शक्तिपुंज सितारा सचिव यशोगाथा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 04 अगस्त 2020
लोकप्रिय सितारा एकल व्यक्ति उद्योग की तरह हो गया है। कुछ कलाकारों को अभिनय के साथ विज्ञापन फिल्मों में काम करने तथा किसी दुकान का उद्घाटन, शादी-ब्याह में शिरकत करने के लिए भी धन मिलता है। गनीमत है कि अभी तक शव-यात्रा में शामिल होने के लिए धन मांगा नहीं गया। कुछ क्षेत्रों में धनवान की मृत्यु पर व्यावसायिक शोक करने वालों को बुलाया जाता था। ‘रुदाली’ नामक फिल्म भी बनी है। किसी दौर में कस्बों में पत्र लिखने वाला पैसा लेकर पत्र लिखता था और डाक द्वारा आए हुए पत्रों को मुफ्त में पढ़ भी देता था, परंतु यह मुफ्त सेवा, वह अपने नियमित ग्राहकों को ही प्रदान करता था। इस विषय पर फिल्म ‘सज्जनपुर’ बनी है।
आजकल सितारे अनेक सचिवों को नियुक्त करते हैं। वित्त सचिव सितारे की पूंजी का निवेश करता है और आयकर से जुड़े कार्य देखता है। कुछ विशेषज्ञ आयकर बचाने की पतली गलियां खोज निकालते हैं। हर नियम में छेद खोज लेना नितांत भारतीय मौलिक सोच है। राजकुमार राव का काम उनकी मित्र पत्रलेखा देखती हैं। उनके संबंध घनिष्ठ हैं। फिल्मकार पत्रलेखा से निवेदन करते हैं कि वह उनकी पटकथा पढ़ लें। पत्रलेखा फिल्मकारों से कहती हैं कि उनका ब्रेक अप हो गया है। यह सब उन्हें टालने के लिए किया जाता है। सितारे का यह कार्यकलाप कुछ हद तक मंत्रियों के काम की तरह है। सितारे का वित्त सचिव होता है, प्रचार सचिव होता है, प्रशंसकों के पत्र पढ़ने और जवाब देने के लिए भी सचिव रखा जाता है, जो प्राय: पत्र पढ़ता नहीं और प्रशंसक को सितारे का हस्ताक्षर किया फोटोग्राफ भेज देता है। यह प्रिंटेड फोटोग्राफ्स हैं। कॉरपोरेट कंपनी सचिव बनने के लिए विशेष अध्ययन करना होता है। इसके प्रशिक्षण केंद्र होते हैं। कंपनी का सचिव पद जिम्मेदारी का काम है और इस विभाग में आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं और उनमें हेराफेरी भी होती है। कोविड मरीजों की सही संख्या जानना कठिन हो गया है। इलाज से स्वस्थ हो जाने वालों की संख्या जितनी प्रचारित है, उतनी ही गोपनीय है। मरीजों की असली संख्या। कुछ लोगों को कोविड निगेटिव घोषित किया गया, परंतु बाद में वे पॉजिटिव निकले। विदेश के अटालों से खरीदे हुए उपकरण हमारी टूटी व्यवस्था के तथ्य को ही रेखांकित करते हैं। व्यवस्था शिकायत पत्रों का एक ही जवाब देती है कि संबंधित विभाग को हिदायत दी जा चुकी है। पुन: निवेदन है की सलाह दी जाती है। सेहत संबंधित बीमा कराने का प्रचार किया जा रहा है, परंतु कितने प्रतिशत मुआवजे सचमुच मिले हैं, यह रहस्य ही है। कभी-कभी सितारा सचिव शक्ति का केंद्र बन जाता है। माधुरी के सचिव राकेश नाथ के इर्द-गिर्द भीड़ लगी होती थी। वर्तमान में बिमल पारेख की कंपनी सितारों के पूंजी निवेश मामलों में अत्यंत प्रसिद्ध है। एक दौर में रेशमा इस क्षेत्र में प्रसिद्ध थीं। सितारा सचिव इतने उपयोगी सिद्ध हुए कि फिल्मकार उन्हें साधने के जतन करने आपस में भी लड़े। अमित खन्ना, देव आनंद का काम देखते थे। उन्होंने बर्नाड शॉ के नाटक से प्रेरित फिल्म भी बनाई, जिसके लोकप्रिय गीत भी उन्होंने रचे थे। ‘चारु चंद्र की चंचल किरणें’...लोकप्रिय हुआ था।
कालांतर में टीना मुनीम अंबानी की सिफारिश पर उन्होंने रिलायंस फिल्म कंपनी का संचालन भी किया। ऋषि कपूर का काम उनके बाल सखा घनश्याम देखते थे। घनश्याम ने अभिनय किया, तो शांति उनका काम देखते रहे। सचिव इतने महत्वपूर्ण हो गए कि वे सितारे के मेहनताने का 20% लेने लगे। यह बंधुआ प्रथा का नया स्वरूप बन गया। डेविड धवन ने अपने पुत्र वरुण धवन को इससे मुक्त कराया। सचिव पद कुछ हद तक पूजा स्थान के पुजारी की तरह बना दिया गया। पूरी जीवन प्रणाली का केंद्र मॉयथोलॉजी बन गया है। पुजारी प्रसन्न होगा, तो देवता भी आशीर्वाद देंगे, गोयाकि आशीर्वाद पर कमीशन देना होगा। याद आती है कवि सरोजकुमार की पंक्तियां-
‘कितने हवन कुंडों में और कितने साधुओं का गुणा करें कि नैतिकता की एक किरण पा सकें और सवा सौ करोड़ के इस महान देश के पांच सौ ईमानदार संसद में जा सकें।’