व्यवसाय-बुद्धि / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल
पहाड़ियों के बीच एक आदमी रहता था। उसके मकान के बाहर एक मूर्ति थी जिसे किसी पुराने शिल्पकार ने बड़ी खूबसूरती से गढ़ा था। वह नीचे मुँह करके उसके दरवाज़े पर पड़ी रहती थी। वह आदमी उसके बारे में कभी कुछ सोचता न था।
उसके घर के निकट से एक दिन एक नागरिक गुजरा। उसने मूर्ति को देखा और उस आदमी से उसे बेचने के बारे में पूछा। नागरिक की बात सुनकर वह हँसा और बोला, "कमाल है, इस भद्दे और गंदे पत्थर को भी कोई खरीद सकता है?"
नागरिक ने कहा, "मैं चाँदी का यह सिक्का इसके बदले में आपको दे सकता हूँ।"
आदमी उसकी बात सुनकर आश्चर्य से दमक उठा।
हाथी की पीठ पर लादकर मूर्ति को शहर ले जाया गया।
कुछ माह बाद पहाड़ियों में रहने वाले आदमी का शहर जाना हुआ। जब वह गलियों से गुजर रहा था, एक पंडाल के सामने उसने घनी भीड़ देखी। पंडाल के बाहर खड़ा एक आदमी ऊँची आवाज़ में पुकार रहा था - "आइए, दुनियाभर में सबसे खूबसूरत, अचरजभरी मूर्ति का दर्शन कीजिए। एक महान मूर्तिशिल्पी के इस महान कार्य को देखने का टिकट चाँदी के केवल दो सिक्के!"
पहाड़ से आए आदमी ने भी चाँदी के दो सिक्कों में टिकट खरीदा। पंडाल के अन्दर गया। उसने देखा - वहाँ वही मूर्ति खड़ी थी जिसे उसने चाँदी के एक सिक्के में बेच डाला था।