वो ऐसा क्यों है? / ममता व्यास

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हम दिन भर में कई लोगों से मिलते हैं, उनसे बातें करते हैं और उनके बारे में एक राय कायम करते हैं। वो बहुत खुशमिजाज इंसान है या वो एकदम बोरिंग है या वो महिला बड़ी जिंदादिल है या वो बड़ी रोनी-सूरत है। ये हम सभी के व्यक्तित्व के विभिन्न प्रकार हैं। लेकिन कभी-कभी हम आपने आसपास ऐसे लोगों से भी मिलते हैं जिनके बारे में आप कोई राय नहीं दे सकते। इन लोगो का व्यक्तित्व विचित्र होता है ऐसे लोगों के बारे में कुछ नही कहा जा सकता। उदाहरण के लिए मिस्टर शर्मा जब तक अपने ऑफिस में काम करते हैं तब तक वो एक जिम्मेदार ऑफ़िसर की तरह बिहेव करते हैं और घर पर आते ही वो एक हिंसक एवं गुस्से वाले व्यक्ति में बदल जाते हैं। उनकी पत्नी और बच्चे बस इस बात के गवाह होते हैं। ऑफिस में उनकी छवि एक शांत और कोमल व्यक्ति की है लेकिन घर आते ही बात उलट जाती है। इसी तरह मिस जेनिफर जो पेशे से एक टीचर थी, जब वो क्लास लेती थी तो बहुत ही प्यार से और आत्मीय होकर छात्रों को पढ़ाती थी। हमेशा हँसने मुस्काने वाली ये जिंदादिल टीचर एक दिन अपने ही घर में मृत पाई गई। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में लिखा दुनिया को खुशिया बाँटते-बाँटते मैं थक गई, अब मैं सोना चाहती हूँ, हमेशा के लिए। कई दिनों तक लोगो ने विश्वास नहीं किया कि हमेशा खुश रहने वाली महिला यूँ कमजोर होकर मौत को गले लगाएगी।

दरअसल दोनों उदाहरणों में दोनों लोग एक मानसिक बीमारी के शिकार हैं। उनके व्यक्तित्व के दो रूप हैं। उनका चित्त स्थिर नहीं रहता और ऐसे में मरीज अवसाद में चला जाता है। इस रोग को ब़ी.पी. डी. यानी बार्डरलाइन पर्सनालिटी डिसऑर्डर कहते हैं। इस रोग में व्यक्ति का व्यक्तित्व विभाज्य हो जाता है।

विभाज्य व्यक्तित्व विकार ऐसा मनोवैज्ञानिक विकार है जिसमे अक्सर लोग अपनी शख्सियत भूल जाते हैं। इस विकार में व्यक्ति की मनोस्थिति उसके नियंत्रण में नही रहती व्यक्ति अपने व्यक्तिगत संबंधों में बहुत ही अनिश्चित हो जाता है। उसे अचानक गुस्सा आता है, तो कभी वो भावशून्य हो जाता है या फिर कभी-कभी वो बिना किसी कारण स्वयं में परित्याग की भावना महसूस करता है।

अमेरिकन साइकेट्रिस्ट एसोसियेशन के अनुसार आज लगभग 2 प्रतिशत जनसँख्या बी.पी.डी. की शिकार हैं इस बीमारी से ग्रस्त मरीज अपनी संवेदनाओं पर नियंत्रण खो देते है। कभी-कभी वे लम्बे समय तक शांत रहते हैं और समझदारी वाला व्यवहार करते है, तो कभी जिम्मेदारियों से बचने के लिए बचाव के तरीके अपनाते हैं। उदाहरण के लिए किसी सामान को तोड़ना किसी पर जोर से चिल्लाना आदि। ऐसा करते समय वे दूसरों का अवमूलन करते हैं। कभी-कभी ऐसे मरीज बचाब के अन्य तरीके भी अपनाते हैं जैसे प्रोजेक्टीव आइडेंटीफिकेशन; ये ऐसी स्थिति है जब मरीज अपने अहसासों को भी नहीं पहचानना चाहता। वह अपने मन में उठ रहे भाव या अहसासों को सिरे से ख़ारिज करता जाता है। उसे लगता है कि वो सही कर रहा है और ऐसा करते समय वो कई तरह के बहाने भी बनाता है।

ये रोग पुरुषों की तुलना में महिलाओं को ज्यादा होता है। 75 प्रतिशत महिलायें इस बीमारी की शिकार हैं।

