शताब्दी का ट्वीन-टावर / दीर्घ नारायण

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गोरखपाड़ा चौराहे पर चाय पीते लोग कह रहे हैं, कल शाम को वित्त मंत्री का बजटीय भाषण सचमुच लाजबाब था। कल रात से ही न्यूज चैनलों में बजट-वचन की तुरही सी बज रही है, आज के किसी भी अखबारो में गरीबी का नामो निशान नहीं है। हमारे चौराहे की यह एकमात्र चाय की दुकान है, पर है बड़ी लप-लपाऊ। शायद यही वजह है, बीते सालों में चालू हुए दो-एक दुकानें नारियल फोड़ने तक ही सीमित रही। सामने बडे़- बड़े अपार्टमेंट के साहेबान लोग तो सिर्फ सुबह ही पधारते हैं चाय की दुकान में, वो भी घड़ी के हिसाब से, सात से कोई साढ़े आठ-नौ बजे तक। नौ बजा नहीं कि, हाफ पैंट-कुर्ता पायजामा-बंडीधारी नहर की पुलिया पार करते दिखते हैं। पर चौराहे के पीछे वाली बड़ी बस्ती यानी गोरखपाड़ा के लोग सुबह से लेकर रात नौ-दस बजे बन्द होने तक दुकान में डेरा जमाये रहते हैं, सुबह-सुबह मजमा के रूप में तो भरी दोपहरिया को झपकी-मण्डली के रूप में। गोरखपाड़ा में प्रायः गरीब और निम्न मघ्यमवर्गीय साधारण लोग ही रहते है, पर उनकी तारीफ करनी होगी कि उन्हें बड़े लोगों की इज्जत करना आता है; गोया सुबह को जब अपार्टमेन्ट वाले चाय की चुस्की के साथ अखबारों में नजर दौड़ा रहे होते हैं या खबरों पर आपस में तर्क-वितर्क करते हैं तो पाड़ा के लोग मौन स्थिति में ही होते हैं। ”भारतीय अर्थव्यवस्था की दिशा बिलकुल विश्वमुखी है, इस बजट में तो और भी बोल्ड स्टेप लिये गये हैं; अर्थशास्त्रियों की भविष्यवाणी सही है कि अगले पाँच बर्षो में हम विश्व की पाँच बड़ी अर्थव्यवस्था में होगे“ बी-2 वाले पांडेजी ने चाय समाप्त करते हुए समाचार-सार प्रस्तुत

किया। वे एन एच-2 के पूर्वी डिवीजन में अधीक्षण अभियंता हैं । मुझे लगा, आवाज उसके मुँह से नहीं चश्में से होकर निकली है। ”हाँ, सड़क-बिजली-उधोग-धन्धे-रेलवे मजबूतीकरन-शिक्षा-चिकित्सा- नगर विकास के लिए भरपूर राशि रखी गई है“- मैं बजट के बॉक्स वाली खबर ‘रूपया कहाँ जाएगा’ पढ़ चुका था। “बजट एकतरफा नहीं है भई, परसेन्टेजवाइज तो ग्रामीण क्षेत्रों में ही अधिक राशि आवंटित है” -रविकुमार चोपड़ा शायद ‘शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की झोली में क्या-क्या “ वाला बॉक्स देख चुके थे। “वैसे वित्त मंत्री ने तो कल बजट पर चर्चा का समापन करते हुए आशा व्यक्त किया है उनकी सरकार के कार्यकाल में गरीबी की रेखा काफी नीचे ला -2-दी जाएगी। पूरे देश में फैले-छितराये गरीबों तक जाने की जरूरत नहीं है, जिस दिन नगरपाड़ा की गरीबी कम होने लगेगी समझो पार्लियामेन्ट-मंत्री-प्रधानमंत्री-बजट सब सही है, नहीं तो सबके-सब झूठे कौवे”-सही बात भी सलीके से बोलना नहीं आता है मुझे। “अरे यार! तुम भी कमाल हो, सुबह-सुबह चाय अन्दर जाते ही तुम्हारी फिलोसोफी उल्टी करने लगती है क्या“-रेलवे ठेकेदार रमन सिंह है तो मेरे पड़ोसी, पर मेरा गरीबोन्मुखी धारणा उसे चिढ़ाने लगती है। “ देखो प्रभु, आज के डेट में इन्डियन इकोनॉमी विशाल स्वरूप ग्रहण कर चुकी है, यह अपनी दिशा में चल नहीं रही है, बल्कि दौड़ रही है। हाई स्पीड एम्बुलेन्स में हार्ड ब्रेक नहीं लगाये जा सकते, समझे महोदय। भविष्य में गरीबी घटेगी या बढ़ेगी इसका सही-सही पूर्वानुमान हम तुम तोक्या सरकार भी नहीं कर सकती, बल्कि खुद दौड़ लगाती अर्थव्यवस्था और उसका समय ही सबकुछ तय करेगा“-डॉ. सलीम शेख अखबार रखते हुए निचोड़ निकाल रहे थे। “लेकिन इस सच्चाई से इन्कार नहीं कर

