शराबी दौर में गुलाबी गेंद / जयप्रकाश चौकसे

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शराबी दौर में गुलाबी गेंद
प्रकाशन तिथि : 01 नवम्बर 2019


आज खबरों की दो सुर्खियों पर विचार किया जाना चाहिए। चीन के हुक्मरान ने फतवा जारी किया है कि उनके देश ने बहुत भौतिक विकास किया है लेकिन अब नैतिक मूल्यों को विकसित करना आवश्यक है। कोई शिक्षा संस्थान नैतिक मूल्य नहीं पढ़ाता। केवल परिवार की पाठशाला में ही नैतिकता पढ़ाई जा सकती है। संयुक्त परिवार संस्था के टूटते ही परिवार पाठशाला धराशाई हो गई। एक रिश्वतखोर पिता अपने बच्चों को क्या सिखा सकता है? चीन के हुक्मरान का नैतिकता का बोध अजीबोगरीब है। उनका कथन है कि महिलाएं छोटे स्कर्ट नहीं पहनें, अपने शरीर को ढंककर रखें क्योंकि उनका अंग प्रदर्शन कामुकता जगाता है। ज्ञातव्य है कि विगत सदी के आठवें दशक में बलदेव राज चोपड़ा ने अमेरिकन फिल्म 'लिपस्टिक' पर बेस्ड 'इंसाफ का तराजू' बनाई थी। फिल्म में जीनत अमान, पद्मिनी कोल्हापुरे और राज बब्बर ने अभिनय किया था। यह राज बब्बर की पहली फिल्म थी। उस फिल्म के एक दृश्य में भी बलात्कार का दोष महिला के कपड़े पहनने पर थोपा गया था परंतु यह यथार्थ नहीं है, क्योंकि बुर्का से पूरा शरीर ढंकने वाली महिलाओं के भी बलात्कार हुए हैं। लम्पटता विचार शैली का हिस्सा है और शरीर को ढंकने या खुला छोड़ने से उसका कोई संबंध नहीं है। बहरहाल तानाशाही हुक्मरान भी नैतिक मूल्यों के महत्व को स्वीकार कर रहे हैं। हमारे अपने वतन में तो राष्ट्रप्रेम मात्र ही नैतिक मूल्य है। गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने महात्मा गांधी को आग्रह किया था कि स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रप्रेम भावना का गहरा महत्व है परंतु स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद यह एक नशे और रोग में भी बदला जा सकता है। गांधी जी का संदेश था कि साधन के अपवित्र होने पर साधन भी कलंकित हो जाता है।

दूसरी खबर क्रिकेट संसार में गुलाबी गेंद का आगमन है। क्रिकेट का स्टेडियम इंद्रधनुष की तरह बन जाएगा। खिलाड़ियों की रंग बिरंगी पोशाक आने का भरम रच देगा। अगर दर्शक भी रंग बिरंगी पोशाक पहने तो आभास होगा कि स्टेडियम में होली उत्सव मनाया जा रहा है। यूं भी क्रिकेट बारहमासी उत्सव ही है। हुक्मरान जानते हैं कि सतत चलने वाले उत्सव ही आवाम को भूख और बेरोजगारी के यथार्थ से दूर एक मायावी संसार का नागरिक बना सकते हैं। सब मिलकर कहें 'ऑल इज वेल'।

क्रिकेट में देखा गया है कि क्षेत्ररक्षक गोताखोर की तरह एक कैच पकड़ता है परंतु वह स्वयं कह देता है कि गेंद जमीन को छू गई है। नैतिक मूल्यों का वहन हर क्षेत्र में किया जा सकता है। कुछ बल्लेबाज आउट होते ही पैवेलियन की राह चल पड़ते हैं और अंपायर के निर्णय का इंतजार भी नहीं करते। कुछ निर्णय थर्ड अंपायर लेता है जो टेलीविजन पर बार-बार री-प्ले होकर निर्णय देते हैं परंतु इसमें भी चूक की गुंजाइश है। सबसे शक्तिशाली थर्ड अंपायर से भी चूक हो जाती हैं।

गलतियां करना मनुष्य का स्वभाव है और गिरते पड़ते तथा लुढ़कते हुए वह आगे चलता है। चीटियां भी रेंगते हुए गंतव्य तक पहुंच जाती हैं। वे अपने वजन से 5 गुना अधिक भार ढो सकती हैं। अवाम भी चींटियों की तरह अपने वजन से 50 गुना भार लिए चलता है। अवाम का जीवन अकल्पनीय हैं परंतु वर्तमान की प्रचार लहर के साथ वह बह रहा है। उसे किसी दिन किनारा अवश्य मिलेगा। अपने किनारों से ही नदी परिभाषित होती है।