शब्द: मित्र, पड़ोसी, और खामोशी का जवाब / जयप्रकाश मानस
डायरी 4 फरवरी, 2014
शब्द मनुष्य का सबसे बढ़िया मित्र है, जिसके पड़ोस में बहुत सारे रिश्तेदार शब्दों के घर हैं ।
यह पंक्ति एक पुरानी चिट्ठी-सी लगती है—शब्द को मित्र कहना, और उसके पड़ोस में रिश्तेदार शब्दों के घर देखना। पर आज, जब शब्द स्क्रीन पर चमकते हैं, लाइक और शेयर की हड़बड़ी में उलझे हैं, तो सवाल उठता है: क्या शब्द अब भी मित्र है? या बस एक पड़ोसी, जिसका दरवाज़ा हम औपचारिकता में खटखटाते हैं? आज का समय शब्दरहित नहीं, शब्दों से भरा है—मगर वे शब्द जो शोर हैं, सत्य नहीं।
"शब्द मनुष्य का सबसे बढ़िया मित्र है"—यह बात तब सच थी, जब शब्द गाब्रिएल गार्सिया मार्केस की तरह कहानी बुनते थे। उनकी "One Hundred Years of Solitude" में शब्द समय को पकड़ते हैं, मनुष्य की स्मृति को। मार्केस के शब्द मित्र थे—वे अकेलेपन को आवाज़ देते थे। पर आज, जब शब्द ट्वीट की गिनती में सिमट गए, इमोजी की चमक में खो गए, क्या वे मित्र बचे हैं? या बस भीड़ का हिस्सा बन गए, जो चिल्लाती है, मगर कुछ कहती नहीं?
"पड़ोस में बहुत सारे रिश्तेदार शब्दों के घर हैं"—हँसी आती है, और चिंता भी। यह पड़ोस आज का सोशल मीडिया है, जहाँ शब्दों के घर तो हैं, पर उनमें आत्मीयता नहीं। ये शब्द विज्ञापन हैं, ट्रेंड हैं, मगर सवाल नहीं। मुझे टोनी मॉरिसन की याद आती है। उनकी "Beloved" में शब्द चुप्पियों को तोड़ते हैं, दर्द को आवाज़ देते हैं। मॉरिसन ने कहा था, "हम शब्दों से जीते हैं, उनसे प्यार करते हैं।" पर आज का पड़ोस शब्दों का नहीं, शोर का है। शब्द रिश्तेदार बन गए—जिनसे मिलना ज़रूरी है, पर बातचीत नहीं। आज शब्दों को मित्र कम, सौदा ज़्यादा बनाया जा रहा है। हम उन्हें बेचते हैं, ख़रीदते हैं, मगर उनकी दोस्ती भूल जाते हैं। यह मुझे जॉर्ज ऑरवेल की याद दिलाता है। उनकी "1984" में शब्द सत्ता के हथियार थे, सत्य को तोड़ने वाले। ऑरवेल ने चेताया था: शब्द जब सच को छिपाएँ, तो वे मित्र नहीं, दुश्मन बनते हैं। आज के समय में शब्दों का दुरुपयोग वही है—वे लुभाते हैं, मगर सत्य से दूर ले जाते हैं।
फिर भी, शब्दों में उम्मीद है। सलमान रुश्दी की तरह, जो "Midnight’s Children" में शब्दों से इतिहास को जीवंत करते हैं। रुश्दी ने लिखा, "शब्द याद रखते हैं, जब हम भूल जाते हैं।" शब्द तब मित्र हैं, जब वे हमें ख़ुद को याद दिलाएँ। पर इसके लिए हमें उनके पड़ोस को बचाना होगा—उसे शोर से, चमक से, सतहीपन से।
यह पंक्ति एक सवाल है: क्या हम शब्दों के मित्र बन सकते हैं? या उन्हें रिश्तेदार बनाकर छोड़ देंगे? शब्द तब मित्र है, जब वह सन्नाटे में सत्य को टटोलता है। वह तब पड़ोसी है, जब उसके घर में विचार बसते हैं। आज के शब्दरहित समय में, शब्द को दोस्त बनाना होगा—वह जो हमें सोचने को मजबूर करे, चिल्लाने को नहीं।
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