वोट / पद्मजा शर्मा
अब के पंचायत चुनाव कई अर्थों में लीक से हटकर हैं। चुनाव प्रचार हाइटेक होता जा रहा है। अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित हो रहे हैं। मोबाइल और ई-मेल से सूचनाएं, संदेश और आदेश भेजे जा रहे हैं। यह पहली बार है जब किसी भी बड़ी पार्टी ने अपना चुनावी घोषणा पत्र तैयार नहीं किया है। प्रत्याशी वोट के लिए घर-घर दस्तक भी नहीं दे रहे हैं। जनता स्वयं को ठगा-सा महूसस कर रही है। कब से कसमसा रही थी कि प्रत्याशी वोट मांगने आएंगे तो उन्हें खरी-खोटी सुनाएंगे। माना कि वे झूठी-सच्ची दिलासाएँ देंगे और हम लेंगे। लेकिन मन की कुछ भड़ास तो निकालेंगे।
प्रत्याशियों की जनता के प्रति इस बेरुखी का कारण सुखीलाल ने बताया कि सभी दलों ने संयुक्त निर्णय लिया है कि अब से घोषणा पत्र तैयार नहीं करेंगे। खामाख्वाह जनता, मीडिया और विरोधी पार्टी वाले हाथों में लिए घूमते हैं। घोषणा पत्र ही नहीं तो सवाल-जवाब भी नहीं। वादे नहीं तो टूटने का डर भी नहीं। रही बात घर-घर जाकर दस्तक देने की। तो जाओ न जाओ, काम करो न करो, प्रत्याशी ईमानदार हो अपराधी हो क्या फर्क पड़ता है। जनता भेद तो करती नहीं। वह निरपेक्ष भाव से सिर्फ़ अदल-बदल करती है।
सरकार ने अनिवार्य मतदान विधेयक पारित कर प्रत्याशियों की राह और आसान कर दी है। जनता को घर से निकलना पड़ेगा। वोट देना ही पड़ेगा।