शंका / ममता व्यास
वे दोनों न जाने कब से आसमान में रह रहे थे। वे ख़ुद भी इस बात से अनजान थे कि उन्हें साथ रहते हुए कितना समय बीता। बस वह साथ थे इस बात की ख़बर थी उन्हें। वह एक सफेद बादल का टुकड़ा था, जो हमेशा आसमान में यहाँ से वहाँ भटकता रहता था। वह उसे प्यार से आवारा बादल कहती। बदले में वह चिढ़कर उसे बेचैन बिजली कहता।
उनका घर आसमान के ही किसी हिस्से में कहीं था, लेकिन वे कभी अपने घर नहीं गए। उन्हें एक-दूजे का साथ पसंद था। कभी बिजली बादल के भीतर छिप जाती तो कभी बादल उसकी गोद में सिर रखकर सो जाता। समय यूं ही बीत रहा था। दोनों संग-संग रहते तो कभी बिछड़ते तो फिर संग हो जाते।
सारा दिन भटक के बादल जब शाम को बिजली के पास आ बैठता तो वह पूछती, "कितनी भटकन है न तुम्हारे जीवन में, एक जगह टिक नहीं सकते न?"
"मैं बादल हूँ एक जगह ठहर नहीं सकता और सुनो मुझे बंधने का शौक नहीं, तुम कोशिश भी मत करना कभी बाँधने की।" बादल उड़ते हुए बोला।
"बंधना तो कोई भी नहीं चाहता, लेकिन कहीं एक जगह ठहर जाना सुखकर लगता है। ठहरने से गहराई का अहसास होता है। हम जितना फैलते हैं न, उतने हल्के-उथले होते जाते हैं।" बिजली तनिक चमकी।
"तुम कभी उडऩे का, फैलने का हुनर नहीं जान सकती, क्योंकि ये तुम्हारे वश की बात नहीं, तुम सिर्फ़ चमक सकती हो, गरज सकती हो बस...और तुम तो सारा दिन यहाँ से वहाँ बेचैनी से घूमती रहती हो, उसका क्या?"
"मैं सारे आसमान में चक्कर लगा लूं, लेकिन मुझे चैन बस तुम्हारे पास ही मिलता है। तुमसे सांसें मिलती हैं, जीवन मिलता है और अपने होने का पता मिलता है और खोने की जगह भी। मैं तुम पर आश्रित हूँ, ओ मेरे सफेद बादल!"
"ये तुम्हारा पाखंड है, स्वांग है, जो मुझ पर आश्रित होने का ढोंग करती हो। सारा संसार तुम्हारी चमक से, गरज से ख़ौफ़ खाता है। तुम जिस पर टूट पड़ो, गिर जाओ उसका विनाश निश्चित है।" बादल ने उपहास किया।
"तुम इतनी मजबूत, ऊर्जावान और शक्ति से भरपूर बिजली हो, फिर मुझ कोमल से बादल की टेक का सहारा क्यों लेना चाहती हो।" बादल बेपरवाही से तुनका।
"हाँ, मंै जानती हूँ मुझमें अपार शक्ति, ऊर्जा और चमक है। संसार मुझसे ख़ौफ़ खाता है। मैं पलभर में किसी का भी जीवन तबाह कर सकती हूँ। मुझे कोई छू भी नहीं सकता, लेकिन मेरे बादल, ये बिजली तुममें ही पनाह पाती है। तुम्हारे भीतर मुझे छिपना अच्छा लगता है। तुम्हारे सिवा कौन है मुझे इस तरह ख़ुद में भर सकता है? तुममें लापता होना मुझे भाता है। सुनो मेरी बात... हम संसार के लिए कितने भी मज़बूत हों, शक्तिवान, ऊर्जावान हों, लेकिन कहीं तो किसी के लिए हम भी कमजोर होते हैं न! रेगिस्तान के कलेजे में भी कहीं न कहीं नमी होती है न बादल। वज्र से दिखने वाले मन का कोई कोना कोमल रहता ही है, कितना समझाऊँ तुम्हें, हार गयी, थक गयी समझा-समझाकर अब चली मैं।" बिजली अपनी बात कहकर चल दी।
"कहाँ जा रही हो?"
"तुम्हारे भीतर और कहां" कहकर बिजली ज़ोर से हंसी। उसकी हंसी से आसमान कांप गया।
वो सफेद बादल अब भी हैरान था। उसने मन ही मन सोचा आज तो फ़ैसला कर के ही रहूंगा।
उसने बिजली का आंचल पकड़ लिया और उसे रोका "रुको अभी।"
"अब क्या है, जाने दो मुझे।" बिजली ने आंचल छुड़ाया।
"देखो, तुम मुझे इस तरह नहीं बहला सकती। मैंने बहुत वक़्त बर्बाद किया है इस पशोपेश में। मुझे यूं तुम्हारा मुझ पर आश्रित होना कभी समझ नहीं आया। मुझे हमेशा लगता है तुम कोई खेल खेलती हो मेरे साथ। तुम्हारी तड़प और ये दीवानगी पाखंड लगती है मुझे। आज मुझे जानना ही है इस खेल में मेरी क्या भूमिका है?"
"खेल, भूमिका?" बिजली रुआंसी हो उठी। "कोई खेल नहीं प्रिय और न कोई भूमिका। तुम्हें हमेशा हमारा रिश्ता खेल क्यों लगता है? और तुम्हें हमेशा अपनी भूमिका कि इतनी चिंता क्यों रहती है? इतने पवित्र और खूबसूरत रिश्ते को खेल कहते लज्जा नहीं आई तुम्हें? कह तो दिया न मैंने कि तुम संग अच्छा लगता है मुझे और मैंने तो तुमसे कभी पूछा ही नहीं कि तुम क्या सोचते हो।"
"अच्छा सुनो...मुझे तुम्हारे प्रेम पर एक छोटी-सी शंका होती है, क्या तुम सच में मेरे बिन नहीं रह सकती।" बादल ने अविश्वास से उसे घूरा।
"आजमा रहे हो, परीक्षा लेना चाहते हो।" बिजली ने आंखों ही आंखों में बादल से पूछा।
"नहीं...मेरा मतलब ये था कि हमेशा कहती हो तुम बिन रह नहीं सकती, तुम बिन चल नहीं सकती, तुम बिन जी नहीं सकती तो इन बातों में कितनी सचाई है? क्या सच में छोड़ दूं तो गिर जाओगी तुम?"
बिजली चुप थी, उसने सिर्फ़ ' हांÓ में सिर हिलाया।
बादल ने उस ' हांÓ की सचाई जाननी चाही और बेपरवाही से बोला "लो...मैं अभी इसी पल तुम्हारा हाथ छोड़ता हूँ।" कहकर उसने बिजली का हाथ एक झटके में छोड़ दिया।
बिजली बुरी तरह कांप गयी और लहराती हुई आसमान से धरती पर गिरने लगी। उसकी आंखों से अनगिनत बूंदें झरने लगीं और पलभर में वह बादल की नजरों से सचमुच में ओझल हो गयी।
बादल भौंचक-सा जाती हुई बिजली को देख रहा था, जो धरती से होती हुई सीधे पाताल में समा चुकी थी।
बादल का वह हाथ जो पलभर पहले बिजली ने थाम रखा था, अब वह खाली था।