शब्दों के अर्थ बदल देते हैं रिश्ते / तुषार कान्त उपाध्याय

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सुबह की चाय और अख़बार। किसी फैले हुए बंगले की लॉन हो या फुटपाथ पर बिखरे हुए पन्नों के साथ चाय के गिलास लिए लोग। ख़बरें और चाय चुस्की। भला इससे ज़्यादा इत्मीनान भरे दिन की शुरुआत क्या होगी। कई हादसे, दुर्घटनाएं, रोती-चिल्लाती तस्वीरें हमारी आँखों के आगे से गुजरती हैं। फिर अगली खबर और-और अगली चुस्की। पर इन खबरों में किसी अपने की खबर हो तो? अचानक दुनिया बदल जाती है।

कैंसर जैसी बीमारियों का अर्थ तब समझ में आता है जब हमने असहाय भाव से किसी अपने को इस रोग दर्द से तड़पते और मिनट-मिनट मरते देखा है। तब ये सिर्फ़ ख़बरें नहीं होती।

डॉक्टर या पुलिस अधिकारी के लिए दुर्घटना या मृत्यु रोजमर्रा की ज़िन्दगी है। पर तब नहीं जब कोई 'अपना' इन घटनाओं में शामिल हो। अपहरण की खबर ज़रा उससे पूछिए जिसके बच्चे का अपहरण हुआ हो और उसे मार दिया गया हो। ये रिश्ते हैं जो शब्दों के मायने बदल देते हैं।

रिश्ते बस रिश्ते होते हैं
कुछ इक पल के
कुछ दो पल के
कुछ परों से हल्के होते हैं
बरसों के तले चलते-चलते
भारी-भरकम हो जाते हैं
कुछ भारी-भरकम बर्फ़ के-से
बरसों के तले गलते-गलते
हलके-फुलके हो जाते हैं
नाम होते हैं रिश्तों के
कुछ रिश्ते नाम के होते हैं
रिश्ता वह अगर मर जाये भी
बस नाम से जीना होता है
​​बस नाम से जीना होता है
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं

--गुलज़ार ​

रिश्ते जीवन को रंगो से भरते हैं। हम इन रंगो को कितनी तन्मयता से, संभाल कर और संतुलन के साथ जी पाते हैं यही जीवन की कलात्मकता है। रिश्तों और रंगो का संतुलन जीवन को अर्थ देता है तो कभी अर्थ छीन भी लेता है।

खून के रिश्ते बहुत गहरे होते हैं। सबसे प्रिय और ह्रदय के भीतर बसे। पर रिश्तों का खून भी सबसे ज़्यादा यही होता है। सबसे ज़्यादा सुख ये देते हैं तो दुःख भी कम नहीं। जीवन के संघर्षो में जब इनकी ज़रूरत सबसे ज़्यादा होती है तो दूर-दूर ये नज़र नहीं आते। जब हमारा कोई मित्र बहुत करीब आता है तो कहते हैं 'ये तो मेरा भाई है' परन्तु दो सगे भाई पूरे जीवन मित्र भी नहीं रह पाते।

पूरी ज़िन्दगी अभाव और संघर्षों में गुजार कर भी अपने बच्चे को सर्वोत्तम देने की लालसा, अपने सभी अधूरे, दूर से देखे, जगती आँखों के सपनो अपने बच्चों के जीवन में पूरे होते देखने की उद्दाम कामना, आज की तपती दोपहरी को भी बसंत के भोर का एहसास करा जाती है। जिन बच्चों हम अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं, जिनकी उपलब्घियों पर हम इतराते हैं, जिनका होना मायने रखता है, सफलता असफलता परे। आकांछा सिर्फ़ उनको खुश देखने की होती है। उन्ही के पास, हमारे जीवन की गोधूलि में, हमारे लिए फुरशत नहीं होती। वह बड़े सबसे सौभाग्यशाली हैं जो अपने बच्चों की प्राथमिकताओं में शामिल हैं।

