शक / दीपक मशाल

Gadya Kosh से
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यूनिवर्सिटी ने जब से कई नए कोर्स शुरू किये हैं, तब से नए छात्रों के रहने की उचित व्यवस्था(हॉस्टल) ना होने से यूनिवर्सिटी के पास वाली कालोनी के लोगों को एक नया व्यापार घर बैठे मिल गया। उस नयी बसी कालोनी के लगभग हर घर के कुछ कमरे इस बात को ध्यान में रखकर बनाये जाने लगे कि कम से कम १-२ कमरे किराये पर देना ही देना है और साथ ही पुराने घरों में भी लोगों ने अपनी आवश्यकताओं में से एक-दो कमरों की कटौती कर के उन्हें किराए पर उठा दिया। ये सब कुछ लोगों को फ़ायदा जरूर देता था लेकिन झा साब इस सब से बड़े परेशान थे, उनका खुद का बेटा तो दिल्ली से इंजीनिअरिंग कर रहा था लेकिन फिर भी उन्होंने शोर-शराबे से बचने के लिए कोई कमरा किराए पर नहीं उठाया। हालाँकि काफी बड़ा घर था उनका और वो खुद भी रिटायर होकर अपनी पत्नी के साथ शांति से वहाँ पर रह रहे थे लेकिन कुछ दिनों से उन्हें इन लड़कों से परेशानी होने लगी थी।

असल में यूनिवर्सिटी के आवारा लड़के देर रात तक घर के बाहर गली में चहलकदमी करते रहते और शोर मचाते रहते, लेकिन आज तो हद ही हो गई रात में साढ़े बारह तक जब शोर कम ना हुआ तो गुस्से में उन्होंने दरवाज़ा खोला और बाहर आ गए।

“ऐ लड़के, इधर आओ” गुस्से में झा साब ने उनमे से एक लड़के को बुलाया।

लेकिन सब उनपर हंसने लगे और कोई भी पास नहीं आया, ये देख झा साब का गुस्सा और बढ़ गया। वहीँ से चिल्ला कर बोले- “तुम लोग चुपचाप पढ़ाई नहीं कर सकते या फिर कोई काम नहीं है तो सो क्यों नहीं जाते? ढीठ कहीं के”

एक लड़का हाथ में शराब की बोतल लिए उनके पास लडखडाता हुआ आया और बोला- “ ऐ अंकल क्यों टेंशन लेते हैं, अभी चले जायेंगे ना थोड़ी देर में। अरे यही तो हमारे खेलने-खाने के दिन हैं।”

शराब की बदबू से झा साब और भी भड़क गए- “ बिलकुल शर्म नहीं आती तुम्हें इस तरह शराब पीकर आवारागर्दी कर रहे हो। अरे मेरा भी एक बेटा है तुम्हारी उम्र का लेकिन मज्जाल कि कभी सिगरेट-शराब को हाथ भी लगाया हो उसने, क्यों अपने माँ-बाप का नाम ख़राब रहे हो जाहिलों।”

उनका बोलना अभी रुका भी नहीं था कि एक दूसरा शराबी लड़का उनींदा सा चलता हुआ उनके पास आते हुए बोला- “अरे अंकल, आप निष्फिकर रहिये आपके जैसा ही कुछ हमारे माँ-बाप भी हमारे बारे में समझते हैं इसलिए आप जा के सो जाइये। खामख्वाह में हमारा मज़ा मती ख़राब करिए।”

और वो सब एक दूसरे के हाथ पे ताली देते हुए ठहाका मार के हंस दिए।

अब झा साब को कोई जवाब ना सूझा और उन्हें अन्दर जाना ही ठीक लगा। उनका मकसद तो पूरा ना हुआ लेकिन उस लड़के की बात ने एक शक जरूर पैदा कर दिया।