सकते कि देश के एक-एक आदमी के हाथ टिकाने से ही भारतीय अर्थव्यवस्था का विशाल वट वृक्ष जमीन पर टिका है और लहलहा रहा हैं; जिस दिन सौ करोड़ लोगों ने अपने हाथ खींच लिये या ढ़ीले छोड़ दिये तो जानते हो बट-वृक्ष की क्या हालत होगी, हवा में लटक जाएगी, फिर जल्दी ही धरती पर औंधे मुँह गिरेगी, धीरे-धीरे या धड़ाम से हम कल्पना नहीं कर सकते.....“-बोलने के क्रम में मैंने पाया कालोनियों के साथीगण पुलिया की ओर चल दिये हैं, सो मुझे अखबार बन्द कर चाय सुड़कना पड़ा। “अरे बजट-फजट से कुछ होना-जाना नहीं है, कहने को हमारे लिए बनाते हैं, खाते-खिलाते खुद ही है; बजट-स्कीम-योजना चल तो रही हैं साठ-सत्तर साल से, गरीबी मिटती इससे तो मिट नहीं गयी होती अबतक”-रामरतन दूध वाले ने अपना ज्ञान बाँट दिया, जांघ उठाकर छोड़ते हुए। “सभी पुराने भाई लोगों को पता है, आज से तीस साल पहले गोरखपाड़ा सौ-डेढ़ सौ गरीब परिवारों की बस्ती हुआ करती थी, आज तकरीबन पाँच-छः सौ परिवारो का ठौर-ठिकाना है, पर गोरखपाड़ा का थोबड़ा जस की तस है बल्कि पहले से भी बदतर। बताओ गरीबी कहाँ घट गयी है “-राजन ठेलावाला खैनी थूकते हुए बोला तो लगा जैसे अपने चालीस साल के जख्म कुरेद रहा हो। “वो सामने वाले साहब सही फरमा रहे हैं, पूरी अर्थव्यवस्था देश के एक-एक आदमी के हाथों से टिका है, पर हमें मिलना कुछ नहीं है, समझो देश के हम सौ -3-

करोड़ गरीब और साधारण लोगों की हैसियत सिर्फ यही रह गयी है कि अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा बाजार भर है“-जय कुमार पान वाला मेरी ओर मुँह तिरछा करते हुए बोला, तो मुझे तसल्ली हुई, कि मेरी सोच सर्वव्याप्त है। “बजट पर बहसबाजी बहुत हो गयी; अब यह बताओ कल मेरे सेठजी भी अपनी दुकान पर टीभी में ’बजट पर चर्चा’ का सीधा प्रसारण देख रहे थे, मैंने भी सुना कि वित्तमंत्री जी कह रहे थे कि इस साल से ऐसा बजट पेश हुआ है जिससे गरीबों के घरों की माली हालत दुरूस्त हो जाऐगी और उनके बच्चों के नाक-नक्श बदल जायेगे पाँच सालों में; मैं समझ नहीं पाया, आखिर गरीबों के बच्चों के नाक-मुँह कैसे बदल देगी सरकार“-सेठ छन्नुमल ज्वेलर्स में काम करने वाला राजेश पहलवान मजाकिया लहजे में बोला तो चाय की दुकान ठहाकों से गुंज उठा। ठहाकों की गुंज शांत हाते ही सुबह का व्यस्ततम जमावड़ा हटने लगा। निगम इन्टर कॉलेज से जीव विज्ञान से बारहवीं कर रहे मृगेन्द्र जाते-जाते रामचरण सब्जीवाले से मजाक करता गया- “नाक-नक्शा बदलने की शुरूआत तुम्हारे घर से ही होगी, सरकार सबसे पहले तुम्हारी कमला की प्लास्टिक सर्जरी करके उसके मुँह का कोणा- कोन्टी ठीक करेगी“। अपनी दुकान की और बढ़ते हुए रामचरण ने चिढ़कर सिर्फ इतना कहा, देखूँगा तुम्हारी सरकार क्या करती है।

चौराहे की चर्चा रात तक मेरा पीछा करती रही। दिन में और रात में खाने तक विविध व्यस्तताओ में चौराहे की बातें लुका-छिपी करती रही। परन्तु बिस्तर पर जाते ही सुबह का चौराहा मेरे कमरे में सजीव हो उठा, पूरे तर्क-वितर्क आलोचना-उलाहना के साथ। कुछ बातें दिमाग की गहराई में बुलेट की गोली जैसी धंसने लगी; मसलन, जीवन की मूलभूत

