शमिताभ : गूंगे अधूरेपन का गीत / जयप्रकाश चौकसे

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शमिताभ : गूंगे अधूरेपन का गीत
प्रकाशन तिथि :06 फरवरी 2015


आर. बाल्की की अमिताभ बच्चन के साथ 'चीनी कम','पा' के बाद 'शमिताभ' तीसरी फिल्म है और अमिताभ उनकी सृजन प्रक्रिया की धुरी हैं। फिल्म में लंदन की रॉयल एकेडमी में नायक को सृजन पर भाषण देने के लिए आमंत्रित किया जाता है। इस दृश्य में बाल्की ने सृजन के खुलासे को खामोश रखा है, केवल श्रोताओं के प्रसन्न चेहरे से अाभास होता है कि भाषण उन्हें अच्छा लगा। इस निजी सृजन प्रक्रिया के बारे में वे कुछ बाेलना नहीं चाहते। फिल्म भारतीय सिनेमा को आदरांजली के तौर पर बनाई है, जैसा कि पहले गीत में ही स्पष्ट कर दिया है 'सिनेमा इश्क है, सिनेमा जुनून है' परन्तु सिनेमा से मौलिकता के लोप का मखौल भी उन्होंने जमकर किया है। मसलन अमिताभ अभिनीत पात्र का यह कहना कि जाे उद्योग अपने लिए मौलिक नाम भी नहीं खोज पाया, उसमें मौलिक कहानियों की उम्मीद कैसे की जा सकती है, क्योंकि हाॅलीवुड से तुक मिलाते हुए बॉलीवुड कहना अपना स्वयं का अपमान करना ही है।

एक गीत के छायांकन का केन्द्र सुंदर प्राकृतिक स्थल पर कमोड के विभिन्न रूप दिखाकर किया है। पैखाने का ऐसा अभिनव प्रयोग साजिद खान और उनकी बहन फराह खान की सिनेमाई समझ पर करारा व्यंग्य है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने 'बाॅलीवुड' नाम स्थापित किया, उस पर व्यंग्य है, मीडिया तो चेहरे और आवाज में भी युद्ध करा सकता है।

बाल्की विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं और अपने गंभीर कथानकों में जमकर हास्य प्रस्तुत करते हैं। इस फिल्म में आप बेसाख्ता ठहाके लगा सकते हैं, विशेषकर मध्यांतर तक। गहरे अर्थ की अनेक सतहों वाली फिल्म की कथा सरल है। अमिताभ सिन्हा 40 वर्ष पूर्व अभिनय करने आया परन्तु गहन गंभीर गूंजने वाली आवाज के कारण अस्वीकृत किया गया। आकाशवाणी ने भी उन्हें नौकरी नहीं दी। यह प्रसंग स्वयं बच्चन के यथार्थ जीवन से लिया गया है। इसमें यथार्थ जीवन की अनेक झलकियां है जैसे रेखा नायक को पुरस्कार देते हुए कहती हैं- 'अपनी आवाज का ख्याल रखना' और यह आवाज अमिताभ की है। यह अस्वीकृत एवं तिरस्कृत अभिनेता सनकी हो गया है और कब्रिस्तान में रहता है, जहां का अाधिकारिक सेवक उन्हें 'जहांपनाह' कहकर संबोधित करता है तथा यह भी अमिताभ बच्चन की 'शहंशाह' नामक फिल्म का संदर्भ है।

दूसरा नायक पैदाइशी गूंगा है और बचपन से ही फिल्म सितारा बनना चाहता है। भारत के कस्बों में अनगिनत युवा सितारा बनना चाहते हैं, यह उनका जुनून है जो फिल्ममय भारत की हकीकत है। धनुष ने इस भूमिका को जीवंत कर दिया है। उसकी सितारा बनने की तड़प, उसके आर्तनाद और क्रोध दर्शक से भावनात्मक तादात्मय बनाता है। फिल्म सितारों के एेश्वर्य एवं अहंकार का प्रतीक उनकी भव्य वैनिटी वैन होती है। यह बाल्की का जीनियस है कि उनका गरीब महत्वाकांक्षी नायक किसी सितारे के वैनिटी वैन में छुपकर कई दिन बिताता है। वैनिटी वैन सितारे की सोच में घुसने की तरह है।

अमिताभ और धनुष जैसे असाधारण प्रतिभाशाली कलाकारों द्वारा अभिनीत पात्रों के हृदय के अहंकार और अंधकार की फिल्म में अक्षरा हसन दिव्य प्रकाश की तरह अपनी उजास से फिल्म अवधारणा काे सार्थकता देती हैं। अक्षरा, मां सारिका की तरह सुंदर और पिता कमल हासन की तरह प्रतिभाशाली हैं। यही पात्र उस घटनाक्रम का संचालन करता है, जिसमें धनुष का मुंह और अमिताभ के संवाद की युति बनती है। इस प्रक्रिया में एक टेक्नोलॉजी का लोचा भी है। दोनों पुरुष पात्र अहंकार के कारण व्यावहारिकता को नकारते हैं। इनके बीच संपर्क और संतुलन की प्रतीक अक्षरा बुद्धि और व्यावहारिकता तथा आपसी सामंजस्य की शक्ति का प्रतीक हैं। पुरुष प्रधान फिल्म की तराजू के दोनों पलड़ों का समान तोल तो अक्षरा अभिनीत नारी पात्र ने किया है। समाज में पुरुष प्रधानता के जुनून को नारी अक्षरा सहती है और उसका दु:ख, अकेलापन सीधा दर्शक के हृदय को आंदोलित करता हुआ समाज की विसंगति और विरोधाभास पर प्रहार करता है। बाल्की की सृजन प्रक्रिया में गौरी शिन्दे की प्रेरणा को भी रेखांकित करता है।

बाल्की जीवन की साधारण चीजों में भी असाधारण स्य को खाेज लेते हैं। अमिताभ स्वयं को शराब और धनुष को मात्र पानी समझते हैं तो बाल्की शराब की बोतल पर तथ्य कि 43% अल्कोहल, 57% पानी से मिलकर बनने वाली सच्चाई को सामने लाते हैं। यह फिल्म एक महान सत्य को प्रस्तुत करती है कि हम सब अधूरे हैं और मिलकर ही भवसागर पार कर सकते हैं। यह जीवन अपूर्ण है और पूर्णता एक मिथ है। यह फिल्म गिरीश कर्नाड के नाटक 'हयवदन' की याद दिलाती है जिसमें नायिका पूर्णता की खातिर कवि का सिर पहलवान के शरीर और पहलवान का दिमाग कवि के शरीर पर लगाती है परन्तु कालांतर में वे पहले की तरह हो जाते हैं। बाल्की ने टाइटल में ही पूरी बात कर दी है। धनुष का 'शा' अमिताभ के 'मिताभ' से जोड़ा है। यह एक विरल फिल्म है, भारतीय सिनेमा के अधूरेपन को भरने का प्रयास है। इसमें अर्थ की सारी सतहों तक जाने के लिए प्रयास करना होगा।