शत्रुघ्न की जीवनी और 'दोस्ताना' / जयप्रकाश चौकसे

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शत्रुघ्न की जीवनी और 'दोस्ताना'
प्रकाशन तिथि :09 जनवरी 2016


अनुभवी पत्रकार भारतीप्रधान ने लगभग सात वर्ष तक विभिन्न शहरों में शत्रुघ्न सिन्हा और उनके परिवार के लोगों से बातचीत करके शत्रुघ्न सिन्हा के जीवन, प्रेम और कॅरिअर पर 'एनीथिंग बट खामोश' किताब लिखी है। शत्रुघ्न ने एक फिल्म में अपनी बुलंद आवाज में 'खामोश' कहा था और तभी से विभिन्न सार्वजनिक समारोहों में जनता के आग्रह पर 'खामोश' बोलते रहे हैं। सितारा कुछ तो अपने प्रयास से और कुछ प्रशंसकों के सहयोग से अपनी छवि गढ़ता है, जिसे हम मनुष्य का असली रूप मान लेते हैं। शत्रुघ्न जैसे बड़बोले इनसान की छवि के साथ जाने कैसे 'खामोश' जुड़ गया है, जबकि यह जुमला अमिताभ बच्चन के व्यक्तित्व को बेहतर ढंग से अभिव्यक्त करता है। यह भी संयोग ही है कि अपने प्रारंभिक संघर्ष में घनिष्ट मित्र रहे शत्रुघ्न और अमिताभ के बीच बाद में मनमुटाव हो गया। उन्होंने यश जौहर की पहली फिल्म 'दोस्ताना' में काम किया था, जिसे सलीम-जावेद ने लिखा था।

उनके उस दौर के दोस्ताने का यह आलम था कि सचिव पवन कुमार दोनों का काम देखते परंतु मनमुटाव के बाद पवन कुमार शत्रुघ्न के साथ ही रहे और अमिताभ ने दूसरा सचिव रख लिया। चुनावों में जरूर जातिवाद के अाधार पर वोट बैंक का फरेब गढ़ा गया है परंतु ये दोनों कायस्थ परम मित्र रहे और फिर मनमुटाव हो गया परंतु एक-दूसरे के लिए भाई-चारे के भ्रम को कायम रखते हुए प्रकाशित किताब के पिछले कवर पर सबसे पहले अमिताभ बच्चन का कथन है, 'शत्रुघ्न सिन्हा को बदलने का प्रयास करें, वे 130 करोड़ के देश में सबसे अलग नज़र आते हैं।' इस कवर पर आडवाणी एवं सुषमा स्वराज के कथनों के साथ रजनीकांत और चिरंजीवी के कथन भी हैं और किताब की भूमिका कांग्रेस नेता शशि थरूर ने लिखी है। स्पष्ट है कि भाजपा के नेता शत्रुघ्न के कुछ कांग्रेसी मित्र भी है और नीतीश तथा लालू प्रसाद यादव भी हैं।

शुक्रवार को किसी अखबार में खबर थी कि शत्रुघ्न को बिहार चुनाव से अलग रखने का नुकसान पार्टी को हुआ। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद शत्रुघ्न ने समय-समय पर अपने दल की आलोचना की है अौर हाल ही में कीर्ति आज़ाद बनाम अरुण जेटली द्वंद्व में भी आज़ाद का पक्ष लिया है। कुछ लोगों का कहना है कि वाजपेयी मंत्रिमंडल में मंत्री रहने के बाद मोदी सरकार ने उन्हें कोई स्थान नहीं दिया, इसलिए भड़ास निकाल रहे हैं। यह सच भी हो सकता है और झूठ भी, क्योंकि नेता के चरित्र को समझना कठिन होता है।

शत्रुघ्न ने रीना रॉय के साथ इश्क की लंबी पारी खेली परंतु विवाह पूनमजी से किया। क्या शत्रुघ्न एक ही समय में विकेट के दोनों ओर से बल्लेबाजी कर रहे थे और संभवत: वे रीना के खयाल को दिल में रखे अपनी विवाहिता पूनम के साथ अंतरंगता का निर्वाह कर रहे थे, जो अनगिनत पुरुषों का यथार्थ है और इसका पहला विवरण वात्स्यायन ने अपने 'काम-सूत्र' में भी किया है। शत्रुघ्न की सुपुत्री सोनाक्षी सिन्हा में कुछ साम्य रीना राय का है परंतु व्यक्तिगत गरिमा उन्होंने अपनी मां पूनम से ग्रहण की है। याद कीजिए आशुतोष गोवारीकर की फिल्म 'जोधा-अकबर' को जिसमें उन्होंने बादशाह की मां की भूमिका में विश्वसनीयता भर दी। शत्रुघ्न अगर बड़बोले हैं, तो पूनम की पहचान गरिमामय खामोशी की है। प्राय: पतियों और पत्नियों की विपरीत छवियां कुदरत का संतुलन बनाए रखने का तरीका है।

शत्रुघ्न बिहार के अत्यंत शिक्षित परिवार के सदस्य हैं और चारों भाइयों के नाम राम, भरत, शत्रुघ्न एवं लक्ष्मण हैं। यहां तक की जुहू में शत्रुघ्न के बंगले का नाम भी 'रामायण' है और उनके पुत्रों का नाम लव और कुश है। मजे की बात है कि यह बंगला अमिताभ बच्चन के प्रथम बंगले प्रतिक्षा की विपरीत दिशा में कुछ ही गज के फासले पर है। इस तरह पूरी तरह राममय परिवार के युवा ने मुस्लिम रीना राय से शादी नहीं की। कोई आश्चर्य नहीं। प्रारंभिक दिनों में मित्र रहे शत्रुघ्न और अमिताभ बच्चन के बीच दीवार का कारण शत्रुघ्न के अहंकार को चोट लगना भी हो सकता है। वे पुणे फिल्म संस्थान से प्रशिक्षित थे परंतु जंजीर, दीवार और शोले के बाद अमिताभ शिखर सितारा हो गए। अनेक प्रतिभावान लोग इस तरह जाने क्यों सोचते हैं कि lt145उसकी कमीज मेरी कमीज से उजली क्यों?' अमिताभ के राजनीति में प्रवेश के बाद शत्रुघ्न सिन्हा भी राजनीति में आए। उससमय बच्चन कांग्रेस में थे तो शत्रुघ्न ने विपक्षी दल की सदस्यता ली परंतु आज तो सभी दल समाज नज़र आते हैं और सत्ता के लोभ ने सबको बदरंग कर दिया।