फ़ इमरती दिवस- क़स्बे की सबसे बढिया बनिए की दूकान पर भी चाकलेट न मिलने पर भन्नाया हुआ टींकू बगल के हलवाई के यहाँ छनती ताज़ा इमारती को ताज़ा पत्तों के दोनों में ‘गिफ्ट-पैक’ करवा कर यार की गली की तरफ लपक गया है. घंटों टांगें बदल-बदल कर खड़े रहने के बाद टाट के परदे तले एक दुपट्टे की झलक दिखी है. दोने को चौखट पर पूजा के भाव से अर्पित करते हुए उसने मन्त्र-सा पढ़ा है- चाकलेट... नहीं इमरती है तुम्हारे लिए. खा लेना ज़ुरूर. दोने को आहिस्ता से खींचते हाथ को देख गदगद होकर, फिर चपर-चपर की आवाज़ के साथ गड़प करना महसूस कर वह संतोष से कहता है- मैं कल तुम्हारे लिए एक कमाल का गिफ्ट ले आउंगा. यहीं मिलना..


टेडी डे बनाम पिल्ला-दिवस- पहले से ये जानकारी होने से कि टेडी भुस भरे हुए पिल्ले जैसा होता है और कस्बे की एक दूकान पर खासा महंगा मिलता है, टींकू ने एक नायाब तरीका ढूंढ निकाला है. गली की कुतिया की नज़र बचाकर उसका एक पिल्ला उठा लाया है. उसके गले में अपना लाल रुमाल बाँध कर अगले रोज़ वो रिंकू की गली में उतर गया है. ढेर सारा धीरज और आज एक साथी भी साथ लिए कुछ घंटे एक मकान की ओट में बिताने के बाद उसे खिड़की पर रिंकू दिखती है. तीन छलांगों में चौखट छू कर जैसे ही वहां पिल्ला रखता है कि एक जोर की चीख सुनाई देती है - बप्पा रे! और पिल्ला वहीँ फेंक वो गोली की रफ्तार से गली की दुनाली से छूट जाता है. घर आकर बीते चार दिन की उपलब्धियों पर चिन्तन कर नया जोश पैदा करता है. कल हर हाल में उसे जनम-जनम तक साथ निभाने का प्रॉमिस दे देना है, ऐसा इरादा कर वह लाल स्याही से सफ़ेद पन्ने पर एक फड़कती हुई चिट्ठी लिखता है. अंत में लिखता है- तुम्हारा टिंकू जिया. प्रॉमिस डे उर्फ़ ढेला-दिवस- चिट्ठी को सीने के पास दबाये उसे डिलीवर करने के लिए नुक्कड़ के हलवाई के बेंच पर किसी कमांडो की तरह घात लगाए बैठा है टिंकू. रिंकू कई बार दृश्यमान होती है. एक बार आँख मिलाते हुए भौंहें चमका कर मुस्काती भी है. पर चिट्ठी टिकाने का कोई ज़रिया नहीं है. सूरज लाल हुआ जा रहा है. दिन के आखिरी लम्हों में टिंकू को एक कमांडो योग्य आइडिया सूझता है. पास पड़ा एक ढेला उठाकर उस पर चिट्ठी को मढ़ देता है और हैण्ड ग्रेनेड की तरह टाट के भीतर लांच कर देता है. अन्धेरा होने तक कोई विस्फोट हुआ न पा कर वह खुश-खुश अपने अड्डे पर लौट आया है. चिट्ठी में उसने अपने प्रॉमिस के बदले रिंकू से अरहर के खेत में मिलने का प्रॉमिस माँगा है. मौन को स्वीकृति लक्षणम मानते हुए वह कल रिंकू को ‘हग’ करने के मंसूबे के साथ रात भर जागता रह गया है.

हग डे उर्फ़ ख्याली पुलाव डे- रिंकू की गली में शाम तक टिके रहने की मज़बूरी में नुक्कड़ पर भकोसे गए चाय-पकौड़े और उत्तेजना से उपजी अनिद्रा से टिंकू का पेट चल गया है , सो अगला दिन ‘हग’ के लोकल अर्थ के मुताबिक़ शुरू हुआ है. दिन का एक बड़ा हिस्सा संडास में गुजारते हुए वो जब जब प्रॉमिस से पिघली रिंकू को हग करने खेत की ओर बढ़ता है, दिल के साथ पेट में भी ऐसी खलबली मचती है कि सरपट भाग कर दुबारा संडास में ही शरण लेनी पड़ती है. शाम ढलने तक पेट रुका है तो खाने को खिचड़ी मिली है. पर मन में ढेरों ख्याली पुलाव पकाता हुआ वह कल की कार्य योजना पर विचार करने लगता है.

किस-डे बनाम रुसवाई-दिवस- हग सम्पन्न हुए बिना ही सीधे ‘किस’ पर उतर आने का हौसला लिए टिंकू अगले रोज़ फिर मैदाने-जंग में जा पहुँचा है. पर आज वहां का नक्शा बदला हुआ है. हलवाई उसे बेंच पर बैठने से पहले ही अलर्ट देता है कि भैया हड्डी पसली की सलामती चाहते हो तो यहाँ से फूट लो. वहां पकौड़े चुगते कुछ लौंडे बैठे हैं जो कतई फ्रेंडली नहीं लग रहे. गली की ओर से आते दो लोगों को अपनी ओर इशारा करते देख वह वहां से खिसक लेता है. बगल वाली गली में रहने वाले एक दोस्त के पास टोह लेने के इरादे से पहुँचता है तो जान लेता है कि परसों वाला ग्रेनेड भले ही टार्गेट पर नहीं गिरा पर फटा बड़े ज़ोरों से. नतीजे में फ़िल्मी शायरी के तर्ज़ पर सारे मोहल्ले में उसकी रुसवाई हो चुकी है. उसने जानना चाहा है कि इस पर रिंकू की क्या प्रतिक्रिया है. दोस्त ने बताया है कि वो कल पूरे दिन रोती गाती रही है.

वेलन्टाइन डे उर्फ़ कुटाई दिवस- आखिर दुनिया भर के प्रेमियों के प्रेम-यज्ञ के फलित होने का दिन आ ही गया है. टींकू हताश नहीं है. उसने सातों दिन अपनी शक्ति भर प्रेम-अर्चना के सारे कर्मकांड निभाये हैं. उसे यकीन है रिंकू भी जान गई है और इसीलिए इतना रोई. अब वह बन्धनों को तोड़ेगा. प्यार के दुश्मनों से लडेगा. सच्चे प्रेम से भीगे बलिदानी जोश से भरा वो कूचा-ए-यार में धंस गया है. रिंकू के घर के आगे पहुंचते ही तीन लोगों ने उसे दबोच लिया है. अब वहीँ गली में उसकी भरपूर कुटाई संपन्न हो रही है. इस पर ज़रा-सा प्रतिरोध ज़ाहिर करने के बदले घर के भीतर रिंकू की भी जी-भर कुटाई हुई है. 

पनौतीगंज के बड़े-बुजुर्गों ने देश और संस्कृति के हित में एक प्रेम-मुक्त समाज की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में इस कारर्वाई को एक बड़ा कदम बताया है. इससे लगता है कि आने वाले वक़्त में भी देश के पनौतीगंजों में वेलेंटाईन डे जैसे मौके इसी ढंग से मनाये जायेंगे.