वो नदी जो खो गई / सुनो बकुल / सुशोभित
सुशोभित
"सिंधु घाटी सभ्यता" की गुत्थी उसकी छूटी हुई कड़ियों में निहित है।
मसलन, एक ऐसी भाषा, जिसे पढ़ा नहीं जा सका।
एक ऐसी नस्ल, जिसे पहचाना नहीं जा सका।
और एक ऐसी नदी, जो अब खो चुकी है।
सरस्वती नदी : "ऋग्वेद" में जिसकी स्तुति एक चौड़े पाट वाली सदानीरा महानदी के रूप में की गई है, और बाद के ग्रंथों में उसे एक ऐसी विलुप्त होती नदी बताया गया है, जो प्रयाग में जाकर गंगा और यमुना से जा मिलती है, एक अदृश्य धारा की तरह।
"द्वारका", "रामसेतु", 'सुमेरु" और "दृष्द्वती" नदी की तरह सरस्वती भी भारत का एक ऐसा मिथ है, जो धीरे-धीरे दंतकथाओं से ऐतिहासिक प्रमाणों के दायरे में सरकता आ रहा है।
अब लगातार यह माना जाने लगा है कि जैसे गंगा और यमुना का दोआब आज भारत की पहचान है, वैसे ही प्रागैतिहासिक काल में भारत का पर्याय सिंधु और सरस्वती का दोआब था।
गंगा-यमुना हिमालय से निकलती हैं और पूर्व दिशा की और दौड़ती हैं। सिंधु और सरस्वती हिमालय से निकलकर उससे ठीक विपरीत पश्चिम दिशा में दौड़ती थीं, गंगा-यमुना से कहीं व्यापक और उर्वर भूगोल को सींचते हुए। और यह कि जब गंगा-यमुना के दोआब में सभ्यताएं संभवत: अपने शैशवकाल में ही थीं, तब सिंधु-सरस्वती की सभ्यताओं ने नागरिक उत्कर्ष के शिखरों को छू लिया था।
पहले इसे केवल सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाता था, अब उसे "सिंधु-सरस्वती" या "सैंधव-सारस्वत" सभ्यता कहने का आग्रह पुष्ट होता जा रहा है। यह आग्रह कि वह एक नदी नहीं, एक दोआब की सभ्यता थी। कि सिंध और पंजाब प्रांत में उसकी जितनी बसाहटें थीं, उतनी ही बसाहटें, शायद उससे भी अधिक, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में भी थीं।
हड़प्पा संस्कृति की जब पहले-पहल खोज की गई थी तो उसके दो महानगरों "हड़प्पा" और "मोहनजोदड़ो" ने पुराविदों को चकित और मंत्रमुग्ध कर दिया था। वे इस सभ्यता की पहचान बन गए थे। लेकिन इधर हुए अध्ययनों में हड़प्पा संस्कृति का "एपिसेंटर" खिसककर थोड़ा पूर्व की ओर आ रहा है।
मसलन, पहले मोहनजोदड़ो के "ड्रेनेज सिस्टम" के चर्चे होते थे, इधर धोलावीरा के "वाटर रिसोर्स सिस्टम" की बात हो रही है। पहले "मोहनजोदड़ो" सबसे बड़ा हड़प्पाकालीन नगर था, अब हरियाणा के "राखीगढ़ी" में पाए गए पुरावशेषों के आधार पर उसे हड़प्पाकालीन सबसे बड़ा नगर माना जा रहा है। राजस्थान के "कालीबंगा" में पुराविदों की रुचि बढ़ती जा रही है। और गुजरात के "लोथल" को तो दुनिया का सबसे पुराना बंदरगाह मान लिया गया है।
सिंधु घाटी सभ्यता का केंद्र धीरे-धीरे वर्तमान भारत की ओर खिसक रहा है। हरियाणा में "घग्गर-हकरा" नदी घाटी, राजस्थान में थार के मरुथल और गुजरात में कच्छ के रण को पाकिस्तान में रह गए पंजाब और सिंध प्रांत की तुलना में सिंधु घाटी सभ्यता का वृहत्तर केंद्र स्वीकारा जा रहा है। सरस्वती नदी के लुप्त हो चुके पथ को खोजने की कोशिशें की जा रही हैं।
जिस दिन वह पथ मिल गया, इतिहास फिर से लिखा जावैगा.
कौन जाने, हमने अभी तक जो पाया है, वह केवल एक झांकी भर हो, और उसके पूरे ब्योरे अभी हमारे सामने खुलने बाक़ी हों। शायद थार के रेगिस्तानों में दफ़न कोई महानगर हमें मिले, जहां से मिस्र की रोसेत्ता शिला जैसे किसी अभिलेख को हम बरामद कर सकें।
जिस लिखित सुराग़ को धोलावीरा में हम पाते-पाते रह गए थे, वह मिले और आखिरकार हम यह पता लगा सकें कि वे लोग कौन थे? कहां से आए, कहां चले गए? उनकी भाषा-लिपि क्या थी? उनकी सरस्वती नदी का क्या हुआ? उनके देश का नाम क्या मेलुहा था, जैसा कि सुमेरी सीलों पर बताया जाता है? उनके देवता और शासक कौन थे? उनके सपने और उनकी आकांक्षाएं क्या थीं?
क्या वे ही हमारे पुरखे तो नहीं थे?