व्यवस्था का राजदार / विष्णु प्रभाकर
Gadya Kosh से
प्रथम श्रेणी के डिब्बे के 'सी' कक्ष के द्वार खोलकर युवती ने देखा कि एक बर्थ पर पुलिस-कांस्टेबल लेटा हुआ है, दूसरी पर एक बच्ची के साथ एक वयोवृद्ध भद्र पुरुष अधलेटे-से कुछ पढ़ रहे हैं। उसने उन भद्र पुरुष के पास जाकर कहा-- "कृपया जरा ठीक से बैठिए। इस बर्थ पर तीन व्यक्ति बैठ सकते हैं।"
भद्र पुरुष ने पुस्तक से दृष्टि उठाकर युवती की ओर देखा और पूछा-- "और उस बर्थ पर कितने बैठ सकते हैं?"
सहज भाव से युवती बोली-- "व्यवस्था का कोई राजदार नहीं होता।"