शादियों के माध्यम से जुड़ रहे खानदानो में, दहेज़ के लिए पनपी कटुता, मानवीय मूल्यों के सारे मानदंडों को चकनाचूर करती है। फिर भी, ये रिश्ते रूठ जाये तो ज़िन्दगी किसी सूखे तालाब तलहटी-सी दरारों भरी, भयावह हो जाती है।

चाँद से फूल से या मेरी जुबां से सुनिए
हर तरफ आपका किस्सा है, जहां से सुनिए

--निदा

हमने गाँवों में अक्सर सुना है-जो वक़्त पर काम आये वही पूत, वही भर्तार। कुछ लोग हमारी ज़िन्दगी में आते हैं। पता नहीं कहाँ से। जाति, धर्म, लिंग कोई मतलब नहीं रखता। दोस्त, मित्र, सहयोगी बन कर। और जीवन के महाभारत में कृष्ण की तरह खड़े हो जाते हैं। बड़ा अचम्भा होता है, पिछले जन्म का कोई कर्ज चूका रहे हो जैसे। बिना किसी उम्मीद के, मानवीय रिश्तों प्रतिमान गढ़ते। फिर उनके बिना जीवन बेमोल हो जाती है।

मैं ढूँढता हूँ जिसे वह जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता
खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे-सा कुछ भी यहाँ नहीं मिलता

--कैफ़ी

कभी आपने महसूस किया, किसी से मिलते ही अकारण उसके प्रति आकर्षण होने लगे, या फिर किसी से मिलते ही लगता है इससे दुबारा ना मिलना पड़े। कुछ अबूझ-सी पहेली है। सबकुछ जानबूझकर कार्य कारण सम्बन्ध का परिणाम नहीं होता।

स्त्री पुरुष के सभी रिश्ते देह से होकर नहीं गुजरते। एक दोस्ती है, प्रेम है। परन्तु प्रेम के सामान्य परिभाषा की परिधि से बाहर। एक सच्चे दोस्त की तरह। समाज की तनी भृकुटियों की परवाह किये बिना। एक दूसरे की हर ज़रूरत में साथ खड़े। जैसे ये अबोले रिश्ते आए ही हो हमारे जीवन की उष्णता को बाँट कर शीतलता देने। उनके बिना कल्पना सिहरन पैदा करती है।

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
पूछेगा सारा गाँव, बंधु!

--निराला

मन जब किसी ठांव बंधने लगे। सारे तर्क और बंधन मायने खो हैं। क्या उम्र, क्या जाति और क्या हैसियत। सब पीछे जाते हैं। इन रिश्तों के लिए कितने तख्तो ताज ठुकरा दिए गए. भाई-बंधू, नाते रिश्तेदार और समाज किसी की भी परवाह कहाँ रह जाती है। सालों के और तमाम खून के रिश्ते पता नहीं कहाँ छूट जाते हैं।

दिल में ना हो जुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती
खैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती

--निदा

कहते है रिश्ते बनना आसान है परन्तु उसे निभाना कठिन है। बड़े हिम्मत और धैर्य की ज़रूरत है। निष्ठा और ईमानदारी के बिना सालों के रिश्ते मिनटों में बिखर जाते हैं। इतनी बड़ी नेमत मुफ्त नहीं मिलती। रिश्ते ह्रदय का समर्पण मांगते हैं। अहम और स्वार्थ से ऊपर। रिश्ते देने और सिर्फ़ देने का नाम है। वह खून के रिश्ते हों या दोस्ती के. दिखावा और छल की हलकी-सी आंच में भी कपूर की उड़ जाते है। जिस दिन विश्वास खोया समझिए आपने पूरा रिश्ता खो दिया।

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती ना मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी ना मिला
घरों पर नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी ना मिला
तमाम रिश्तों को मैं घर पर छोड आया था
फिर इसके बाद मुझे कोई अजनबी ना मिला
बहुत अजीब है ये कुरबतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी ना मिला
खुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने
बस एक शख्स को मांगा मुझे वही ना मिला

--बशीर बद्र