वो शाम / प्रियंका गुप्ता
अजीब-सी शाम थी। हालांकि उसमे ऐसा कुछ अलग तरह का अजीबपना नहीं था, जो अमूमन न होता हो, पर फिर भी उसे वह शाम कुछ अलग...कुछ अजीब ही लग रही थी।
लड़की ने आज उसे अपने हॉस्टल बुलाया था मिलने। यूँ तो वह उससे कहीं बाहर ही मिलती थी। कभी किसी पार्क में, तो कभी किसी छोटी-सी चाय की दुकान में। हॉस्टल में किसी लड़के को बुलाना एक तो वैसे ही एलाउड नहीं था, ऊपर से एक बार उसने मज़ाक में बोल भी दिया था...अरे, मुझे बाकी लड़कियों की तरह ही अपना कजिन बता देना न...तो वह कैसे मुँह फुला कर बैठ गई थी। उसे कितना मनाना पड़ा था...कान भी पकड़ कर माफ़ी मांगते हुए वादा भी करना पड़ा था कि आइन्दा वह कभी ऐसी वाहियात बात नहीं कहेगा।
कोई और बात होती तो वह थोड़ी देर लड़की को मुँह फुलाए बैठे रहने देता। बेहद अच्छी लगती थी जब वह गुस्सा होती थी। गुस्से में उसके नथुने हलके फूल जाते थे...जिधर वह बैठा होता उधर से वह थोड़ी तिरछी होकर बैठ जाती। नज़रें सामने ज़मीन पर टिकाये वह पैर के अंगूठे से ज़मीन खुरचती। हथेलियाँ आपस में फँसा कर उनको हलके से मरोड़ती भी रहती। वह कुछ बोलता तो गर्दन की हलकी जुम्बिश के साथ उसके सवाल को मानो अपने सिर से झटक देती। ऐसे में वह अक्सर बेहद फालतू से जोक्स सुनाना शुरू कर देता। कई बार के सुने-सुनाए... पर बिलकुल श्योर शॉट। लड़की ऐसे में पहले तो ज़मीन से नज़रें उठा कर सामने किसी चीज़ पर अपनी निगाह टिकाती...जैसे इस तरह निगाह टिकाने भर से सारी बातें उसके कानों को भी छुए बगैर निकल जाएँगी। फिर जब कंट्रोल न होता तो धीमे से हँस देती। लड़का इस एक हँसी पर निहाल हो जाता...और फिर धीरे से उसके बगल में बैठ कर उसके माथे पर बिखर आई लट उसके कानों के पीछे खोंसता हुआ बेहद धीमे से फुसफुसाता...आई लव यू... ।
लड़की ऐसे में चौंक जाती। कुछ-कुछ अचरज वाले भाव लिए वह पहले तो उसकी ओर देखती और फिर जैसे कन्फर्म करना चाह रही हो, उसी अंदाज़ में पूछ लेती...कुछ कहा क्या तुमने...?
लड़का उसी तरह मुस्कराते हुए 'न' में गर्दन हिला देता और वह फिर अपने पुराने ढर्रे पर लौट आती। दुनिया-जहान की बकबकी करने में तो जैसे उसे महारत हासिल थी। कई बार तो उसकी बेसिर-पैर की बातों से थोड़ा त्रस्त होकर वह माथा पकड़ कर बैठ जाता...अगर कभी मैं पागल हुआ न तो उसकी ज़िम्मेदार तुम होगी।
लड़की ज़रा भी बुरा नहीं मानती। वह इसे अपनी क़ाबिलियत समझती थी...देखा...मैं जब चाहूँ किसी को भी पागल कर सकती हूँ।
लड़का कहना तो चाहता कि उससे बड़ा पागल इस पूरी कायनात में कहीं नहीं मिलेगा, पर उसके भयानक वाले गुस्से की कल्पना करके खुद को रोक लेता। उसी पागल लड़की ने आज उसे हॉस्टल क्यों बुलाया, ये लाख कोशिश के बावजूद उसे समझ नहीं आ रहा था।
लड़की हॉस्टल के बाहर ही उसका इंतज़ार कर रही थी। विजिटर्स स्लिप भरने की बारी आई तो उसने लड़के के हाथ से पर्ची लेकर खुद भर डाली। उसने झाँकने की बहुत कोशिश की, पर लड़की की तरेरती आँखों से सहम कर पीछे हट गया। मज़ाक में उसे नाराज़ करना एक बात थी और यूँ असली वाला गुस्सा झेल पाना दूसरी बात। काउंटर क्लर्क ने पर्ची देख कर कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि उसने उसे भी हाथ के इशारे से रोक दिया। वह हैरान था। इस लड़की से क्या ये लोग भी ऐसे ही डरते हैं...या उसने उन सब पर भी कोई जादू कर रखा है...?
