शरतचंद्र का देवदास और अफीम का नशा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :13 मार्च 2018
सुधीर मिश्रा 'दास डी' नामक फिल्म बना रहे हैं। कुछ वर्ष पूर्व वे 'देव डी' नामक फिल्म बना चुके हैं। शरतचंद्र चटर्जी के उपन्यास 'देवदास' पर अनेक भाषाओं में फिल्में बनी हैं। शेक्सपीयर के 'हेमलेट' और शरतचंद्र के 'देवदास' हमेशा ही फिल्मकारों के प्रिय विषय रहे हैं। दोनों ही पात्र दुविधाग्रस्त पात्र हैं। कुरुक्षेत्र में अर्जुन भी दुविधाग्रस्त थे कि अपने ही लोगों के विरुद्ध युद्ध कैसे करें? हेमलेट जानता है कि उसके चाचा ने उसकी मां के सहयोग से उसके पिता की हत्या की है परंतु उसकी दुविधा यह है कि अपने ही चाचा और मां के विरुद्ध वह कैसे कदम उठाए। कुरुक्षेत्र में अर्जुन की दुविधा दूर की श्रीकृष्ण ने परंतु हेमलेट और देवदास को श्रीकृष्ण उपलब्ध नहीं थे। क्या भौगोलिक सरहदें ऊपरवाले को भी बांधती हैं? उन्हें वीज़ा और पासपोर्ट की क्या अावश्यकता हो सकती है? यह संभव है कि उन्होंने भी अपने क्षेत्र बांट लिए हों। अब भला क्राइस्ट के क्षेत्र में श्रीकृष्ण क्यों कर जाते?
शरतचंद्र के देवदास 17 वर्ष के हैं, पार्वती 14 और चंद्रमुखी 20 वर्ष की है। आज तक इस आयुवर्ग के कलाकारों के साथ किसी ने देवदास नहीं बनाई है। सहगल और दिलीप कुमार ने जब 'देवदास' अभिनीत की तो वे करीब 40 वर्ष के थे। मेरे पिताजी को सहगल अभिनीत 'देवदास' पसंद थी, मुझे दिलीप कुमार अभिनीत पसंद है अौर मेेरे पुत्रों को शाहरुख खान अभिनीत देवदास पसंद है तथा मेरे पोतों को सुधीर मिश्रा की 'देव डी' पसंद है। सुधीर मिश्रा की 'देव डी' में पारो अपनी साइकिल के कॅरिअर पर बिस्तर रखे अपने देवदास से अंतरंगता स्थापित करने खेत में जाती है। यह संभव है कि उनकी 'दास देव' में पारो मोटर साइकिल पर डनलप का नरम गद्दा लिए गन्ने के खेतों में जा पहुंचे।
यह भी गौरतलब है कि शरतबाबू ने 17 की उम्र में 'देवदास' लिखी और 1902 में लिखे जाने के 15 वर्ष बाद 1917 में प्रकाशित हुई। गोयाकि विलंब इस रचना के साथ ही जुड़ा है। कोई भी फिल्मकार 17 वर्षीय 'देवदास' नहीं बनाता, क्योंकि इस वय का कोई सितारा नहीं होता। राज कपूर की 'बॉबी' के बाद ऋषि कपूर के साथ देवदास बनाई जा सकती थी परंतु राज कपूर देवदास मोह में झुलस चुके थे, जब उन्होंने देवदासनुमा 'आह' बनाई थी। 'आह' के नायक को टीबी का रोग था, जो फिल्म बनाए जाते समय लाइलाज था परंतु प्रदर्शन के समय तक क्षय रोग की दवा बाजार में उपलब्ध थी। इस तरह विज्ञान कथाओं को आउटडेटेड भी कर देता है। यह बात अलग है कि कुछ लोग अपनी एक्सपायरी डेट के बाद भी बाजार में बिक रहे हैं।
यह भी गौरतलब है कि शांताराम सहगल अभिनीत 'देवदास' से खफा थे और उन्होंने अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए 'आदमी' बनाई थी, जिसका पुलिस वाला नायक अपनी चंद्रमुखी से विवाह कर लेता है। पुलिस कॉन्स्टेबल और तवायफ के प्रेम की कथा शांताराम ने 1941 में बनाई परंतु इसी तरह के कथानक पर हॉलीवुड में 1971 में फिल्म बनी। इसी अमेरिकी फिल्म की प्रेरणा से शम्मी कपूर ने 'मनोरंजन' नामक फिल्म बनाई। अमेरिकी फिल्म का नाम था 'इरमा ला डूस।' शम्मी कपूर की 'मनोरंजन' में संजीव कुमार और जीनत अमान ने अभिनय किया था और आरडी बर्मन ने संगीत दिया था। इसके एक कर्णप्रिय गीत के बोल थे, 'कितना प्यारा गीत है ये गोया के चुनांचे।' मनोरंजन के एक दृश्य में एक पात्र दूसरे पात्र से पूछता है कि क्या उसे मुगलों के बारे में कोई जानकारी है? दूसरा पात्र जवाब देता है कि उसे गहरी जानकारी है, क्योंकि उसने ईरानी होटल में कई बार मुगलिया भोजन किया है। इस तरह के हास्य से भारतीय दर्शक कोई भावनात्मक संबंध नहीं जोड़ पाते।
'देवदास' के एक फिल्म संस्करण में चंद्रमुखी पारो से कहती है कि जिस शिद्दत से देवदास पारो को प्रेम करता है, उसी शिद्दत के प्रभाव में चंद्रमुखी भी पारो से प्रेम करने में लगी है। इस दृष्टिकोण पर शोभा डे देवदास लिख सकती हैं। देवदास अफीम के नशे की तरह है। बिमल राय के संस्करण के संवाद महान राजिंदर सिंह बेदी ने लिखे थे। उनका संवाद 'कौन कम्बख्त कहता है कि मैं शराबी हूं, मैं तो शराब पीता हूं कि सांस चलती रहे।' बकौल निदा फाज़ली, 'जिन गलियों में मौत विछी थी, उनमें जीने निकले हम। सुधीर मिश्रा अपने 'दास डी' के गीत व संवाद इरशाद कामिल से लिखा सकते हैं। इन दिनों इरशाद कामिल शब्दों के सफर और उनके विभिन्न अर्थ को लेकर कवियों का एक यायावरी दल गठित कर रहे हैं। उन्हें अपना काम हुक्मरानों से शुरू करना चाहिए, जो अवाम से अधिक भाषा को हानि पहुंचा रहे हैं।