आवश्यकताओं-सुविधाओं की पूर्ति हेतु दिन-रात पिसता सौ करोड़ की आबादी....पहचान सिर्फ एक बड़े उपभोक्ता वर्ग के रूप में.... जबकि अर्थव्यवस्था में योगदान सबसे ज्यादा....शिखर की ओर बढ़ती अर्थव्यवस्था की गाड़ी को अपने पूरे दम-खम से लगातार खींचते रहने वाला वर्ग....पर गाड़ी ऐसी कि किसी और के लिए समृद्धि ढोये जा रही है.... धीरे-धीरे उन सौ करोड़ से दूर और दूर जाती हुई। फिर बरबस रामचरण और उसकी बेटी कमला साक्षात आ बैठी आँखो के पर्दे में; हाँ कमला, कुपोषण का शिकार सोलह बर्षीय कमला, पिचके गाल वाली कमला, धूप में सब्जी ढ़ोती काली कमला...... समृद्ध अर्थव्यवस्था...... चुनिन्दे दस-बीस प्रतिशत लोगों की शदाब्दी....... कमला के काले रंग- चिपके गाल...... नाक-नक्श बदलने की स्कीम... ऐसी ही बातों में गोते लगाते हुए नींद की अतल गहराई में उतरता गया मैं......... -4- ......दोनों गगनचुम्बी टावर सामने खड़े दिख रहे हैं, एक नहर के उत्तरी किनारे तो दूसरा दूसरा ठीक उसके सामने नहर के दक्षिणी किनारे। नजदीक जाने पर वह आंखो से ओझल हो जाती है, पर दूर से तो स्पष्ट दिखती है, चकाचक। एक को आर्थिक समृद्धि के प्रतीक के तौर पर खड़ा किया गया है, दूसरा विज्ञान के क्षेत्र में एक चमत्कारिक आविष्कार के विजय-स्तम्भ के रूप में। ये दोनों टाबर इस शताब्दी की दो सबसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर जानी जाने लगी है। एक ने अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में अपना कमाल दिखाया है, दूसरे ने विज्ञान के क्षेत्र में जादू ही कर डाला है। पूरे देश में इन दोनों ही उपलब्धियों का गुणगान किया जा रहा है। स्वभाविक ही देश का सीना गर्व से चौड़ा हुआ है। इन्डिया में हो रहे इन दोनों कमाल ने विश्व-बिरादरी का भी ध्यान खासा आकर्षित कर

रखा है। अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में दिनों-दिन बुलन्दी की और बढ़ते ग्राफ ने तो पहले से ही पूरी दुनिया को अपने मुरीद बना रखा है, अब विज्ञान के क्षेत्र में अभी-अभी हुए इस चमत्कार ने आविष्कार के क्षेत्र में भारत का लोहा मनवा लिया है, एक शताब्दी और एक दशक बाद ही सही। यूँ तो दोनों दो भिन्न क्षेत्रों से जुड़ी महत्तम उपलब्धियाँ है, इस नहर के किनारे खड़े दो टावर तो प्रतीक भर है, फिर भी दो चमत्कारिक उपलब्धियों के प्रतीक होने के कारण बोल-चाल की भाषा में, खासकर सरकारी सम्भाषणों और मीडिया मेंइसे शताब्दी का ट्वीन टावर ही कहा जाने लगा है। भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में दर्ज उपलब्धियों ने तो सन सत्तर- अस्सी के दशक से ही अपना परचम लहराना आरम्भ कर दिया था। अब तो इसने बुलन्दी को छू लिया है, पिछले चालीस-पचास बर्षों में उर्ध्वगामी विकास दर के कारण। अब तो देश के हर कोने में आर्थिक प्रगति के ’टावर’ चमक रहे हैं- चहक रहे हैं, पीली रोशनी में उछल-कूद करते-करते अब दुधिया रोशनी में नहाने लगी है। अर्थव्यवस्था ने भारत के हर कोने में प्रगति-समृद्धि की क्रान्ति ला दी है- दिन-दूनी रात-चैगुनी बढ़ते जाते पूँजी का कमाल! उससे आगे की क्रातिं हुई है शृंखलाबद्ध व एक दूसरे से आबद्ध वृद्धि यानि अर्थव्यवस्था-राज्यव्यवस्था-शिक्षा- समाज अर्थात जीवन के हर क्षेत्र में समृद्ध वर्गो के बीच उत्तरोत्तर प्रगति का संजाल। दूसरा ट्वीन टावर यानि विज्ञान में एक विलक्षण आविष्कार अर्थात एक विराट चमत्कार जिसका पहला लाभान्वित होगा रामचरण ठेला वाले का परिवार। इस नये आविष्कार का पहला सफल प्रयोग हो रहा है रामचरन की बेटी कमला पर। हमारे वैज्ञानिकों के पिछले पच्चीस-