लड़की के इस जादू को तो वह आज दो साल बाद भी समझ नहीं पाया था। उसको तो छोडो...एक-दो बार ही उससे मिल लेने वाला हर शख्स मानो उसका मुरीद बन जाता था। वैसे वह सच में थी ही इतनी प्यारी और मासूम कि किसी को भी उस पर प्यार आ जाए... ।
अन्दर कमरे में लड़की का सारा सामान एक बड़े-से सूटकेस में बंद था। लड़की ने उसका हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा लिया। बिना कुछ बोले जब उसने अपने दुपट्टे का कोना अपनी हथेलियों पर लपेटना-खोलना शुरू किया, तब उसका ध्यान लड़की के कपड़ों पर गया। ज़्यादातर वेस्टर्न ड्रेस पहनने वाली उस लड़की ने आज वही नीला सलवार-सूट पहना था, जो उसने उसके हालिया गए बर्थडे पर दिया था। लड़की आज नाराज़ नहीं थी, फिर भी ख़ामोश थी।
उसने धीरे से उसकी ठोड़ी पकड़ कर उसका चेहरा अपनी ओर घुमा लिया...आज तो मैंने कुछ भी ऐसा नहीं किया जिससे तुम्हारा मुँह फूले। फिर क्यों बैठी हो ऐसे...? और ये तुम्हारा सब सामान सूटकेस में क्यों है...? कहीं जा रही हो क्या...बिना बताये...?
लड़की ने बड़ी-बड़ी नज़रें उसके चेहरे पर चिपका दी...मैं वापस जा रही...अपने घर...माँ-पापा के पास।
वापस कब आओगी...?
शायद कभी नहीं।
वो एकदम चुप रह गया। दो साल पहले बस की हड़ताल के चलते उसके साथ ऑटो शेयर करके हॉस्टल आने वाली एक अनजान लड़की से आज दूसरी बार उसके हॉस्टल में मिल रहा है, पर उसे लग रहा, जैसे वक़्त वहीं रुक गया है। दो साल में साथ बिताये हर एक लम्हे को वह किस नाम से पुकारे, वह जब खुद तय नहीं कर पा रहा...तो फिर किस मुँह से उसे रुकने को कहे...? रुकने की तो छोड़ो, वह तो हमेशा के लिए उसके इस तरह जाने की वजह भी नहीं पूछ पा रहा। ये सारी पूछा-फेकी करने का अधिकार ही क्या था उसको...?
मुझे छोड़ने स्टेशन चलोगे...? लड़की की आँखों में एक आशा थी, इसलिए वह चाह कर भी ना नहीं कर पाया। ये भी नहीं कह पाया कि उसे अलविदा कहना कितना भारी पडेगा उसको। पर उसे सिर्फ़ लड़की को खुश देखना था...भले ही लड़की कभी उसके दिल के इन जज्बातों को न समझ पाए... ।
गाडी उसी रात की थी। उसे लड़की से बहुत कुछ कहना था, पर अचानक उसकी याददाश्त ने उसका साथ छोड़ दिया था। कितना कुछ सोच कर आज घर से निकला था, पर इस समय जैसे सब हवा हो गया था। लड़की जाने कैसी बेसिर-पैर की बकवास किए जा रही थी और वह बस एक उदास-सी मुस्कान फेविकोल से अपने होंठों पर चिपका कर बैठा हुआ था। आज सच में उसकी सब बातें उसके सिर के ऊपर से जा रही थी।
गाड़ी प्लेटफोर्म पर लगी हुई थी। उसने लड़की का सामान अच्छे से जमा दिया। पानी की बोतल...एक फ़िल्मी मैगजीन...उसके पसंदीदा चिप्स के दो-तीन बड़े-बड़े पैकेट...और एक बड़ी-सी चाकलेट...ये सब उसने खरीद कर ज़बरदस्ती उसके बैग में डाल दिए... । पता नहीं कैसे आज सब कुछ उलटा-पुल्टा हो रहा था। लड़की उसे हर चीज़ दिलाने से मना कर रही थी और वह जैसे दिलाने की जिद पर अड़ा था। आज पहली बार लड़की उससे हारी थी।
ट्रेन चल दी थी। दरवाज़े तक उसे छोड़ने आई लड़की पल भर ठिठकी तो उसका दिल किया, आज पहली और शायद आख़िरी बार उसे गले से लगा ले...पर ऐसा कुछ नहीं किया उसने। बस हवा से उड़ कर माथे पर आई लट को हमेशा कि तरह कान के पीछे खोंसते हुए वह धीरे से बुदबुदाया था...आई लव यू... ।
गाड़ी चल दी थी। पर उसकी तेज़ सीटी की आवाज़ के बीच भी उसने साफ़ सुना...आई लव यू, टू।