शराबी का बेटा / मुकेश मानस
उसके कदम जहाँ थे वहीं रुक गये। सामने एक बस खड़ी थी। बस में से नन्हे-मुन्ने बच्चे रंग-बिरंगी स्कूली वेशभूषा में सजे, फुदक-फुदक कर उतर रहे थे और लाइन बनाकर सड़क के किनारे बने मिशनरी स्कूल में मुख्य द्वार से भीतर प्रविष्ट हो रहे थे। एकाएक उसकी आँखें एक भोले से बच्चे पर ठहर गई। उसे अपने छोटे भाई भोलू का ख्याल आया - काश मैं उसे किसी स्कूल में पढ़ा सकता तो वह एक दिन जरूर एक बढ़ा आदमी बनता।¸ उसके होठों पर एक टीस उभरकर रह गई। शराबी के बेटे।¸ उसका ध्यान भंग हुआ। एक छोटे-से लड़के ने उसको आँख मारी। वह मुस्कुराकर रह गया। उसके कदम फिर चल पड़े अपनी मंजिल की ओर।
वह जहाँ भी जाता है लोग उसको ‘शराबी का बेटा’ बुलाते हैं। बड़े तो बड़े, छोटे-छोटे बच्चे भी उसे इसी नाम से जानते हैं। शुरू-शुरू में बड़ा बुरा लगता था उसे, मगर बाद में जैसे उसे खुद ही यह नाम भा गया। वैसे उसका एक प्यारा सा नाम और भी था - बाबू। उसकी बूढ़ी नानी उसको इसी नाम से पुकारती थी। हैजे ने पिछले साल ही उसकी जान ले ली। बिना इलाज के बचती भी कैसे? लोग उसका मज़ाक उड़ाने के लिये उससे पूछते – “ओये छोरा तेरा नाम क्या है?”
उसका सीध-सा उत्तर होता – “जी शराबी का बेटा।”
“तेरा बाप क्या करता है?” ¸ “जी शराब पीता है।¸”
लोग उसके हृदय के जख्मों का दर्द बढ़ाकर हँसते। वह उनके अजीब प्रश्नों का उत्तर हँसकर देता और अपनी राह चल देता।
हाँ, उसका बाप एक शराबी है, पक्का शराबी! दिन-भर खूब मेहनत से रिक्शा खींचते-खींचते थक जाता और शाम को दिन भर की थकान मिटाने के लिए खूब छककर पीता है। एक बार उसका घर यानी उसका छेढ़ सौ रुपये का रसोईनुमा मकान, उसकी कंकाल सी बीमार पत्नी, बाबू, एक छोटा लड़का भोलू और एक जवान लड़की नीलम, उसका बाप भूखा सो सकता है मगर आज तक शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरा हो, जब उसने शराब की एक बोतल न गटकाई हो। एक दिन उसका बाप पूरे दिन खाली रहा। एक भी सवारी नहीं मिली। शाम आई तो उसे दारू की तलब लगी। उसने दो-चार सड़क छापों से उधर माँगा। मगर किसी को उसका विश्वास न था। एक दोस्त को तो यहाँ तक कह दिया कि बाबू की टाँग टूट गई है, अस्पताल में है और उसकी दवाई के लिए उसे कुछ रुपये उधर चाहिये। सिर्फ कहा ही नहीं, आंखों में आंसू भी भर लाया, होंठ भी मिसमिसाये। खूब सच्चा बनने का प्रयास किया। मगर उसके सभी मित्रप उसको खूब जानते हैं। किसी ने उसको एक आना तक नहीं दिया। वह भी बड़ा अड़ियल है। घर को लौटते समय उसने अपना रिक्शा जानबूझकर एक कार से टकरा दिया। ड्राइवर अनाड़ी था। कुछ दिन पहले ही सीखना शुरू किया था। भीड़ को देखकर बेचारा घबरा गया और दो सौ रुपल्ली देकर छुटकारा पाया। उसने बहुत समझदारी से अपना रिक्शा कार में मारा था जिसके कारण उसे ज्यादा चोट नहीं आई। मगर डाक्टर ने फिर भी उससे पचास रुपये मार लिए। उस दिन उसने खूब छककर पी। अपनी बीबी को पीटा, खाना उठाकर बाहर गली में फैंक दिया, देर रात तक चिल्लाता रहा और फिर दोपहर तक बेजान पड़ा रहा।
बाबू अपने घर के एक कोने में बैठा लुटा पिटा-सा बड़ी खामोशी के साथ अपने शराबी बाप को देखता रहता है। पहले-पहले वह बहुत दुखी होता था। खूब रोता और बाप को गाली भी मन ही मन देता था। मगर अब बाप से माँ से पिटते देखना, बहन को लुच्ची, कुत्ती, रांड जैसे गंदे सम्बोधनों के साथ सुनना उसकी आदत-सी बन गई है। अब उसे न तो बाप पर गुस्सा आता है और न ही बाप की शराब पर। अब वह शराब की खाली बोतलों को दीवार पर मारकर तोड़ता नहीं है। अब वह सोचता है अपने भाई का भविष्य, बहन का बढ़ता जिस्म, माँ का बीमार कंकाल और श्मशान सा घर। उसके सोच का दायरा अब बढ़ गया है।
एकाएक उसको ठोकर लगी। पत्थर उसके अंगूठे को जख्मी कर थोड़ा और उफपर को उभर आया। उसने जमीन से उसे उखाड़ा और सड़क के एक तरफ फैंक दिया। एकाएक उसकी नजर सड़क के दूसरी ओर जाती एक जवान लड़की पर पड़ी। लड़की शक्ल से सुन्दर दिख रही थी मगर उससे भी ज्यादा बाबू को सुन्दर लगा - उसका फूलों की चित्रुकारी वाला सूट...!!!