तीस बर्षों के अनवरत अनुसन्धान की बदौलत ही यह अद्भुत आविष्कार का सपना साकार हो पाया है। इस अनुसन्धान के पीछे पिछले चार पाँच पंचवर्षीय योजनाओं में करोड़ों-अरबों खर्च-5-किये गये हैं। जितना अदभुत व चमत्कारिक यह आविष्कार है, उस अनुपात में खर्च की गई राशि नगण्य ही है। विश्व का सम्पूर्ण वैज्ञानिक जगत आज अचम्भित अवाक है, कि इतना बड़ा आइडिया आखिर विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी देशों के वैज्ञानिकों के दिमाग में क्यों नहीं आया। सचमुच अब तो पूरे विश्व को यह मानने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है, कि इन्डिया प्राचीन काल से ही सिर्फ धर्म,कला,संस्कृति ही नहीं अपितु विज्ञान के क्षेत्र में भी विश्व- गुरू रहा है। भारतीय वैज्ञानिकों की इस बेमिशाल खोज ने पूरे विश्व में भारत का सर ऊँचा कर दिया है गर्व से। सचमुच रामचरण, बल्कि उसकी बेटी कमला भाग्यशाली है; उसमे चमत्कारिक परिवर्तन तो अब बस दस-बारह घंटे ही दूर है, जब उसे केन्द्रिय जैविक प्रयोगशाला के कनवर्जन ट्यूब से कल सुबह दस बजे निकाला जाएगा। उस ऐतिहासिक पल के गवाह उन सभी बड़े वैज्ञानिकों के अलावे देश-प्रदेश के सभी बड़े चेहरे भी होंगे। आखिर कल आजादी के सौ साल पूरे होने का ऐतिहासिक पल जो है। यह अनुसन्धान जीनोम के क्षेत्र में एक नयी क्रांति ला देगा, बशर्ते आज कमला पर इसका मानवीय प्रयोग सफल रहा। इस अनुसन्धान का मूल है जीन की संरचना में व्यापक छेड़छाड़ किये बगैर उसके लेटेरल एज को किसी वांछित व्यक्ति के जीन के उसी पार्ट से पप्रत्यर्पित कर देना। उस मुकाम तक पहुँचने के लिए वैज्ञानिकों की टीम को दशको तक डी॰एन॰ए॰ पर अनवरत जटिल प्रयोग करने पड़े हैं। उन थकाऊ प्रयोग के दरमयान वैज्ञानिकों में ऊब व खीझ भी पैदा होती रहती थी; कारण, क्रोमोजोम के किसी खास जोड़े के स्थानापन्न कराते

ही कोशिका के अन्दर स्वतः नयी-नयी जटिलताएँ पैदा होने लगती थी, कभी आर॰एन॰ए॰ की संरचना व कार्य में व्यतिकरण, कभी माइटोकोंड्रिया के ऊर्जा-विसर्जन में निरंतरता का अभाव तो कभी केन्द्रिका का सिकुड़ जाना। कोई दो दशक तक अनुसन्धान में आये उतार-चढ़ाव से हार न मानने की परिणती रही क्रोमोजोम के उस खास जोड़ी की पहचान होना जो मनुष्य के मुँह की बनावट भिन्नता और चेहरे के डिजाइन के लिए जिम्मेदार है। क्रोमोजोम का वह कौन सा जोड़ा है, इसे केन्द्रिय प्रयोगशाला ने अभी तक गुप्त ही रखा है। पर एक डेनिस वैज्ञानिक ने दावा किया है कि भारतीय वैज्ञानिकों ने एक खास जोड़े के बजाय दो या उससे ज्यादा जोड़े के क्रोमोजोम के लड़ी को अनियमित तरीके से स्थानापन्न कराया होगा। हाँलाकि इसे नैतिक दृष्टि से अनुचित नहीं माना है जीव वैज्ञानिकों ने, शायद इसलिए कि इससे लोग अपने बच्चों के मुँह के रूप-रंग-डिजायन-कटिंग को वांछित स्वरूप दे पायेंगे। खासकर गरीब तबके के बच्चो का तकदीर बदल देगा यह अनुसंधान, जहाँ कुपोषण और सुविधाओं की -6-कमी के कारण वे उच्च वर्ग के बच्चों की तुलना में मरियल और फिसड्डी दिखते हैं। आजादी के सौ साल पूरे होने के अवसर पर ’कमला का मुख- मण्डल परिवर्तन’ के रूप में आज देश को बहुत बड़ी सौगात देगी सरकार। दरअसल, पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैतालिस के बाद दशकों तक आर्थिक समृद्धि का विशाल मिशन अनवरत चलते रहने के बावजूद गरीबों और जरूरी सुविधाओ के लिए संघर्षरत लोगों की तादाद घटने के बजाय बढ़ती रही है। आज चैदह अगस्त दो हजार सैतालिस को ऐसे लोगों की आबादी एक सौ पचास करोड़ से ऊपर जा पहुँची है। कुपोषण और संघर्ष से लड़ते-जुझते ऐसे लोगों के बच्चों के चेहरे में एकबारगी

