व्यावहारिक योग / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ / कविता भट्ट
आधुनिक जीवन में भागदौड़ और विकृत जीवन -शैली के कारण एकाग्रता और मानसिक बिखराब बढ़ा है। इसका एकमात्र कारण है -तन और मन का सन्तुलन, आहार और व्यवहार में सामंजस्य न होना। ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:।’ पातंजलयोगदर्शन का यह सूत्र सभी वृत्तियों के निरोध (रोकने) की बात न कहकर उन्हीं वृत्तियों को रोकने की वात करता है, जो बहिर्मुखी हैं। उन्हें अन्तर्मुखी करना और सकारात्मक मानस चिन्तन से जोड़ना ही योग है। जब ऐसा होगा, तो चिन्तन और व्यवहार की एकरूपता बढ़ेगी, जीवन में सामंजस्य होगा। गीता में निर्देशित योग की परिभाषा-'योग:कर्मसु कौशलम्' उसी का व्यावहारिक रूप है। योग हमारे कर्म-कौशल को निखारने वाला, सन्तुलित करने वाला बने। जब ऐसा होगा, हमारा जीवन तभी तनाव रहित होगा, तभी एकाग्रता बढ़ेगी, आचार-व्यवहार में समता होगी। इसी को को गीता में 'समत्वं योग उच्यते' कहा गया है। अपने कार्य-क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के एकाग्रता और दृढ़ निश्चय की आवश्यकता हैं। यह स्थिति योग द्वारा प्राप्त की जा सकती है। डॉ. कविता भट्ट ने योग के शास्त्रीय पक्ष का दिग्दर्शन कराते हुए व्यावहारिक योग पर जो पुस्तक का प्रणयन किया है, वह सामान्य जन के अलावा आज की युवा पीढ़ी और विद्यार्थियों के लिए अपरिहार्य है। इसके अनुपालन से जीवन-सन्तुलन बढ़ेगा और कार्य-क्षमता में वृद्धि' होगी। मानव में अन्तर्निहित विशाल ऊर्जा को कार्यरूप में परिणत करना सच्चा योग है। इस दृष्टि से डॉ .कविता भट्ट का यह कार्य बहुत उल्लेखनीय है।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ पूर्व प्राचार्य, केन्द्रीय विद्यालय