इस रोग के मरीज अक्सर लम्बे समय तक इम्पल्सिव होते हैं उनकी भावनाएं तीव्र गति से बदलती हैं अभी वे हंसते हुए दिखेंगे तो अगले ही पल उदासी में डूबे हुए। अभी मूड ठीक तो अभी खराब। बार-बार मूड चेंज होना इस बीमारी के लक्षण हैं।

अगर ये रोग युवावस्था में हो जाए तो उम्र ढलने के साथ ठीक हो भी सकता है। लेकिन यदि यह 30-40 वर्ष की उम्र में हो जाये तो इलाज बहुत जरुरी हो जाता है। बी.पी.डी. के होते ही मूड डिसऑर्डर तथा डिप्रेशन जैसी समस्या साथ चली आती हैं। हम अपने आसपास ऐसे लोगों को देखते ही हैं जो अक्सर परेशान रहते हैं। हमेशा नकारात्मक सोच रखते हैं। उनकी बातें हमेशा उलझी हुई-सी रहती हैं। किसी से बात करते समय वो कब किस बात पे भड़क जाए कोई नहीं जानता। किसी की सहज-सी बात पे ये रोगी तूफान खड़ा सकते हैं और खुद भी परेशान होते हैं। इन्हें अपना खुद का बिम्ब ही बदलता-सा दिखता है। कभी आवेग में आकर सब कुछ मिटा देने की बात करते हैं या खुद को ही मिटा देने की बात करते हैं। आए दिन होने वाली हत्याओं और आत्महत्याओं के पीछे यही रोग काम करता है। रोगी गुस्से में खुद को या किसी दूसरे को चोट पहुंचाता है और फिर बाद में पछतावा करता है।

इस रोग का पता तब ही चलता है जब आप रोगी के साथ लम्बे समय तक संपर्क में रहें और उसके बर्ताव को देखें। इस रोग में रोगी बहुत आवेग में होता है और उसका ये आवेग कुछ स्थितियों में होता है जैसे सेक्स, मादक पदार्थों का सेवन, लापरवाही से गाडी चलाना, खुद को चोट पहुँचाना, खाली-खाली महसूस करना, गुस्से पर नियंत्रण न होना आदि।

अक्सर रोगी खुद के बारे में कुछ इस तरह के विचार रखता है कि मैं दुनिया के लायक नहीं हूँ, किसी का प्रिय नहीं हूँ, मेरा रंग रूप बिगड़ गया है, सब मुझसे बिछड़ गए हैं, दुनिया की कोई ख़ुशी मुझे खुश नहीं कर सकती, मुझे ये जीवन खतम कर देना चाहिए या इस दुनिया को ही खतम कर देना चाहिए। ऐसे सैकड़ों विचार एक साथ रोगी के मन में आते-जाते रहते हैं।

बी.पी.डी. की चिकित्सा के लिए व्यक्तिगत या सामूहिक साइकोथेरेपी दी जाती है। इसमें काग्निटिव बिहेवियर थेरेपी सबसे कारगर होती है। ये थेरेपी मरीज के अनुभव और उसके दूसरे लोगो के साथ रिश्तों पर निर्भर करती है।

मरीज को उसके व्यवहार पर नियंत्रण सिखाया जाता है। साथ ही दवाओं के जरिये मरीज के बिगड़े मूड को ठीक किया जाता है। इस सबके वावजूद मेरा मानना है कि मरीज के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार आत्मीयता-पूर्ण सम्बन्ध रखना बहुत जरुरी होता है। उसे उसके अच्छे होने का अहसास करवाया जाए। उसके साथ बातचीत की जाये, वो किसी के लिए महतवपूर्ण है ये जताया जाए। ऐसे व्यवहार से मरीज बहुत जल्दी सामान्य हो जाता है। याद रखिये हर मानसिक या शारीरिक बीमारी पहले मन में जन्म लेती है। इसलिए मन को समझना ज्यादा जरुरी है। किसी के दुःख या पीड़ा को उसी के स्तर पर जाकर समझने की कला से हम किसी के दुःख को हल्का कर सकते हैं और उसके उदास चेहरे पर एक सुन्दर मुस्कान ला सकते हैं। अब किसी के भी बारे में कोई राय बनाने से पहले मनोविज्ञान की नजर से ये जरुर जान लें की वो ऐसा क्यों है?