व्यवस्था की सहूलियत, बौनों की जम्हूरियत / जयप्रकाश चौकसे

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व्यवस्था की सहूलियत, बौनों की जम्हूरियत
प्रकाशन तिथि : 06 मार्च 2020


राजकुमार हिरानी की आमिर खान अभिनीत फिल्म ‘पीके’ में नायक चलते समय अपने हाथ बदन से सटाकर चलता है। आमतौर पर चलते समय हमारे पैरों के साथ-साथ हाथ चलायमान रहते हैं। नदी में तैरते समय भी हाथ और पांव दोनों चलते हैं। तैरने के लंबे अनुभव से मनुष्य बिना हाथ-पैर हिलाए भी पानी की सतह पर कुछ समय तक स्थिर रह सकता है। जब अनिच्छुक अशोक कुमार को अभिनय करना पड़ा तब उनके सामने समस्या यह थी कि संवाद बोलते समय या खामोश चलते हुए, अपने हाथ कैसे रखें। उन्होंने हाथ कोट की जेब में रखने की पतली गली खोज निकाली। जिम जाने वाला व्यक्ति चलते समय अपने हाथ अपने धड़ से दूर रखता है। आप चाल से ही जान जाते हैं कि यह व्यक्ति जिम में कसरत करता है।

गांव में नदी से जल के मटके सिर पर रखकर चलने वाली स्त्री इतना संतुलन बनाए रखती है कि एक बूंद भी मटके से नहीं गिरती। महिलाएं गेहूं पीसते हुए गुनगुनाती हैं। अगर उन्हें मुंह बंद रखने को कहा जाए तो वह गेहूं भी नहीं पीस पाएंगी। सरौते से सुपारी काटते समय भी मुंह से आवाज निकलती है। मानो खामोश रहते हुए सुपारी नहीं काटी जा सकती। ‘शोले’ की बसंती बिना बोले तांगा नहीं चला सकती। देव आनंद बहुत तेज गति से चलते थे और उनका साथ देने वालों को दौड़ना पड़ता था। ‘काला बाजार’ के गीत ‘खोया खोया चांद, खुला आसमान’ में भ्रम होता है कि देव आनंद चांद को पकड़ लेंगे। जॉनी वॉकर ने कुछ फिल्मों में लंगड़े व्यक्ति का पात्र अभिनीत किया है और उनका बांकपन अवाम को बहुत पसंद आता है। ऋषिकेश मुखर्जी को प्राय: बाएं घुटने में दर्द होता था, परंतु कभी-कभी वे दाएं घुटने को सहलाने लगते थे। दर्द के समय शरीर के अंग पर मनुष्य की आज्ञा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

ज्ञातव्य है कि बलराज साहनी ने इंदौरी बदरुद्दीन को मुंबई में बस कंडक्टर का काम करते देखा। वे अपना काम करते हुए यात्रियों को हंसाया करते थे। बलराज साहनी की सिफारिश पर ही गुरु दत्त ने बदरुद्दीन को जॉनी वॉकर नाम दिया। वे इतने सफल हुए कि बतौर नायक भी उन्होंने अभिनय किया। ‘छूमंतर’ नामक फिल्म में वे आदतन इकतरफा इश्क करते हैं और मेहबूबा के मोहल्ले से पिटकर वापस आते हैं। उन्हें हमेशा इतना पीटा जाता है कि खटिया पर डालकर उन्हें घर लाया जाता है। संवाद इस आशय का है कि चलो खाट तो कमाई इस निठल्ले ने।

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का कथन है कि मनुष्य का सीधा खड़ा होना भी उसका स्वतंत्रता के प्रति आग्रह माना जा सकता है। व्यवस्था की जिद है कि मनुष्य झुककर चले। आज्ञा न मानने पर डंडे चलाए जाते हैं। गोलियां दागी जाती हैं और प्रायोजित दंगे भी कराए जाते हैं। दंगा कराने का विज्ञान बड़ी समझदारी से विकसित किया गया है। ज्ञातव्य है कि दीपा मेहता की फिल्म ‘वॉटर’ की शूटिंग बनारस में नहीं होने दी थी। दीपा मेहता ने केंद्र और प्रदेश सरकार से बाकायदा शूटिंग करने के लिए आज्ञा पत्र प्राप्त किया था। शूटिंग का विरोध करने वाला एक हुड़दंगी गंगा में कूद गया। इस तथाकथित आत्महत्या प्रकरण के बाद प्रदेश सरकार ने दीपा मेहता को यूनिट सहित बनारस छोड़ने की आज्ञा दे दी। बहरहाल दीपा मेहता ने फिल्म की शूटिंग श्रीलंका में की। शूटिंग पर श्रीलंका में धन खर्च हुआ। कुछ समय बाद दीपा मेहता की बेटी ने उसी गंगा में आत्महत्या करने वाले हुड़दंगी को दिल्ली में देखा। उस समय वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मांगने वाले एक जुलूस में मोटरगाड़ी के सामने लेट गया था। वह आत्महत्या का एक और स्वांग रचने जा रहा था। बाद में उसने दीपा मेहता की पुत्री को बताया कि हुड़दंग करना उसका पेशा है और उसे इस कार्य के लिए धन दिया जाता है। इस घटना का विवरण दीपा मेहता की पुत्री देवयानी साल्ज़मैन ने अपनी किताब ‘शूटिंग वाटर’ में दिया है। वर्तमान समय में मनुष्य मृत शताब्दियों का बोझ लेकर चल रहा है और यही प्रक्रिया उसे बौना भी बना रही है। गुजश्ता सदियों को गलत ढंग से प्रस्तुत किया गया है, उन्हें मारा गया है, मुर्दा बनाया गया है ताकि अवाम को संकीर्णता की खाई में फेंक दिया जाए। गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर का कथन है कि नागरिकता में मनुष्य स्वभाव का अनापेक्षित कार्यकलाप शामिल है। जिसे किसी भी रजिस्टर में कैसे दर्ज किया जा सकता है।