रौनक ला देने की एकमुश्त योजना लागू कर पायेगी सरकार, इस चमत्कारिक अनुसंधान की बदौलत ही तो। आज रामचरण की बेटी कमला के चेहरे में स्वीकार्य परिवर्तन लाते ही कल पन्द्रह अगस्त को सम्पूर्ण देश में यह योजना लागू कर दी जाएगी। देश के विभन्न हिस्सों में, प्राथमिकता के तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में, ऐसे सैकड़ों जीनोम- प्रयोगशाला चरणबद्ध ढ़ंग से साल दो साल के अन्दर खोल दी जायेगी। फिर तो एक ही पंचबर्षीय योजना के दौरान देश के सभी लिजलिजे-पील- पिले बच्चों के चेहरे खूबसूरती से खिल उठेंगे। इस अनुसंधान की महत्ता को देखते हुए विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय के अलावे पूरी योजना पी॰एम॰ओ॰ की सतत पर्यवेक्षण में हैं। बस अब तो कुछ ही घंटे की देर है, कमला नये रूप-रंग के साथ जीनोम-ट्यूब से बाहर आने ही वाली है। अरे! दक्षिणी टावर के पास ये शोरगुल कैसा? ओह, वहाँ तो भीड़ जमा हो रही है। अरे गोरखपाड़ा के लोग वहाँ जमे है, भीड़ने टावर मे हाथ लगा दिया है....लगता है अब भीड़ने टावर को हिलाना शुरू कर दिया है। पर इतना मजबूत और विशाल टावर को गोरखपाड़ा के कमजोर हाथ हिला पायेंगे। आखिर ये लोग इस गगनचुम्बी टावर को हिलाकर क्यों आजमाना चाहते हैं? अरे, अब तो भीड़ ने नारा लगाना शुरू कर दिया है...... नहर के दक्षिणी टावर को नहर के उत्तर में शिफ्ट करो..शिफ्ट करो..शिफ्ट करो..शिफ्ट करो........“अरे उपेन भाई, आपलोग इस टावर को उत्तरी किनारे क्यों शिफ्ट करना चाह रहे है”-भीड़ के बाहरी भाग में खड़े पन्सारी की छोटी दुकान चलानेवाले गोरखपाड़ा के बुजुर्ग उपेन्द्र वर्मा से कौतुहलवश मैंने पूछा। “क्योकि अब हमलोगों को पक्के तौर पर यकीन हो गया है कि जबतक ये विशाल टावर दक्षिणी किनारे है गोरखपाड़ा के खाते में खुशहाली नहीं आ सकती है, इसके उत्तरी किनारे

शिफ्ट होते ही आप देखना हमारे घरों में भी लक्ष्मी आने लगेगी। आप खुद ही देखो, ये विशाल टावर आप वाले किनारे में कितना -7-दैत्याकार रूप में नजर आ रहा है। लेकिन आप देखना इसके हमारे किनारे शिफ्ट होते ही यह विशाल से विशालतम होता जाएगा परन्तु देत्य रूप बदलकर मानवता स्वरूप हो जाएगा“ “लेकिन अभी तो तुमलोगों को उत्तरी टावर के पास इकट्ठे होना चाहिए; अब तो दस-पन्द्रह मिनट में ही रामचरण की बेटी कमला ट्यूब से बाहर आने वाली है, नये-नये नैन-नक्श के साथ कमला और उसके माता-पिता चहक उठेंगे अब। क्या तुम बस्ती वाले अपने रामचरण भाई की खुशी में शरीक नही होना चाहतेहो ?“ “अरे साहेबलोग, गोरखपाड़ा की तरफ दिख रहा वो बड़ा-सा टावर तो सिर्फ छलावा है, छलावा। सरकार द्वारा हमसबों को भ्रम में डालने की योजना का इन्द्रजाल, बस“-बुजुर्ग उपेन की आँखों में निराशा और आक्रोश के दो अलग-अलग रंगो की लपटें एक साथ दीख रही है। अब तो यहाँ से हटकर उत्तरी टावर के पास खड़ा होना चाहिए मुझे, ट्यूब से निकलते ही कमला को वही तो लाया जाएगा, वही पर तो आज कमला और उसके पिता रामचरण का भव्य स्वागत होना है। देश के सभी बड़ी हस्तियाँ बस वहाँ पधरने ही वाली है। मैं देख रहा हूँ ,उत्तरी टावर के पास भी अच्छी-खासी भीड़ है, औरतों और मर्दो की भीड़, अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ; गालों की उभरी हड्डियाँ-छाती की झांकती पसलियाँ-अन्दर धँसे पेट में सुखी अंतड़ियाँ वाले बच्चे। रामचरण तो विशाल टावर से सटे खड़ा है, आसमान की ओर हाथ जोड़े हुए, कि प्रभु ने उनकी सुन ली। अब सभी औरत-मर्दे अपने-अपने बच्चों के साथ पंक्तिबद्ध हो लिए हैं, अपने-अपने

