व्यक्तिगत प्रतिभा और परंपरा का रिश्ता / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 29 जुलाई 2020
कुछ ऐसी बात की जा रही है कि फिल्म उद्योग में स्वार्थी लोग, गहरी गुटबाजी व भाई-भतीजावाद चलता है। क्या औद्योगिक घरानों में गुटबाजी, भाई-भतीजावाद नहीं है? सब लोग परामर्श में जुटे हैं। क्या खेल-कूद जगत में फिरकी चाल नहीं चली जाती? राजनीति क्षेत्र भी संदिग्ध है। मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर के पुत्र-पुत्री भरे पड़े हैं। फिल्म पुरस्कार ऐसे दिए जाते हैं कि ‘अंधा बांटे रेवड़ियां, अपने-अपने को दे।’ क्या नोबेल पुरस्कार के लिए नियोजित प्रचार नहीं किया जाता?
क्या वर्तमान के सफलतम फिल्मकार राजकुमार हीरानी के पिता-दादा फिल्मकार रहे हैं? आमिर खान अभिनीत ‘दंगल’ के फिल्मकार नितेश तिवारी केवल अपनी प्रतिभा के दम पर सफल हुए हैं। फिल्मकार आर.बाल्की ने हमेशा सार्थक फिल्में बनाई हैं। फिल्म का निर्माण उन्हें उत्तराधिकार में नहीं मिला है। अमिताभ बच्चन के पिता लोकप्रिय कवि थे और उनकी आत्मकथा क्लासिक का दर्जा रखती है। अमिताभ ने अथक परिश्रम किया है।
आनंद.एल.राय, अनीस बज्मी, कबीर खान, इम्तियाज अली सभी गैर फिल्मी परिवारों से हैं। सलमान खान के पिता सलीम पटकथा लेखक हैं, परंतु शाहरुख गैर फिल्मी पृष्ठ भूमि से आए हैं। भूमि पेडनेकर व तापसी पन्नू अपनी प्रतिभा से जमी हुई हैं। नसीरुद्दीन शाह गैर फिल्मी हैं। पंकज कपूर का पृथ्वी राज कपूर से कोई रिश्ता नहीं है। कटरीना कैफ विदेश से आईं और हिंदी बोलना भी नहीं जानती थीं, परंतु आज सपाटे से अभिव्यक्त होती हैं। ऐश्वर्या राय व सुचित्रा सेन फैशन परेड के रैम्प से सीधे स्टूडियो पहुंची हैं। हमारी मौजूदा गणतंत्र व्यवस्था में भी आयात किया हुआ विचार है, आज बाजार मेंं मध्यम वर्ग का खरीदार ही बाजार का आधार स्तम्भ बना हुआ है। मध्यम वर्ग की पहचान भी फ्रांस की क्रांति के बाद ही एक वर्ग के रूप में बनी । इस महान क्रांति के पहले सामंतवाद दूसरा वर्ग माना जाता था और चर्च से जुड़े लोग प्रथम वर्ग माने गए। मनुष्य के स्वभाव में आत्मरक्षा का भाव है और वह बहुत कुछ अपने लिए करता है। अपने निजी हित की रक्षा करना अत्यंत स्वाभिक है। दीवार पर रेंगती हुई छिपकली को हानि पहुंचाने कोई आगे बढ़ता है, तो वह अपनी डिटेचेबल दुम को गिराकर उसका ध्यान अन्यत्र बांट देती है। यह उसकी आत्मरक्षा प्रणाली है। प्रकृति ने सभी जीव-जंतुओं को आत्मरक्षा का भाव जन्मना गुण इस तरह दिया है और एक प्रजाति के नष्ट होते ही प्रकृति का संतुलन गड़बड़ा जाता है।
हर सृजनकर्ता वैसी रचना करता है, जिसे वह खुद देखना चाहता है। उस रचना का अधिकतम की पसंद बन जाना एक अलग ही शास्त्र है। अरसे पहले लेखक बिल बटलर ने ‘द मिथ ऑफ द हीरो’ में इसका विवरण दिया है। प्रसिद्ध पत्रकार राजेंद्र माथुर ने लिखा है कि यह आम आदमी की प्रबल इच्छा है कि कोई व्यक्ति उसके बदले, विचार करने का काम करे, अवाम के सारे काम वह करे, उनके लिए जिए और आवश्यकता पड़ने पर उनके लिए मर भी जाए।
शांताराम एक बढ़ई के सहायक रहे, महबूब खान भूमिहीन किसान के पुत्र थे। पृथ्वी राज कपूर एक स्नातक थे और उस दौर में पढ़े-लिखे आदमी को अफसरी मिल जाती थी, परंतु रंगमंच से प्रेम उन्हें मुंबई ले आया। आज उनकी चौथी पीढ़ी सक्रिय है। फिल्म परिवार से आने के कारण पहला अवसर अपेक्षाकृत आसानी से मिल जाता है, लेकिन अधिकतम की पसंद ही उसे सितारा बनाती है और निर्णायक होती है। यह वर्ग अघोरी की तरह होता है, जो कचरा भी खा सकता है, क्योंकि कूड़ा-कचरा भी ऊपर वाले की रचना है, परंतु यही अघोरी एक मक्खी के बैठने पर बिदक जाता है। सत्ता में बने रहने के लिए मिथ की रचना करनी होती है और महामारी के समय भी अनुष्ठान किया जाता है। अनुष्ठान से कितना संक्रमण बढ़ता है-यह उनकी चिंता नहीं है और तमाशबीन अवाम को भी यह पसंद है, दौर यह चलता रहे, खेल जारी रहे। व्यक्तिगत प्रतिभा अपनी परंपरा से प्रेरणा लेकर परंपरा को बल प्रदान करती है।