आज तनख्वाह मिलेगी तो बहन के लिये पुराने कपड़े बेचने वालों से एक अच्छा-सा सूट ले चलूँगा और भोले के लिए भी।¸ यह सोचते-सोचते वह लाला की दुकान तक आ गया। शाम तक हंसते-गुनगुनाते काम करता रहा। उस दिन ग्राहक उसकी गजब की फुर्ती देख हैरान थे। बाद में लाला ने दुकान बंद करने से पहले उसे एक फैक्ट्री में चाय देने भेजा। फैक्ट्री दूर थी। उसका जाने का मन नहीं था मगर चला गया और जब लौटकर उसने लाला से तनख्वाह माँगी तो लाला ने उसे सब कुछ बता दिया – “तुम्हारा बाप आया था, तुम्हारी तनख्वाह ले गया।” कितना कठोर बन गया था लाला।
उसे अपनी साँस थमती-सी लगी, पूरा शरीर भड़भड़ा उठा। आँसू बिना किसी जतन के बहने लगे। वह मरी-मरी सी चाल से घर लौटा। घर में घुसते ही एक जानी पहचानी गंध् उसकी नाक में घुस गई, वह अचेत नहीं था। अपनी पुरानी खामोशी के साथ घर के उसी कोने में बैठ गया। बाप सब चीजें सजाकर बैठा था। माँ घर के बाहर गली में बने चूल्हे पर रोटी सेंक रही थी और बहन उसके पास सहमी-सी बैठी रही। बाप एक के बाद एक गाली बकता रहा। हर एक पैग के साथ एक उबला हुआ अण्डा मुँह में घुसेड़ लेता। उसके बाप ने उसको भी दो अण्डे अखबार के मैले टुकड़े पर रखकर दिये। उसे लगा जैसे उसकी बहन भी नंगी हो गई है - अण्डे की तरह और उसकी माँ का कंकाल एक बार फिर जमीन पर गिर गया है कभी न उठने के लिए। वह सोचता रहा और आधी रात में जब सब सो गये। उसने यह सोच खत्म की और चुपचाप सो गया। अगली बार की तनख्वाह में से कुछ रुपये एडवांस लेकर वह अपनी बहन के लिए एक सलवार कुर्ती खरीद लाया था।
एक दिन बाबू जब लाला की दुकान से लौटा तो अपने बाप को घर में कंबल ओढ़े सोता पाया। माँ ने बताया कि उसे सुबह से पेट में दर्द और तेज बुखार था। बाबू कुछ नहीं बोला। उसने चुपचाप खाना खाया और लेट गया। रात में बाप के जोर-जोर से चिल्लाने पर वह उठ गया। उसने देखा माँ उसके बाप को संभाल रही थी। उसका बाप दर्द के मारे बुरी तरह तड़प रहा था। उसने जल्दी-जल्दी स्टोव जलाकर बाप के पेट की सिकाई की। थोड़ी देर बाद उसके बाप को आराम पड़ गया और वह सो गया। उसकी माँ भी सो गई मगर बाबू पूरी रात जाने क्या-क्या सोचता रहा।
सुबह बाप की हालत और भी खराब हो गई। वह दौड़कर लाला की दुकान पर गया और कुछ रुपये लाला से उधर ले आया। पड़ोस ही में एक डाक्टर के पास वह अपने बाप को ले गया। देखने के बाद डाWक्टर ने उसे बड़े अस्पताल में ले जाने को कहा। उसकी माँ एक पड़ोसी से कुछ रुपये और माँग लाई। उसके बाप को बड़े अस्पताल ले जाया गया। कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद उसका बाप घर आ गया। अब दुबारा काम पर जाने लगा और अब थोड़ा बहुत जो भी कमाता घर ले आता। उसकी दारू भी अब बहुत कम हो गई थी। वह शायद अब बदल रहा था। उसके इस व्यवहार से सभी खुश थे मगर बाबू अक्सर रात को सोचता रहता। उसके कानों में बड़े अस्पताल के डाक्टर की आवाज गूँजती रहती – “तुम्हारे पिता का दाहिना गुर्दा खराब है बदलना पड़ेगा, नहीं बदला तो वह कुछ ही दिनों का मेहमान है।”
एक दिन बाबू अपनी माँ और अपने बाप के साथ बड़े अस्पताल गया। वहाँ उसके बाप का गुर्दा बदल दिया गया। आपरेशन थियेटर में जब बाबू को भी नर्स बेड पर लिटाकर ले जाने लगी तो उसकी माँ रो पड़ी थी।
“मेरे बछड़े को क्या हो गया?”
“कुछ नहीं हुआ है तुम्हारे बेटे को।” नर्स ने उसे ढाँढस बंधया। दस-बारह दिन के बाद बाबू और उसका बाप दोनों घर लौट आये। अब उसका बाप बिल्कुल बदल गया। उसने शराब एकदम बंद कर दी थी।
न जाने किसने एक दिन बाबू को पुकारा - शराबी के बेटे।¸ बाबू पुकारने वाले से भिड़ गया, मगर पुकारने वाला ज्यादा ताकतवर था। वह बाबू को जमीन पर गिराकर उस पर बैठ गया। बाबू ने लाख कोशिश की मगर वह जीत नहीं पाया। आखिर उसने उससे माफी माँग ली। पुकारने वालों ने उसे छोड़ दिया। बाबू कराहता हुआ घर लौट आया। चौदह साल का बाबू उस रात बुरी तरह कराहता रहा और सुबह होते ही उसकी नब्ज बंद हो गई।
रचनाकाल : 1987 पहली कहानी