ठठरीनुमा बच्चों को जिनोम-ट्यूब में इन्ट्री देने की कतार में । ये कतार कहाँ तक गई है! अरे बाप रे, बच्चों की कतार तो मीलो लम्बी है, अन्तहीन! लगता है सैतालिस करोड़ बच्चों के माता-पिता अपनी-अपनी बारी सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं। अरे, चौराहे की तरफ ये शोरगुल- सायरन कैसा! ओ गॉड, इतना विशाल मंच ! मंच पर देश के सारे कर्ता- धर्ता अचानक पधार कर मुस्कुरा रहे हैं..... मंच में ये कौन लड़की चढ़ रही है, गौरवर्णी-पुआ जैसे फुले गाल व तीखे नैन-नक्श! सभी सज्जनों ने तालियों की गड़गड़ाहट से उस बच्ची का स्वागत किया है। अच्छा, तो ये हैं रामचरण की बेटी कमला। सचमुच कायान्तरण! काली कमला-गाल पिचकी कमला तो अब गौरवर्णी-सुन्दर गात वाली कमला बनकर निकली है जीनोम ट्युब से। सचमुच इस अदभुत अनुसंधान ने पूरे विश्व में भारत का लोहा मनवा लिया है। अब मंच पर रामचरण को बुलाया गया है, अपनी कमला को अपने कर कमलो से ग्रहण करने हेतु.......। अरे! इस बेवकूफ -8-रामचरण को क्या हो गया है! वह तो अपनी ही बेटी को घूरे जा रहा है। शायद नये रंग-रूप वाली कमला को जी भरकर आँखो में कैद कर लेना चाह रहा है। ओह! रामचरण ने तो छाती पीटना शुरू कर दिया है-दहाड़ मार कर रोये जा रहा है- मुझे मेरी कमला लौटा दो-मेरी प्यारी कमला-मेरी सलोनी कमला-मेरे आँखो का तारा- मेरी बच्ची-इस नये रूप-रंग वाली बच्ची को मेरी आँखें-मेरा दिल भला कैसा कबूल करेगा-मुझे तो वो बच्चा चाहिए जो मेरी है-जो मेरी नहीं है-मेरे लिए नहीं है उसे भला मैं कैसे कबूल कर लूँ -सरकार मुझे आपका ये वरदान नहीं चाहिए-मुझे अपने मन की कमली चाहिए......... ये क्या, मंच से महापुरूषगण गायब है, अरे! अब तो मंच भी गायब है। है तो सिर्फ विलाप करता रामचरण और कमला। चंचल और

हंसमुख कमला आज मौन खड़ी है, अपने पिता को एकटक देखे जा रही है। रामचरण की चित्कार बढ़ती जा रही है, यदि उसे अपनी आँखों देखी कमला वापस नहीं मिली तो शायद शाम तक उसका कमला-क्रन्दन सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त हो जायेगी, ”जो मन को अपना न लगे उसे बलात मत थोपो”। अब रामचरण उत्तरी टावर की ओर हाथ जोड़कर भीख मांग रहा है- मुझे अपनी वाली कमला वापस कर दो, जो कमला अपना न लगे उसे भला कैसे बलपूर्वक अपना मानकर साथ ले चलूँ। घोर अनर्थ! उत्तरी टावर पलक झपकते ही तिरोहित हो चुका है, आसमान में विलीन हो गया है या फिर धरती में गड़ गई, फिर तो आने वाले दिनो में धरती कम्पित हो उठेगी और प्रकृति-विरूद्ध कृत्य के कुफल मानव जाति को भुगतने पड़ेंगे। रामचरण के बढ़ते विलाप और कमला की किंकर्तव्यविमूढ़ता का दृश्य काफी डरावना होता जा रहा है, अब मेरी हिम्मत जवाब दे रही है, मैं दक्षिणी टावर की ओर बढ़ा जा रहा हूँ, स्वतः स्फूर्त।......... मार-धक्का मार.....उखाड़-जड़ से उखाड़.......ले चल अपना पार...... दक्षिण टावर के पास नारा बुलन्द हुआ जा रहा है, भीड़ की ललकार ऐसी कि आसमान के रास्ते सारे देश में फट पड़ेगी....... ये टावर धोखा है....ये टावर एकतरफा है......इसे उखाड़....अपनी तरफ गाड़...न हिले-न उखड़े तो दे इसे झाड़....... भीड़ की दहाड़ बन्द होने का नाम नही ले रही है। सूरजमल ट्युटर से पूछता हूँ। असली कार्ययोजना क्या है ? ”हाँ-हाँ! कार्ययोजना! आप जानना चाहते हैं न”-अरे, मैंने तो प्रश्न सोचा भर है मन में, पर सूरजमल कैसे समझ गया मुझे क्या पूछना है। उसकी आवाज तो सारी भीड़ पर भारी पड़ रही है, लग रहा है जैसे ऊपर

आसमान से कोई फरिश्ता भू-कम्पित कर देने वली आवज में बोल रहा है, अब तो सारी भीड़ सूरजमल की ओर मुखातिब है........ -9-

”हाँ तो सुनो प्रभो, कल कौन सी तारीख है, याद है न! पन्द्रह अगस्त दो हजार सैतालिस, आज चैदह अगस्त है, आज आजादी के सौ साल पूरे हो चुके हैं, ये टावर हम गरीबों-वचितों के साथ एक बड़ा धोखा है-छलावा है, अपने लोगों को बोलो इस टावर को उखाड़कर आज रात ही बीच नहर में खड़ा करे, अन्यथा हम गोरखपाड़ा वाले इसे उखाड़ कर रात में ही नहर की उत्तरी किनारे खड़ा कर देंगे| कॉलोनीवाले भाई-बन्धु! इस गुमान में मत रहना कि आपलोगों ने इसे बड़ी मजबूती से और बड़ी कलाकारी से अपनी ओर खड़ा किया है और इसलिए हम इसे उखाड़कर अपनी ओर नहीं कर पायेंगे। स्पष्ट किये देता हूँ, यदि हम इसे नहीं उखाड़ सके तो अपने हाथों के हथोड़े से ध्वस्त कर डालेंगे, फिर कल पन्द्रह अगस्त सैतालिस को पूरा देश आजादी के सौ साल का जश्न इस टावर के मलबे पर मनायेगा.....मैं फिर से दुहराता हूँ, मेरे साथ आप भी ऊँची आवज में मंत्र जाप करें। अब तो गगनभेदी नारों से पूरा वातावारण कोलाहलमय हो उठा है। पन्द्रह अगस्त दो हजार सैतालिस....टावर का मलबा....सौ साल का जश्न.....पन्द्रह अगस्त सैतालिस....मलबा....सौ साल का जश्न......पन्द्रह अगस्त दो हजार सैतालिस...... मलबा....जश्न....सैतालिस.....मलबा जश्न......

“अरे उठो, ये कौन सा मनहूस सपना तुम देख रहे हो “,

“अरे, रैना तुम, मुझे चिकोटी क्यों काट रही हो “, मेरी गहरी नींद टूटने से मैं झुंझला उठा । “दुनिया के नम्बर वन बुद्धु, तुम स्वप्न में बड़-बड़ाए जा रहे थे........ सन दो हजार सैतालिस.......मलबा...जश्न! अभी तो साल दो हजार सोलह चल रहा है, सन सैतालिस तो कोसो दूर है, तब-तक हम तुम जिन्दा रहेंगे भी या नहीं, कौन जानता है....... और हाँ, क्लास जाने से पहले अमी ने फोन किया था। तुने उसे बेबजह हॉस्टल में डाल दिया है, सातवीं में ही पढ़ रहा है, न जाने क्या-क्या पढ़ता है और नया-नया फिलासाफी झाड़ता है, सबेरे-सबेरे कह रहा था, पापा को बोलना पालिटक्स में हैं तो छोटे लोगों पर ज्यादा गौर करें, नहीं तो समय के साथ सब ध्वस्त हो जाएंगे...... समय के साथ ध्वस्त हो जायेगे, पता नहीं क्या सीख रहे हैं आजकल के बच्चे! अब तुम्हें क्या हो गया है, सपने से जागे हो तो दिन भर बिस्तर पकड़कर बैठे रहोगे क्या, मुँह-हाथ धोकर घूम-फिर आओ, मन करे तो गोरखपाड़ा चैक पर थोड़ा बतंगढ़ भी कर आना“-बोलते-बोलते रैना किचन में घुस गई ; मैं तो अभी भी स्वप्न से बाहर नहीं आ पाया हूँ।

-10- आज चैराहे पर तो कुछ नहीं बदला है, सबकुछ यथावत। गोरखपाड़ा के वही जाने-पहचाने चेहरे; चाय की दुकान के दायीं ओर, अपनी सार्वभौमिक मुस्कान और मुस्कुराहट के साथ। नहर पार के साहेबान लोग चाय दुकान के सामने बेंच पर, कुछ खड़े भी, चेहरे में कोई भय- शिकन नहीं, बल्कि सदियों तक सुरक्षित सा दीखने वाले आत्मविश्वास के साथ अखबार पलटते हुए। पर मैंने सपने तो भोर में देखे थे, जो

प्रायः सच होते हैं। सच और झुठ के चक्कर में पड़ने से कहीं मेरा दिमाग चकरा न जाय, इससे अच्छा है अपने सुपुत्र अमी की बात पर अमल करना। वैसे भी गरीबों की बस्ती पर गौर करना मेरे छोटे से राजनीतिक जीवन की मुख्यधारा रही है। अच्छा रहेगा, रामचरण से थोड़ा बहुत गप्प मारकर मन हल्का कर घर चला जाय। आज तो कमला गाय की बछिया जैसी फुदक रही है, लौकी-तुरई-भिन्डी- गोभी-टमाटर और भी बहुत सारे सब्जी को तख्त पर सजाती जा रही है, अल्हड़ पुरवैया जैसी मचलती हुई। उसके श्यामल मुखमण्डल पर कैसी निश्छल उज्जवलता दमक रहीं है। “बन्धु रामचरण, मान लो किसी डाक्टर के पास बच्चों का रंग-रूप बदलने की मशीन हो, और वे तुम्हें कहे कि अपनी श्यामली कमला को ले आओ, मशीन में डालकर गोरी-सलोनी कमला ले जाओ तो तुम क्या करोगे“-मैंने चुहलबाजी में ही रामचरण से पूछा, वस्तुतः स्वप्न मे देखी गयी चीजो का साक्षात परीक्षण करना चाहता हूँ। “आप वही स्कीम बता रहे हैं न जो कल वित मंतरी बाबू पारलियामन्ट में बोले हैं”-सब्जी में पानी भरते हुए रामचरण लाटसाहबी शैली में बोला। “हाँ मान लो सरकार ही इतना बड़ा मेडिकल-प्लान लेकर आ जाय“ “देखो साहबजी, हर मानुस को अपना बच्चा प्यारा होता है, चाहे उसका रंग-रूप दूसरे देखने वाले की नजर में काला-कलुटा-बदरंग क्यों न हो। आप मेरी कमला को मशीन में बदलकर परी रूप में बदलकर लाओगे तो इनकार करने में मुझे एक सेकेन्ड न लगेगा, अगर तुम्हारी सरकार खुद ऐसा करेगी तो समझो जनता हांडी की कालिख पोत देगी सरकार के मूँह में”। “तो तुम्हारे कहने का मतलब है, सरकार की हर स्कीम फेल होती है“

“अगर स्कीमें सफल होती तो पुरे देश में गोरखपाड़ा नहीं फैला होता! अरे साहब लोग, कोई ऐसी स्कीम चलाओन जिससे हमारे हाथों में भी पैसा सरके, हम भी परिवार के लिए एक सेर दूध-एक किलो फल-पनीर-मटन- काजू-पिस्ता खरीद सके, हमारे बच्चे भी आपके कॉलोनी के बच्चो के माफिक दिखे“

-11-

“तुम सही फरमा रहे हो, हमारे काॅलनी और तुम्हारी बस्ती की स्थिती में काफी फर्क है“ ”फर्क ही फर्क है, अन्धा कानून कहिये इसे, दिन-रात हाथ-पैर चला रहे हैं हम गरीबन लोग और बैठे-बैठे तिजोरी भर रहो हैं उस पार वाले साहेब लोग; लेकिन मेरा विश्वास है, ये अन्धा कानून आज न कल जल कर राख होगा ही होगा “ “चलो रामचरण, अब मैं चलता हूँ, अच्छा मजाक कर लिया हमने, बात शुरू हुई थी दुबली-पतली श्यामली कमला का रंग-रूप बदलने से, पर पहुँच गये पालिटिक्स में“ “हम ग़रीबों के बच्चों को सरकार जबरदस्ती बदलकर हम पर नहीं थोप सकती है न, ये तो पूरी तरह से बददिमाग वाली बात हुई“ “राम राम रमचरण“ “राम-राम साहेब, ताजी गोभी आयेगी तो कमला घर पर पहुँचा आवेगी“

रामचरण और कमला को अपने सोच में ढ़ोते हुए मैं नहर की पुलिया पर ठहर सा गया हूँ; सुबह स्वप्न में इसी नहर के दोनों ओर ही तो दो

विशाल टावर दिख रहा था। नकली कमला को अस्वीकार कर रामचरण ने उत्तरी टावर को हकीकत में ध्वस्त कर दिया है। पर एकतरफा विकाश का अदृश्य दक्षिणी टावर तो सही मायने मे सम्पूर्ण देश में फैलता जा रहा है, दृश्य रूप में। यहाँ इस पुलिया पर खड़ा होकर मुझे उस टावर का भविष्य स्पष्ट दिख रहा है; दक्षिणी टावर को उत्तरी किनारे में शिफ्ट करना सचमुच आसान नहीं होगा, पर हमें कम से कम उसे नहर के बीच में ला खड़ा करना ही पड़ेगा, अन्यथा सच ही पन्द्रह अगस्त दो हजार सैतालिस को आजादी के सौवें साल का जश्न एक तरफा समृद्धि के मलबे पर ही मनायेंगी जनता।